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करतारपुर साहिब: जहां श्री गुरु नानक देव ने सिखों को किया था एकजुट, जानें बंटवारे से लेकर अब तक क्या हुआ

14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ। इससे पहले जुलाई 1947 में बाउंड्री कमीशन बना और इसका चेयरमैन साइरिल रेडक्लिफ को बनाया गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Nov 2019 11:59 AM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 05:40 PM (IST)
करतारपुर साहिब: जहां श्री गुरु नानक देव ने सिखों को किया था एकजुट, जानें बंटवारे से लेकर अब तक क्या हुआ
करतारपुर साहिब: जहां श्री गुरु नानक देव ने सिखों को किया था एकजुट, जानें बंटवारे से लेकर अब तक क्या हुआ

हृदय नारायण मिश्र, जालंधर। सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब में ही सिख समुदाय को एकजुट किया था। श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे की नींव उन्होंने स्वयं संवत् 1522 में रखी थी। यहीं से लंगर प्रथा की शुरुआत की थी। 1539 में ज्योति जोत समाने तक वह 18 साल यहां रहे थे। यहीं पर उन्होंने ‘किरत करो, नाम जपो, वंड छको’ (नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं) का उपदेश दिया।

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गुरु नानक देव जी के आने से पहले यहां की जमीन उपजाऊ नहीं थी। दुनी चंद नामक व्यक्ति ने सौ एकड़ जमीन उन्हें खेती के लिए दे दी। गुरु जी ने यहां खेती की तो फसलें लहलहाने लगीं और पैदावार काफी बढ़ गई। इसी अनाज से उन्होंने लंगर शुरू किया।

गुरुद्वारा परिसर में हैं तीन कुएं 

बताते हैं कि उनके उपदेशों से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें गुरु का दर्जा दे दिया। गुरुद्वारा परिसर में तीन कुएं हैं। एक कुआं अंदर है जिसके बारे में माना जाता है कि यह गुरु नानक देव जी के समय से है। इस कुएं को लेकर श्रद्धालुओं में अगाध श्रद्धाभाव है। इसके पास ही एक बम का टुकड़ा भी सहेजकर शीशे में रखा गया है। बताया जाता है कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय यह बम कुएं में गिरा था और इस कारण यह इलाका तबाह होने से बच गया था।

गुरु नानक देव जी की दो समाधियां 

गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब की दूसरी मंजिल पर श्री दरबार साहिब स्थित है। यहीं पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी सुशोभित हैं। यहां गुरु नानक देव जी की दो समाधियां हैं। एक सिखों और हिंदुओं ने मिलकर बनाई हैं जबकि दूसरी मुस्लिम समुदाय की तरफ से बनाई गई है, जहां वे सजदा करते हैं। दोनों धर्म के लोग सेवा करते हैं। सिख रूमाला साहिब बांधकर अंदर जाते हैं तो मुस्लिम टोपी पहन कर दर्शन करते हैं।

पटियाला के महाराजा ने कराया पुनर्निर्माण

श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा रावी नदी के पास स्थित है। नदी में आई बाढ़ की वजह से गुरुद्वारे को काफी नुकसान पहुंचा था। 1920 से 1929 के बीच पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने इसे फिर से बनवाया था। तब इस पर 1.36 लाख रुपये से ज्यादा खर्च आया था।

कहां है स्थित: करतारपुर का पवित्र गुरुद्वारा पाकिस्तान के नारोवाल जिले में रावी नदी के किनारे स्थित है। लाहौर से इसकी दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा से इसकी दूरी चार किलोमीटर है।

बंटवारे से लेकर अब तक, कब और क्या

14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ। इससे पहले जुलाई 1947 में बाउंड्री कमीशन बना और इसका चेयरमैन साइरिल रेडक्लिफ को बनाया गया। रेडक्लिफ ने करतारपुर पाकिस्तान के हिस्से में दे दिया।

  • 1941- देश के विभाजन के दौरान गुरदासपुर जिला दो हिस्सों में बंट गया और गुरुद्वारा करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में चला गया।
  • 1971-पाकिस्तान के नारोवाल और भारत के गुरदासपुर को जोड़ने वाला रावी नदी पर बना पुल दोनों देशों के बीच हुई जंग में तबाह हो गया
  • 2000- पाकिस्तान ने करतारपुर साहिब के लिए वीजा मुक्त यात्रा की घोषणा की, तब कॉरिडोर नहीं बना था।
  • 2001-पाकिस्तान ने पहली बार भारतीय जत्थे को करतारपुर साहिब जाने की अनुमति दी।
  • 2008- तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने डेरा बाबा नानक का दौरा किया और फिजिबिलिटी रिपोर्ट बनाने की बात कही।
  • 2018- 17 अगस्त को प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के बाद पाक सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने नवजोत सिंह सिद्धू से बातचीत में मार्ग खोलने का भरोसा दिया।
  • 2019- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 9 नवंबर को कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। इसी दिन इमरान खान भी अपने क्षेत्र में कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे।

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