पंजाब के केस में HC की टिप्पणी- इंसान का लालच उम्र, लिंग, जाति आदि को देखकर नहीं जागता
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब के बटाला के एक धोखाधड़ी के मामले में बड़ी टिप्पणी की। बटाला के 95 साल के व्यक्ति पर धोखाधड़ी के मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि इंसान का लालच उम्र लिंग और जाति देखकर नहीं जागता है।

चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। वरिष्ठ नागरिक शिष्टाचार और उचित व्यवहार के हकदार हैं। उनका आदर करना चाहिए लेकिन वरिष्ठ नागरिक होना इस बात की गांरटी नहीं देता कि वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त नहीं हो सकता। इंसान का लालच उसकी उम्र, लिंग, जाति आदि को देखकर नहीं जागता। यह टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब के एक 95 साल के व्यक्ति पर लगे धोखाधड़ी के आरोप के मामले में की।
धोखाधड़ी के आरोपित 95 साल व्यक्ति की अग्रिम जमानत की मांग को खारिज
इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने बटाला निवासी प्यारा सिंह द्वारा एक आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत की मांग की याचिका को खारिज ककर दी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अपने पक्ष में दलील दी थी कि उसकी उम्र 95 साल की है और वह अपने जीवन के अंतिम चरण में है। उम्र का हवाला देकर कोर्ट में कहा गया कि वह इस उम्र में किसी भी तरह का अपराध करने में सक्षम नहीं है।
कहा, वरिष्ठ नागरिक होना गांरटी नहीं देता कि वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त नहीं हो सकता
कोर्ट को बताया गया कि उसके खिलाफ 4 मार्च 2020 को पुलिस स्टेशन बटाला में धोखाखड़ी के तहत मामला दर्ज किया गया था। उसके खिलाफ कुलदीप सिंह नामक व्यक्ति ने एसएसपी गुरदासपुर को शिकायत दी थी कि उसे अमेरिका भेजने के नाम पर याची प्यारा सिंह व अन्य ने लगभग 6.50 लाख्र रुपये की ठगी की। उसे न तो आरोपितों ने अमेरिका भेजा और न ही उसके पैसे वापिस दिए गए। पैसे मांगने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई।
इस पर याची प्यारासिंह ने कहा कि उस पर लगे सभी आरोप झूठे हैं। उसकी उम्र 95 साल से अधिक है। वह किसी भी तरह के अपराध करने में सक्षम नहीं है। इस लिए उसकी उम्र का ध्यान रख कर उसे अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए।
सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इंसान का लालच उसकी उम्र, लिंग, जाति आदि को देखकर नहीं जागता। अग्रिम जमानत एक विवेकाधीन राहत है जो असाधारण मामले में निर्दोष को उत्पीड़न से बचाने के लिए है। इस मामले में याचिकाकर्ता पर सीधे तौर से आरोप हैं, एफआइआर में उस पर शिकायतकर्ता को धोखा देने के स्पष्ट आरोप हैं। इसलिए हाई कोर्ट इस मामले में याची को किसी तरह की कोई राहत नहीं दे सकती। कोर्ट ने अग्रिम जमानत की माग को अस्वीकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
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