ये कैसा गांव? 700 परिवार और कोई शिक्षित नहीं, इंग्लैंड से आए NRI ने जगाई शिक्षा की लौ; अब बच्चे बने IIT के स्टूडेंट
Punjab News यह पंजाब के एक ऐसे गांव की कहानी है जहां 700 परिवारों में कोई भी शिक्षित नहीं था। इंग्लैंड से आए एक NRI रंजीत सिंह ने इस गांव के बच्चों के लिए शिक्षा की अलख जगाई। आज इस गांव के बच्चे IIT में दाखिला ले रहे हैं। वहीं गांव के हर परिवार का बच्चा स्कूल जाता है। यह वाकई सराहनीय है।

हजारी लाल, होशियारपुर। सात सौ परिवार और उनमें कोई भी शिक्षित नहीं। आज के जमाने में ऐसा कैसे हो सकता है? यह सवाल... वर्ष 2017 में इंग्लैंड से छुट्टियां मनाने पंजाब आए एनआरआइ रंजीत सिंह ने अपने प्रोफेसर मित्र बहादुर सिंह सुनेत से तब पूछा जब वह उनके साथ घूमते हुए होशियारपुर स्थित अपने गांव अज्जोवाल से सटी बस्ती प्रीत नगर पहुंचे थे।
वहां खेल रहे बच्चों की ओर संकेत करके प्रोफेसर सुनेत ने उन्हें बताया था कि इस पूरे गांव में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है, पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चल रहा है। यहां लगभग सात सौ सिकलीगर परिवार रहते हैं जो कढ़ाही, बाल्टियां आदि बनाते हैं। यह सुनकर रंजीत सिंह को विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन इसके बाद पूरी बस्ती का भाग्य बदल गया।
रियल एस्टेट के व्यवसाय से जुड़े रंजीत की उदारता से सिकलीगरों की इस बस्ती में शिक्षा की लौ जल उठी। इस खानाबदोश समुदाय की जिस बस्ती में कभी हथौड़ी की आवाज गूंजती थी।
फोटो कैप्शन: एनआरआई रंजीत सिंह
वहां अब बच्चों को स्कूल से याद करने के लिए दिए गए पाठ को रट्टा लगाने के स्वर सुनाई देते हैं। आज गांव का कोई भी परिवार ऐसा नहीं है जिसके बच्चे स्कूल नहीं जाते हों। इनमें से कुछ बच्चे तो अब कंप्यूटर इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए आइटीआइ में दाखिला ले रहे हैं।
प्रो. बहादुर सिंह सुनेत बताते हैं कि उस दिन की बातचीत के तुरंत बाद रंजीत सिंह ने सिकलीगरों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए गुरु नानक इंटरनेशनल एजुकेशन ट्रस्ट बनाया।
स्वयं ट्रस्ट के चेयरमैन बने तथा उन्हें (बहादुर सिंह सुनेत को) अध्यक्ष बनाया। सात-सदस्यीय समिति बनी जिसके सदस्यों ने जिम्मा उठाया कि सिगलीगरों के बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे।
फोटो कैप्शन: स्कूल में पढ़ते बच्चे
शिक्षा के लिए किया प्रेरित तो बदला माहौल
जिस समय यह समिति अस्तित्व में आई, उस समय स्थानीय सरकारी एलीमेंट्री स्कूल में 50 बच्चे थे, परंतु उनमें सिगलीगरों का एक भी बच्चा नहीं पढ़ता था। ट्रस्ट ने सिगलीगरों को प्रेरित करना शुरू किया कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें। उनसे कहा गया कि पढ़ाई के खर्च की चिंता न करें, बच्चों की यूनिफार्म व पुस्तकों का पूरा खर्च ट्रस्ट उठाएगा तो बदलाव आना आरंभ हुआ।
सिकलीगरों के बच्चे स्कूल आने शुरू हुए। समिति के कड़े श्रम व प्रेरणा से आज इस स्कूल में 370 बच्चे पढ़ते हैं और इनमें से 90 प्रतिशत बच्चे सिगलीगर परिवारों से हैं। सरकारी एलीमेंट्री स्कूल की बिल्डिंग और बच्चों की पुस्तकों, वर्दी आदि पर ट्रस्ट अब तक लगभग 70 लाख रुपये खर्च कर चुका है।
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फोटो कैप्शन: होशियारपुर के प्रीत नगर में एनआरआइ रंजीत सिंह की तरफ से गोद लिया गया सरकारी स्कूल। जागरण
उच्च शिक्षा पर पर भी दे रहे जोर
इस अभियान का नेतृत्व कर रहे प्रो. सुनेत के अनुसार आज सिकलीगरों के परिवारों के पांच बच्चों ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग कोर्स के लिए दाखिला लिया है। एक बच्चा मकैनिकल इंजीनियरिंग कर रहा है तथा दो बच्चे आइटीआइ कर रहे हैं। सिगलीगरों व उनके बच्चों की सोच बदल चुकी है। अब सिगलीगरों के बच्चे डॉक्टर व इंजीनियर बनने की बात करते हैं।
उन्होंने कहा कि ट्रस्ट का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से गरीबी को समाज से भगाना है क्योंकि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जिससे गरीबी पर प्रहार किया जा सकता है। अब इस स्कूल को पंजाब सरकार ने भी ‘स्कूल आफ हैपीनेस’ शृंखला के स्कूलों में शामिल किया है। इसके कारण अब सरकार इस स्कूल को बेहतर बनाने के लिए 44 लाख रुपये खर्च करेगी।
शिक्षा तक हर वर्ग के बच्चों की पहुंच होनी चाहिए। एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित रह गया तो यह पूरे समाज की हार है। पंजाब सरकार को चाहिए कि वह एनआरआइ और स्वयं सेवी संस्थाओं की सहायता लेकर शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाने का कार्य करे।
-रंजीत सिंह, एनआरआइ
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