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पांडवों के बनाए पंजाब के अनूठे बाथुआ मंदिर में फिर होने लगे दर्शन, 8 महीने रहता है पानी के अंदर

पौंग डैम की झील के बीच अद्धभुत बाथुआ मंदिर पांडवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए बनाया गया था। पांडवों के समय बने इस मंदिर में पौंग डैम बनने से पहले देश के कोने-कोने से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते थे।

By Edited By: Published: Sun, 14 Mar 2021 11:44 PM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 01:26 PM (IST)
पांडवों के बनाए पंजाब के अनूठे बाथुआ मंदिर में फिर होने लगे दर्शन, 8 महीने रहता है पानी के अंदर
पानी से बाहर आया पौंग डैम झील में बाथू मंदिर जो लोगो के आकर्षण का केंदर बना हुआ है।

तलवाड़ा, [रमन कौशल]। पौंग डैम की झील के बीच अद्भुत मंदिर बना है जो वर्ष में सिर्फ चार महीने मार्च से जून तक ही नजर आता है, बाकी समय यह मंदिर पानी में ही डूबा रहता है। यह मंदिर अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए बनाया गया था। पांडवों के समय बने इस मंदिर में पौंग डैम बनने से पहले देश के कोने-कोने से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते थे।

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इस मंदिर के साथ आठ मंदिरों की श्रृंखला है जो की बाथू नामक पत्थर से बना है। इसलिए मंदिर का नाम बाथू की लड़ी पड़ा है। यह मंदिर बहुत ही मजबूत पत्थर से बना है। इसलिए करीब 41 साल पानी में डूबने के बाद यह मंदिर वैसा का वैसा ही है। इन मंदिरों के पास एक बहुत ही बड़ा पिलर है जब पौंग डैम झील का पानी काफी ज्यादा होता है, तब यह सभी मंदिर पानी में डूब जाते हैं, सिर्फ इस पिलर का ऊपरी हिस्सा ही नजर आता है और गर्मियों में जब झील का पानी थोड़ा कम होता है तो यह मंदिर पानी से बाहर आ जाता है।

पानी से बाहर आया पौंग डैम झील में स्थित बाथू मंदिर जो लोगो के आकर्षण का केंदर बना हुआ है।

तीन सालों से पानी से बाहर नहीं आ सका बाथू मंदिर

पिछले तीन सालों से पौंग डैम का पानी ज्यादा होने से बाथू मंदिर पूरा बाहर नहीं आ सका था। मंदिर मे बने पिलर के अंदर लगभग 200 के करीब सीढि़यां है जिस पर चल कर पिलर के ऊपर तक पहुंच सकते है और इस पिलर के ऊपर खड़े होकर हम लगभग 15 किलोमीटर झील का बहुत खूबसूरत नजारा देख सकते हैं। इस मंदिर के पत्थरों पर आज भी माता काली और भगवान गणेश जी के प्रतिमा अंकित है और मंदिर के अंदर भगवान विष्णु और शेष नाग की मूर्ति पड़ी है।

मार्च से जून महीने में पहुंचते हैं पर्यटक

जब झील का पानी ज्यादा होता है तब इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। मंदिर के आस पास टापू की तरह जगह है जिसे जिसका नाम रेनसेर है। रेनसेर में फारेस्ट का गेस्ट हाउस है यहां पर कई तरह के प्रवासी पंछी देखे जा सकते हैं। मार्च से जून महीने में भारत और विदेशों से पर्यटक इस मंदिर को देखने आते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए तलवाड़ा से ज्वाली बस द्वारा जाया जा सकता है। लोगों का कहना है की द्वापर युग में पांडवो द्वारा पूजा अर्चना करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था जो आज भी वैसा का वैसा ही है। इस साल देश विदेश से लोग इस अदभुत मंदिर के दर्शन करने के लिए यहां पहुंच रहे हैं।  

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