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    Ketu Antardasha: कितने समय तक चलती है केतु की अंतर्दशा और कैसे करें छाया ग्रह को प्रसन्न?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sat, 02 Aug 2025 06:00 PM (IST)

    ज्योतिष राहु और केतु (Ketu Antardasha) को मायावी ग्रह कहा जाता है। शनिवार के दिन बहती जलधारा में जटा वाला नारियल प्रवाहित करने से भी राहु और केतु का प्रभाव बहुत कम होता है। देवों के देव महादेव की पूजा करने से साधक के जीवन में सुखों का आगमन होता है।

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    Ketu Antardasha: राहु और केतु को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वर्तमान समय में मायावी ग्रह राहु कुंभ राशि में विराजमान हैं और केतु सिंह राशि में उपस्थित हैं। राहु और केतु एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं। राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। राहु और केतु की कुदृष्टि पड़ने से जातक को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार जातक को आर्थिक तंगी से भी गुजरना पड़ता है।

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    ज्योतिषियों की मानें तो देवों के देव महादेव की पूजा करने से राहु और केतु की कुदृष्टि से मुक्ति मिलती है। हालांकि, कुंडली में कालसर्प दोष से पीड़ित जातकों का निवारण कराना श्रेष्ठकर होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि केतु की अंतर्दशा कितने साल तक चलती है और कैसे मायावी ग्रह को प्रसन्न करें? आइए जानते हैं-

    यह भी पढ़ें: Takshak Kaal Sarp dosh: कब और कैसे कुंडली में बनता है तक्षक कालसर्प दोष? इन उपायों से मिलेगी राहत

    केतु की अंतर्दशा

    ज्योतिषियों की मानें तो केतु की महादशा 7 साल की होती है। केतु की महादशा के दौरान सबसे पहले केतु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। वहीं, केतु की अंतर्दशा पांच महीने की होती है। इसके बाद क्रमश: शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि और बुध की अंतर्दशा चलती है। केतु की शुभ दृष्टि पड़ने पर जातक को जीवन में विशेष सफलता मिलती है। वहीं, केतु की कुदृष्टि पड़ने पर जातक अपने जीवन में कई बार गलत फैसले ले लेता है। वहीं, केतु की महादशा में सूर्य, चंद्र और गुरु की अंतर्दशा होने पर मायावी ग्रह शुभ फल नहीं देते हैं।

    मायावी ग्रह केतु को कैसे करें प्रसन्न?

    भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही कुंडली में राहु-केतु और शनि का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। सोमवार के दिन गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करने से राहु और केतु प्रसन्न होते हैं।

    शिव मंत्र

    1. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

    उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

    परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

    सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

    वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

    हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

    2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    3. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    5. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।

    विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।