Scrap Crisis: पंजाब की स्टील इंडस्ट्री पर नया संकट, स्क्रैप की किल्लत के बाद घटाया उत्पादन, आधी क्षमता पर चल रही मिलें
Scrap Crisis उद्योग का प्रमुख कच्चा माल हाई मेल्टिंग स्क्रैप है। मिलें अपनी मांग का 50% आयात करती हैं और बाकी आपूर्ति घरेलू इंजीनियरिंग उद्योग एवं अन्य स्त्रोतों से की जाती है। अब विदेशी स्क्रैप महंगी पड़ रही है।

राजीव शर्मा, लुधियाना। Scrap Crisis: बाजार में स्टील स्क्रैप की किल्लत के कारण सेकेंडरी स्टील निर्माताओं को मांग के मुताबिक कच्चा माल नहीं मिल रहा है। इस वजह से सूबे की मिलें अपनी उत्पादन क्षमता का आधा ही उपयोग कर पा रही हैं। इसके अलावा बाजार में उठाव कम होने से इंडस्ट्री को कन्वर्जन चार्ज भी पूरे नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में ज्यादातर इंडक्शन फर्नेस मिलें नुकसान में चल रही हैं।
नार्दर्न इंडिया इंडक्शन फर्नेस मिल्स एसोसिएशन ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि इस उद्योग को सभी कर जोड़ कर पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली की आपूर्ति की जाए। उद्योपगतियों के अनुसार प्रदेश के इंडक्शन फर्नेस उद्योग में लगभग 200 भट्ठियां लगी हैं। इनमें औसतन रोजाना 100 टन प्रति भट्ठी लोहा तैयार किया जाता है। साफ है कि उद्योग की रोजाना उत्पादन क्षमता 20 हजार टन की है, जबकि अभी 12 घंटे ही भट्टियां चलाई जा रही हैं और दस हजार टन उत्पादन हो रहा है। उद्योगपति कहते हैं कि इससे खर्च भी निकालने मुश्किल हो रहे हैं।
उद्योग का प्रमुख कच्चा माल हाई मेल्टिंग स्क्रैप है। मिलें अपनी मांग का लगभग 50% आयात करती हैं और बाकी आपूर्ति घरेलू इंजीनियरिंग उद्योग एवं अन्य स्त्रोतों से की जाती है। अब विदेशी स्क्रैप महंगी पड़ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्क्रैप के दाम 510 डालर प्रति टन हैं। जोकि यहां पर माल भाड़ा और अन्य खर्च जोड़ कर 46 हजार रुपये प्रति टन में पड़ रही है। घरेलू स्क्रैप के दाम 44 हजार रुपये प्रति टन हैं। साफ है कि विदेशी स्क्रैप 2 रुपये प्रति किलो महंगी मिल रही है। नतीजतन उद्योगपति विदेशी स्क्रैप का आयात नहीं कर पा रहे हैं।
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कारोबारी बोले, मिलों को आधी क्षमता पर चलाया जा रहा
नार्दर्न इंडिया इंडक्शन फर्नेस एसोसिएशन के प्रधान केके गर्ग कहते हैं कि मिलों को एक तरफ स्क्रैप की किल्लत से जूझना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ कन्वर्जन चार्ज भी पूरे नहीं मिल रहे हैं। स्क्रैप का दाम 44 रुपये प्रति किलो है, जबकि इंगट-कुल्फी के दाम 48.5 रुपये प्रति किलो है। उद्योग को कम से कम छह से सात रुपये प्रति किलो की कन्वर्जन चार्ज मिलने चाहिए। अभी सिर्फ साढ़े चार रुपये ही मिल रहे हैं। इसके अलावा घरेलू बाजार में स्क्रैप भी कम निकल रहा है। स्क्रैप न मिलने के कारण ही मिलों को आधी क्षमता पर चलाया जा रहा है।
पांच रुपये प्रति यूनिट मिले बिजली
सरकार ने पांच रुपये बिजली देने का वादा किया था, लेकिन अभी सात रुपये में मिल रही है। सरकार यह सुनश्चित करे कि सभी कर जोड़ कर बिजली पांच रुपये प्रति यूनिट मिले। इससे इंडस्ट्री को राहत दी जा सकती है। इसके अलावा इस उद्योग को विशेष इंसेंटिव दिए जाएं। एसोसिएशन के महासचिव देव गुप्ता के अनुसार सेकेंडरी स्टील निर्माताओं का संकट कम नहीं हो रहा है। इसका सीधा असर उद्योग की परफार्मेंस पर हो रहा है।
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