कौन हैं IAS अशोक खेमका? 65 पदों पर दी सेवाएं, 32 साल के करियर में 52 बार झेला ट्रांसफर; अब हुए रिटायर
32 साल के करियर में 52 बार तबादला झेलने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका बुधवार को रिटायर हो गए। रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ भूमि सौदे और बीज निगम घोटाले जैसे मामलों में अपनी बेबाक राय के लिए वो हमेशा चर्चा में रहे। हरियाणा सरकार में उन्हें बार-बार ट्रांसफर का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद रखी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। 32 साल के करियर में 52 बार स्थानांतरण झेलने वाले चर्चित आईएएस अधिकारी डॉ. अशोक खेमका बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए। एक सितंबर 1993 को नारनौल के एसडीएम से प्रशासनिक सफर शुरू करने वाले खेमका ने कुल 65 पदों पर काम किया, जिनमें से 13 पद उन्हें अतिरिक्त कार्यभार के रूप में मिले।
राबर्ट वाड्रा और DLF के बीच जमीन वाले मामले में हुए थे चर्चित
परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और 1991 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. खेमका के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में हरियाणा आईएएस ऑफिसर एसोसिएशन ने उन्हें भावपूर्ण विदाई दी। अशोक खेमका किसी विभाग में औसतन करीब सात महीने रहे।
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वह कई मामलों को लेकर सुर्खियों में रहे, जिनमें सबसे बड़ा मामला था सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच जमीन के लेन-देन का। वर्ष 2012 में उन्होंने राबर्ट वाड्रा से जुड़े एक जमीन के सौदे के म्यूटेशन को रद कर दिया था। तब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे।
2011 में भी इस वजह से बटोरी थी सुर्खियां
हालांकि, उनकी एक अलग पहचान इससे पहले वर्ष 2011 में ही बन गई थी, जब वे सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग में निदेशक के पद पर थे। खेमका ने इस दौरान हरियाणा के मुख्य सचिव को कुछ चिट्ठियां लिखी थीं, जिनमें कहा गया था कि उन्हें मौजूदा सरकार (भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार) में बेइज्जत किया जा रहा है। आरोप है कि उन्हें एक जूनियर पद दिया गया।
खेमका ने कहा कि उनसे कम अनुभव वाले अफसरों को महानिदेशक, आयुक्त और प्रबंध निदेशकों के पद सौंपे गए हैं, जबकि उन्हें निदेशक पद पर ही रखा गया। इसी दौरान उन्होंने बुढ़ापा पेंशन में फर्जीवाड़ा उजागर करते हुए अपात्र लोगों की पेंशन काटनी शुरू कर दी। विवाद बढ़ा तो उन्हें इस पद से हटा दिया गया।
अशोक खेमका को इसके बाद हारट्रोन में नियुक्त किया गया। यहां उन्होंने विभाग में कंसल्टेंट्स (परामर्शदाताओं) की हायरिंग और सार्वजनिक फंड्स से करोड़ों के भुगतान को लेकर सवाल उठाए। इसके बाद उन्हें इस विभाग से भी दो महीने में ही ट्रांसफर कर दिया गया।
फिर उन्हें जमीन अधिग्रहण अफसर और विशेष कलेक्टर के तौर पर नियुक्त किया गया। हालांकि, उन्होंने यहां भी विवादित जमीन अधिग्रहणों पर सवाल जारी रखे। तब उन्होंने किसानों की जमीन छीनने का मुद्दा उठाते हुए नेताओं और नौकरशाही की मिलीभगत की भी बात कही थी।
बीज निगम में भी गड़बड़ियां उजागर की
वाड्रा-डीएलएफ मामले में कांग्रेस सरकार के घिरने के बाद हुड्डा सरकार ने अशोक खेमका को हरियाणा के बीज निगम में ट्रांसफर कर दिया। यहां प्रबंध निदेशक रहते हुए उन्होंने गेहूं के बीजों की उच्च दरों पर खरीद के घोटाले का खुलासा कर दिया।
इस मामले में निगम पर ही बीजों को ज्यादा कीमत पर खरीदने का आरोप लगा। हरियाणा सरकार ने फिर से उनका ट्रांसफर कर दिया। हुड्डा सरकार के कार्यकाल के आखिरी डेढ़ साल में वे पुरातत्व विभाग में जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
परिवहन आयुक्त रहते हुए ओवरलोडिंग पर उठाए थे सवाल
2014 में हरियाणा में भाजपा सरकार आई। इसी के साथ अशोक खेमका की मुख्यधारा में वापसी सुनिश्चित हुई। खेमका को नवंबर 2014 में परिवहन आयुक्त नियुक्त किया गया। परिवहन आयुक्त बनते ही उन्होंने ओवरलोड वाहनों पर शिकंजा कस दिया। विवाद के चलते पांच महीने बाद ही उन्हें फिर से पुरातत्व विभाग में भेज दिया गया।
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