Parkash Singh Badal: आज चंडीगढ़ में रखा जाएगा प्रकाश सिंह बादल का शव, कल पैतृक गांव में होगा अंतिम संस्कार
केंद्र सरकार की तरफ से प्रकाश सिंह बादल के निधन पर 2 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है लेकिन पंजाब सरकार की तरफ से ऐसी कोई घोषणा न करना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन बैठा है।
श्री मुक्तसर साहिब, जागरण संवाददाता। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बादल में वीरवार को दोपहर एक बजे किया जाएगा। पार्टी प्रवक्ता ने बताया कि उनका शव बुधवार सुबह 10 बज शिरोमणि अकाली दल के मुख्य दफ्तर सेक्टर 28 चंडीगढ़ में रखा जाएगा। इसके उपरांत दोपहर 12 बजे एक काफिले के रूप में गांव बादल के लिए वाया पटियाला, संगरूर, बरनाला व बठिंडा से होते हुए मुक्तसर जिले के उनके पैतृक गांव बादल में पहुंचेगा। जहां वीरवार दोपहर एक बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
प्रकाश सिंह बादल का एक सबसे बड़ा गुण यह था कि वह विकास कार्यों की ओर ज्यादा ध्यान देते थे और अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने की सोच के खिलाफ थे। बादल को ग्रामीण क्षेत्र की सबसे ज्यादा चिंता थी, इसीलिए वह चाहते थे कि जो सुविधाएं शहरों में मिल सकती हैं, वह सभी गांव में क्यों नहीं। गांव के युवा क्यों शहरों में काम-धंधे के लिए भटकते रहें, अपनी इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने 1977 में मुख्यमंत्री बनते ही गांव में फोकल प्वाइंट की शुरुआत की और जब-जब भी वह मुख्यमंत्री बने उन्होंने गांवों में इस तरह के फोकल प्वाइंट बनाए, जहां पर कृषि से जुड़े हुए सभी कारोबार किए जा सकते हों। इसके अलावा बादल ने किसानों के लिए मुफ्त बिजली योजना, बुजुर्गों को पेंशन, निशुल्क बस यात्रा, तीर्थ यात्रा योजना की शुरुआत की। उन्होंने गरीबों के लिए चार रुपये किलो आटा और 20 रुपये किलो दाल योजना भी शुरू की।
हिंदू और सिखों के बीच में सौहार्द को मानते थे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धिवर्ष 2008 में जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि वह अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं। इस पर उन्होंने कहा था कि पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच खराब हुए सौहार्द को बनाने में उनका सबसे बड़ा योगदान है। उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए याद किया जाता रहेगा। प्रकाश सिंह बादल के व्यक्तित्व के बारे में कोई कुछ भी कहें यह बात लगभग सभी वर्गों के नेता कहते रहे कि वह पंजाब में संप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने की सबसे बड़ी कड़ी रहे।
अकेलापन महसूस करने लगे थे बादल
प्रकाश सिंह बादल ने अपने गांव बादल में बुजुर्गों के लिए एक वृद्ध आश्रम भी खोला था। एक बड़े प्रांगण में कई कमरे बुजुर्गों के रहने के लिए बनाए गए हैं। प्रकाश सिंह बादल जब भी कहीं जाते इस वृद्ध आश्रम में रहने वालों के लिए कुछ न कुछ खरीद कर जरूर लाते थे। सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद वह अकेलापन महसूस करने लगे थे। उनके बेटे सुखबीर बादल जो शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष हैं, पार्टी के कामों के चलते अक्सर उनसे दूर रहते थे और पोते-पोतिया भी पढ़ाई के कारण दिल्ली में ही थे।
नशे से दूर रह कसरत कभी नहीं छोड़ी
प्रकाश सिंह बादल ने जीवन में कभी नशा नहीं किया। जब वह अपने स्वास्थ्य का राज बताते थे तो यह कहना कभी नहीं भूलते कि खूब कसरत करो, नशे से दूर रहो। उनका कहना था कि लंबी उम्र जीनी है तो बिना काम के न रहें। वह लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने की सलाह देते थे। उनका कहना था कि इससे जीवन में अनुशासन पैदा होता है और सकारात्मक विचारों का प्रवाह होता है।
पहली चुनावी जीत के बाद गांव बादल का नाम अपने साथ जोड़ा
प्रकाश सिंह बादल जब पहली बार बादल गांव के सरपंच चुने गए थे, तब उन्होंने अपने नाम के आगे अपने गांव का नाम बादल जोड़ा। सरपंच चुने जाने के कुछ समय बाद ही वह लंबी ब्लाक समिति के प्रधान चुने गए। प्रकाश सिंह ने बादल की तरह लंबी को भी हमेशा के लिए अपने से जोड़ लिया। बतौर मुख्यमंत्री पंजाब की विरासत को संजोने का काम भी उन्होंने किया। विरासत-ए-खालसा का निर्माण करवाने के अलावा उन्होंने कई अन्य विरासत के लिए अहम काम किए।