कर्मचारियों को अपने मकानों के लिए करना होगा और इंतजार, इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम को चंडीगढ़ प्रशासन ने SC में दी चुनौती
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम के पक्ष में दिए फैसले को यूटी प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस फैसले से कर्मचारियों को अपने मकानों के लिए और इंतजार करना होगा। हाईकोर्ट ने 2008 की सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम को सिरे चढ़ाने के निर्देश दिए थे। अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी।
राजेश ढल्ल, चंडीगढ़। इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम के पक्ष में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसके खिलाफ यूटी प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दायर कर दी है। ऐसे में अब कर्मचारियों को अब अपने मकानों के लिए और इंतजार करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट की ओर सुनवाई की तारीख तय की है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के आए फैसले पर मुहर लगाएगा। लेकिन स्कीम में देरी होने से फ्लैट की कीमत और बढ़ जाएगी।
पिछले 16 साल से 3930 कर्मचारी और उनका परिवार अपनी हाउसिंग स्कीम के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबकि पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला 31 मई को आया था।
इस मामले में जुलाई माह में हाउसिंग इंप्लाइज सोसाइटी ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है ताकि याचिका पर प्रथम सुनवाई के समय ही कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका मिल सके। कर्मचारियों को पहले ही पता था कि यूटी प्रशासन हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगा।
परियोजना के लिए नोडल एजेंसी चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। 90 दिनों के भीतर एसएलपी दायर की जानी चाहिए। लेकिन प्रशासन ने इसे भी देरी से दाखिल किया है।
हाईकोर्ट का फैसला आए हो गए छह माह
31 मई को पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला आए हुए छह माह से ज्यादा हो गए हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन और चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए 2008 की सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम को सिरे चढ़ाने के निर्देश दिए थे।
इसके साथ ही हाईकोर्ट डबल बैंच ने मामले में आदेश जारी होने के दो महीने के भीतर सेल्फ फाइनेंसिंग हाउसिंग स्कीम की कंस्ट्रक्शन शुरू करने और एक वर्ष के भीतर 3930 फ्लैट तैयार करने के निर्देश दिए थे।
असल में यूटी प्रशासन इसलिए स्कीम को सिरे नहीं चढ़ाना चाहता क्योंकि वह स्कीम के लिए पुराने रेट पर जमीन देने के लिए तैयार नहीं है। प्रशासन का मानना है कि इस स्कीम को सिरे चढ़ाने पर 4400 करोड़ रुपये की लागत आ रही है। जिसमें जमीन की कीमत भी शामिल है।
साल 2012 के आए पत्र ने स्कीम में पैदा की रुकावट
केंद्र सरकार ने बनने वाले फ्लैट के निर्माण के लिए जमीन का टाइटल तो क्लीयर कर दिया था। लेकिन पुराने रेट पर सरकार जमीन देने के लिए तैयार नहीं हुए हैं। इसलिए कर्मचारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
साल 2012 को केंद्र सरकार द्वारा एक पत्र जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी योजना के लिए बाजार मुल्य से कम पर जमीन नहीं दी जाए। यह हाउसिंग स्कीम सेक्टर-52, 53 और 56 में करीब 45.5 एकड़ में तैयार होनी थी।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्कीम में सफल कर्मचारियों को ब्रोशर रेट 7920 पर जमीन का भुगतान करना होगा, जबकि कंस्ट्रक्शन खर्च मौजूदा रेट के हिसाब से देय होगा। हाउसिंग स्कीम के इंतजार में 100 से अधिक कर्मचारियों की मौत हो चुकी है, जबकि 950 रिटायर भी हो चुके हैं।
अब देरी के कारण जो लागत बढ़ेगी, वह भी प्रशासन के अधिकारियों पर डालनी चाहिए। उनका कहना है कि अगर इस तरह कोई निजी बिल्डर करता तो क्या प्रशासन उसे भी इसी तरह से लेट लतीफी और कर्मचारियों से धोखा करने देता। जिन सफल आवेदकों के पास सरकारी मकान है। जब तक प्रशासन स्कीम के तहत फ्लैट नहीं दे देता, तब उनसे सरकारी मकान खाली नहीं करवाने चाहिए। - हरजिंदर सिंह, कर्मचारी नेता एवं सफल आवेदक
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।