Parivartini Ekadashi 2025 Date: परिवर्तिनी एकादशी कब है? नोट करें सही डेट एवं शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों की मानें तो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2025 Yoga) पर आयुष्मान और सौभाग्य योग का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही रवि योग और भद्रवास योग का भी संयोग है। इन योग में जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक को मनचाहा वरदान मिलेगा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में परिवर्तिनी एकादशी का खास महत्व है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और देवी मां लक्ष्मी की पूजा और भक्ति की जाती है।
साथ ही भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को मनोवांछित फल मिलता है। साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। आइए, परिवर्तिनी एकादशी ( Parivartini Ekadashi 2025 Date) के बारे में सबकुछ जानते हैं-
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 03 सितंबर को देर रात 03 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 04 सितंबर को सुबह 04 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। इसके लिए 03 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाएगी।
परिवर्तिनी एकादशी पारण (Parivartini Ekadashi Paran Timing)
परिवर्तिनी एकादशी का पारण 04 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 36 मिनट से लेकर शाम 04 बजकर 07 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं। इस दौरान साधक स्नान-ध्यान कर पूजा-पाठ करें। वहीं, पूजा के बाद व्रत खोलें। व्रत खोलने से पहले अन्न का दान अवश्य करें।
पूजा विधि
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठें। इस समय भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रणाम करें। अब घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। सुविधा होने पर गंगा या पवित्र नदियों में स्नान कर सकते हैं। वहीं, स्नान-ध्यान के बाद आचमन करें और पीले रंग के कपड़े पहनें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें।
तत्पश्चात, पंचोपचार कर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। पूजा के समय लक्ष्मी नारायण जी को पीले रंग के फल, फूल और मिठाई अर्पित करें। विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्र जप करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती के बाद फलाहार करें। अगले दिन व्रत खोलें।
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