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    Rajasthan: '2009 से पहले की दुष्कर्म पीड़िताओं को दिया जाए मुआवजा', राजस्थान हाई कोर्ट ने दिया आदेश

    Updated: Thu, 04 Jan 2024 06:40 PM (IST)

    राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने करीब 20 साल पुराने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा-357 के संशोधन से पहले की सभी नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताएं तीन लाख रुपये का मुआवजा पाने की हकदार हैं। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि नारी के साथ दुष्कर्म उसके लिए सबसे बड़ा टॉर्चर है।

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    राजस्थान हाई कोर्ट ने 2009 से पहले की दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजा देने का आदेश दिया। (फाइल फोटो)

    जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने करीब 20 साल पुराने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा-357 के संशोधन से पहले की सभी नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताएं तीन लाख रुपये का मुआवजा पाने की हकदार हैं।

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    न्यायाधीश ने मनु स्मृति का किया जिक्र

    न्यायाधीश ढंड ने 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:' अर्थात- जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती, उनका सम्मान नहीं होता, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। मनु स्मृति के इस श्लोक से दुष्कर्म के बाद नाबालिग को उचित मुआवजा नहीं मिलने के मामले में दिए गए फैसले की शुरुआत की।

    उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि नारी के साथ दुष्कर्म उसके लिए सबसे बड़ा टॉर्चर है। दुष्कर्म केवल शारीरिक अत्याचार नहीं है, यह पीड़िता की मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक संवेदनशीलता पर भी विपरीत असर डालता है। इस कारण दुष्कर्म को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह महिला के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह फैसला सिर्फ उन्हीं मामलों में लागू होगा, जिनमें संशोधन से पहले मुआवजे के लिए प्रार्थना पत्र पेश कर दिया गया हो और मामला लंबित चल रहा हो।

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    क्या था मामला?

    याचिकाकर्ता की वकील नैना सराफ ने बताया कि नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की मां की ओर से साल, 2006 में हाई कोर्ट में याचिका पेश कर के कहा गया था कि उसकी दो साल की बेटी के साथ 19 जुलाई, 2004 को दुष्कर्म हुआ था।

    जयपुर की पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार कर न्यायालय में चालान पेश कर दिया। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 31मई, 2005 को अभियुक्त को 10 साल की सजा व पांच सौ रुपये का जुर्माना अदा करने का फैसला सुनाया। लेकिन, मुआवजे को लेकर कोई आदेश नहीं दिया। नाबालिग के पिता ने तत्कालीन कलेक्टर के समक्ष प्रार्थना पत्र पेशकर तीन लाख रुपये का मुआवजा मांगा, लेकिन मुआवजा नहीं दिया गया। हालांकि, मुख्यमंत्री सहायता कोष से 10 हजार रुपये की मदद दी गई।

    इस पर पीड़िता की मां ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका लंबित रहने के दौरान सीआरपीसी में संशोधन हुआ और पीड़ित प्रतिकार योजना लागू हुई, जिसमें तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रविधान किया गया, लेकिन उसके बाद भी पीड़िता को मुआवजा नहीं दिया गया। पीड़िता की मां ने न्यायालय में लंबी लड़ाई लड़ी और अब फैसला सुनाया गया है। यह है प्रतिकार योजनासाल, 2009 से पहले नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में यदि न्यायालय मुआवजा देने का आदेश देता है, तब ही पीड़िता मुआवजे के लिए सक्षम अधिकारी के समक्ष आवेदन कर सकती है।

    सीआरपीसी की धारा-357 में किए गए संशोधन में कहा गया कि नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजा देने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की होगी। इसके बाद सभी राज्यों में यह योजना बनाई गई। राजस्थान में पीड़िता प्रतिकार योजना-2011 लागू की गई। इस योजना में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रविधान किया गया, लेकिन इस योजना के तहत 2009 के बाद हुई वारदात में ही मुआवजा दिया जा रहा था, जबकि याचिकाकर्ता की बेटी से 2004 में दुष्कर्म हुआ था। कई बार मांगने पर भी मुआवजा नहीं दिया गया, उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।

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