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    Janmashtami पर यहां 21 तोपों की दी जाती है सलामी

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Fri, 23 Aug 2019 01:36 PM (IST)

    janmashtami. यहां भगवान श्रीकृष्ण को तोप के 21 गोले दागकर सलामी दी जाती है। अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है।

    Janmashtami पर यहां 21 तोपों की दी जाती है सलामी

    संवाद सूत्र, उदयपुर। राजस्थान के नाथद्वारा में जन्माष्टमी का त्योहार अनूठे तरीके से मनाया जाता है। यहां भगवान श्रीकृष्ण को तोप के 21 गोले दागकर सलामी दी जाती है। अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है। इसमें स्थानीय आदिवासी भोग लूटने आते हैं। जन्माष्टमी के दिन श्रीनाथ भगवान के आठ बार दर्शन होते हैं और शाम छह बजे भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। नाथद्वारा में जन्माष्टमी पर्व की शुरआत श्रावण मास की कृष्ण अष्टमी से ही हो जाती है। जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के प्राकट्योत्सव पर विशेष रूप से शंख ध्वनि की जाती है। साथ ही, थाली-मादल, घंटे- घडि़याल, झांझ- मृदंग, सारंगी व बाजे भी बजाए जाते हैं।

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    मंदिर के पास गोवर्धन चौक में श्रीनाथ बैंड द्वारा मधुर स्वर लहरियों में प्रभु के जन्म की बधाई के पद गाये जाते हैं। रात ठीक 12 बजे प्रभु का जन्म होने का घंटानाद होता है और 'मोतीमहल' की प्राचीर से बिगुल बजाकर श्रीकृष्ण के जन्म की सूचना दी जाती है। इस बिगुल की आवाज आधे किमी दूर स्थित 'रिसाले के चौक' तक पहुंचती है। वहां स्थित श्रीनाथजी की फौज (गोविंद पलटन) के कर्मचारी इसे सुनते ही यहां रखी हुई 400 साल पुरानी तोप से 21 गोले दागकर सलामी देते हैं। तोप से गोलों को उसी परंपरा और तरीके से दागा जाता है जैसा सालों पहले किया जाता था नंद महोत्सव में भोग लूटने आते हैं ग्वाले जन्माष्टमी के अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन श्रीनाथजी और नवनीत प्रियजी के मंदिर के बड़े मुखिया नंदबाबा और यशोदा मैया का रूप धारण करते हैं और आठ अन्य सेवक चार गोपियों और चार ग्वालों का रूप धारण करते हैं। ये तब तक नृत्य करते हैं, जब तक भगवान के दर्शन के लिए पट नहीं खुलते।

    भगवान को झूला झुलाने के बाद मंदिर की 'आरती वाली गली' में रखी हुई दही-दूध की नांद, गोवर्धन पूजा के चौक रखे जाते हैं। इनमें से मिश्रित दूध-दही लेकर दर्शनार्थी एक-दूसरे को होली के रंगों की तरह सराबोर कर देते हैं। भक्त इस दूध-दही से सराबोर हो जाने को अपना सौभाग्य समझते हैं। पूरा मंदिर और दर्शनार्थी दूध-दही से नहा जाते हैं। मंदिर की सफाई के बाद नंद महोत्सव की तैयारियां शुरू होती हैं। जिसमें क्षेत्र के आदिवासी ग्वाले बनकर आते हैं तथा मंदिर में चढ़ाए विशेष भोग की लूट शुरू होती है।

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