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    Janmashtami: राजस्थान में नरहड़ की दरगाह में जन्माष्टमी पर लगता है मेला

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Fri, 23 Aug 2019 07:08 PM (IST)

    Janmashtami. यहां हर जन्माष्टमी पर मेला लगता है। राजस्थान ही नहीं आस-पास के राज्यों से भी हिंदू-मुसलमान इस मेले में पहुंचते हैं।

    Janmashtami: राजस्थान में नरहड़ की दरगाह में जन्माष्टमी पर लगता है मेला

    मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान के झुंझुनू जिले के चिड़ावा कस्बे के पास स्थित नरहड़ में हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह कौमी एकता की मिसाल है। यहां हर जन्माष्टमी पर तीन दिन का मेला लगता है। राजस्थान ही नहीं, आस-पास के राज्यों से भी हिंदू-मुसलमान इस मेले में पहुंचते हैं। इस बार भी मेला शुक्रवार से शुरू हो गया है जो रविवार तक चलेगा।

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    राजस्थान का झुंझुनू जिला देश पर मर मिटने वाले सैनिकों और राजस्थान में शत प्रतिशत साक्षरता के लिए जाना जाता है। इसी जिले के चिड़ावा कस्बे से करीब 10 किलोमीटर दूर नरहड़ में शक्करबार शाह की दरगाह है। यहां के लोगों के अनुसार करीब 750 वर्षो से दरगाह मे हर जन्माष्टमी पर यह मेला लगता आ रहा है। इस दरगाह के बारे में कहा जाता है कि किसी समय इसके गुबंद से शक्कर बरसती थी। इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से जानी जाती है। मेले के मौके पर आने वाले श्रद्धालु मजार पर चादर, वस्त्र, नारियल, मिठाइयां आदि चढ़ाते हैं और मन्न्त मांगते हैं।

    दरगाह में भगवान कृष्ण के जन्म पर आयोजित होने वाला जन्माष्टमी उत्सव सांस्कृतिक और धार्मिक समागम की अनोखी मिसाल है। दरगाह में अजान के साथ-साथ आरती भी गूंजती है। मेले का पूरा इंतजाम दरगाह कमेटी करती है और राजस्थान ही नहीं, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, पंजाब, कोलकाता तक से लोग यहां आते हैं। मेले पर विशेष तौर पर दरगाह की सजावट होती है और छप्पन भोग की झांकी सजाई जाती है। जन्माष्टमी की रात यहां रतजगा होता है। इसमें भजन और कव्वालियां पेश की जाती हंै। भंडारे लगते हैं। ये भंडारे मुस्लिम परिवार भी लगाते हैं।

    यहां से जुडे़ शाहिद पठान ने बताया कि शनिवार को उनकी ओर से भंडारे का आयोजन होगा। इसमें हिंदू- मुसलमान सब काम भी करते हंै और एक साथ खाते भी हैं। नरहड़ आने वाले हिंदू दरगाह में नवविवाहितों के गठजोडे़ की जात एवं बच्चों के मुंडन कराते हैं। दरगाह के वयोवृद्ध खादिम हाजी अजीज खान पठान बताते हैं कि यह कहना तो मुश्किल है कि यहां जन्माष्टमी मेले की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, लेकिन इतना जरूर है कि देश विभाजन एवं उसके बाद और कहीं संप्रदाय, धर्म-मजहब के नाम पर भले ही हालात बने-बिगडे़ हों पर नरहड़ ने सदैव हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल ही पेश की है। वह बताते हैं कि जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं, ठीक उसी प्रकार अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में चिढ़ावा के प्रख्यात दूलजी राणा परिवार के कलाकार ख्याल (श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिकाओं) की प्रस्तुति देकर रतजगा कर परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं।

    राजस्थान व हरियाणा में तो शक्करबार बाबा को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है। इस क्षेत्र के लोगों की गाय, भैंसों के बछड़ों जनने पर उसके दूध से जमी दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ाया जाता है। तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। नरहड़ दरगाह में कोई सज्जादानशीन नहीं है। यहां के सभी खादिम अपना-अपना फर्ज पूरा करते हैं। यहां का बुलंद दरवाजा 75 फीट ऊंचा और 48 फीट चौड़ा है। मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है, जिसमें पत्थर नहीं लगाया गया है। शाहिद पठान ने बताया कि अगले दो-तीन दिन तक यहां हजारों लोग आएंगे और मन्नत मांगेंगे। यहां एक पेड लगा है, जिस पर धागा बांध कर मन्न्त मांगी जाती है।

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