'बिना जातिगत अपमान की मंशा के नहीं लगेगा SC-ST एक्ट', हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी; क्या है मामला?
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोपों को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केवल इस आधार पर कि पीड़ित एससी/एसटी (SC/ST Act) समुदाय से संबंधित है अपराध साबित नहीं होता। आखिर क्या है ये पूरा मामला और हाईकोर्ट ने इस मामले में क्या टिप्पणी की आइए जानते हैं।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने एक अहम फैसले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोपों को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि महज इस आधार पर कि पीड़ित एससी/एसटी समुदाय से संबंधित है, अपराध साबित नहीं होता।
क्या है पूरा मामला?
जब तक यह साबित न हो कि आरोपित ने पीड़ित को जाति के आधार पर अपमानित करने की मंशा से ऐसा किया है, तब तक इस कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। मामला हरियाणा के अंबाला जिले से जुड़ा है। शिकायतकर्ता फूलचंद ने आरोप लगाया था कि वह अपनी साइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी जब वे पप्पू राणा के खेत के पास पहुंचे, तो याचिकाकर्ताओं (आरोपितों ) ने उन्हें घेर लिया और लोहे की रॉड और तलवारों से हमला किया।
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शिकायत में यह भी कहा गया कि आरोपितों ने उन पर जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 148 (दंगा करना), 323 (चोट पहुंचाना), 325 (गंभीर चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी देना), 427 (संपत्ति को नुकसान पहुंचाना) और 149 (गैर-कानूनी भीड़ द्वारा अपराध करना) के साथ-साथ एससी/एसटी एक्ट की धारा के तहत आरोप तय किए थे।
आरोपितों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी चुनौती
आरोपितों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी और कहा कि उन पर एससी/एसटी एक्ट के तहत लगाए गए आरोप गलत हैं। उन्होंने दलील दी कि उन्होंने शिकायतकर्ता को उसकी जाति के आधार पर अपमानित करने की मंशा से कोई टिप्पणी नहीं की थी और इस कारण उन पर इस विशेष कानून के तहत आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए थे।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल इस आधार पर कि पीड़ित अनुसूचित जाति या जनजाति से संबंधित है, एससी/एसटी एक्ट लागू नहीं किया जा सकता। इसके लिए यह साबित होना जरूरी है कि आरोपित ने पीड़ित को उसकी जाति के कारण अपमानित करने या धमकाने की नीयत से कोई कार्य किया हो।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में जिस शब्द का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन यह साबित नहीं होता कि यह टिप्पणी जातिसूचक अपमान करने के लिए की गई थी। घटना खेत के पास हुई थी जो सार्वजनिक स्थान नहीं माना जा सकता जबकि एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध तभी सिद्ध होता है जब वह सार्वजनिक रूप से किया गया हो।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने इस मामले में आरोप तय करने में गलती की क्योंकि उसने एससी/एसटी एक्ट की गलत धारा लगाई, जबकि यह धारा 2016 में संशोधित हो चुकी थी। इन सभी तथ्यों और कानूनी तर्कों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को आंशिक रूप से रद्द कर दिया और एससी/एसटी एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि, अन्य धाराओं में केस जारी रहेगा।

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