कड़ी सुरक्षा के बीच सुखबीर बादल ने की श्री फतेहगढ़ साहिब में सेवा, जानिए कब खत्म होगी धार्मिक सजा?
सुखबीर बादल ने श्री फतेहगढ़ साहिब में पहरेदारी व बर्तन धोने की सेवा की। यह सेवा उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब से सुनाई गई धार्मिक सजा के रूप में दी गई थी। रविवार का दिन उनके लिए काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि इस दिन उनके पिता प्रकाश सिंह बादल का जन्मदिवस भी था। हालांकि अखंड पाठ के भोग में सुखबीर बादल शामिल नहीं हो पाए।
इन्द्रप्रीत सिंह, फतेहगढ़ साहिब। रविवार का दिन शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन की लगातार दस वर्ष तक सरकार लाने में अहम भूमिका निभाने वाले सुखबीर बादल के लिए कुछ खास था। रविवार को उनके स्वर्गीय पिता प्रकाश सिंह बादल का जन्मदिवस भी था। प्रकाश सिंह बादल का पिछले वर्ष अप्रैल महीने में देहांत हो गया था।
परिवार ने गांव बादल में अखंड पाठ साहिब रखवाया हुआ था, जिसका रविवार को ही भोग पड़ना था परंतु सुखबीर बादल इसमें शामिल नहीं हो पाए क्योंकि उन्हें कुछ ही देर में श्री फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारा साहिब में श्री अकाल तख्त साहिब से सुनाई गई धार्मिक सजा सेवा निभानी थी।
अखंड पाठ के भोग में नहीं हो पाए शामिल
सुबह-सवेरे सुखबीर के चेहरे पर एक ठहराव दिख रहा था। कोई भाव नजर नहीं आ रहा था। वह दरबान के रूप में चरण पाहुल (जहां गुरुद्वारा साहिब के अंदर जाने से पूर्व पांव धोए जाते हैं) के बगल में अपनी व्हीलचेयर पर नीला चोला पहनकर हाथ में बरछा लिए चुपचाप बैठे रहे। उनके सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें पूरी तरह घेरा रखा था। चार दिन पहले जब इसी तरह वह श्री दरबार साहिब के प्रवेश द्वार पर सेवा कर रहे थे, तब आतंकी नारायण सिंह चौड़ा ने उन पर जानलेवा हमला किया था।
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सुखबीर शायद उस दिन की घटना को भुला भी चुके होंगे, लेकिन उनके चेहरे पर दुख का भाव उनकी पीड़ा को बता रहा था। अपने पिता के जन्मदिन पर रखे अखंड पाठ के भोग में भी वह इसलिए शामिल नहीं हो सके क्योंकि वह श्री तख्त साहिब से तनखैया करार दिए जा चुके थे। तनखैया व्यक्ति की अरदास तब तक स्वीकार नहीं की जाती, जब तक वह अपनी धार्मिक सजा को पूरा नहीं कर लेता। अपने पिता का ‘फख्र-ए-कौम’ सम्मान वापस लिए जाने का भी उन्हें दुख है।
सेवा के लिए आए अकाली नेताओं के लिए यह अवसर कुछ विशेष था। विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले चाहे दरबारा सिंह गुरु हों या अमलोह के राजू खन्ना या कोई और, सभी अपने-अपने समर्थकों को साथ लाए थे। गांव स्तरीय ये नेता भी ग्रुप में इकट्ठे होकर फोटो खिंचवा रहे थे ताकि बाद में बता सकें कि वे प्रधान जी की सेवा के दौरान आए थे। ऐसा केवल युवा कर रहे थे, लेकिन बुजुर्गों के मन में आज भी पार्टी के खड़े होने की चिंता थी।
पहरेदारी व बर्तन धोने की सेवा की
बस्सीपठाना के उजागर सिंह को लग रहा था कि तख्त साहिब से आदेश के बावजूद दागी और बागी दलों ने अपने चूल्हे नहीं समेटे हैं, इसीलिए सुखदेव सिंह ढींडसा यहां सेवा के लिए नहीं आए। वह श्री केसगढ़ साहिब में सेवा कर रहे हैं जबकि सुखबीर व ढींडसा को एकसमान सेवा लगी थी। तो क्या ढींडसा और सुखबीर के बीच अभी भी दूरियां उसी तरह कायम हैं। उजागर सिंह अपनी पत्नी से इसी बात पर चर्चा कर रहे हैं।
सुखबीर बादल ने श्री फतेहगढ़ साहिब में पहरेदारी व बर्तन धोने की सेवा की। कीर्तन भी सुना। इसके बाद वह अपने गांव बादल चले गए। कल वह तख्त श्री दमदमा साहिब में दो दिन सेवा निभाकर चालीस मुक्तों की धरती मुक्तसर साहिब में सेवा पूरी करेंगे।
यह वही गुरुद्वारा है जहां उन चालीस मुक्तों का बेदावा (युद्ध में साथ छोड़ने के लिए लिखकर दिया गया पत्र) श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने फाड़कर उन्हें माफ कर दिया था। सुखबीर बादल ने भी अपने जिन गुनाहों को श्री अकाल तख्त साहिब पर स्वीकार किया है, उसकी सेवा इसी गुरुद्वारा साहिब में पूरी होगी। अब देखना यह है कि क्या पंथ भी सुखबीर बादल को माफ करेगा।
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