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    सवालों के घेरे में पंजाब सरकार, लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव कर उद्योगपतियों को पहुंचाया फायदा

    पंजाब सरकार केंद्रीय कृषि कानूनों के विपरीत अपना कानून बना रही है और खुद को किसान हितैषी साबित करने में लगी है लेकिन सीलिंग एक्‍ट में बदलाव उस पर बड़ा सवाल उठा रहा है। इससे उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।

    By Sunil kumar jhaEdited By: Updated: Fri, 19 Feb 2021 11:17 AM (IST)
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    पंजाब के मुूख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह की फाइल फोटो।

    चंडीगढ़, [इन्‍द्रप्रीत सिंह]। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब सरकार ने संशोधित बिल पारित कर भले ही अपने आप को किसान हितैषी साबित करने का दांव खेला हो, लेकिन सरकार के कुछ फैसले और ही कहानी कहते हैं। इसका एक उदाहरण लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव करना है। हालांकि, ऐसा सिर्फ पंजाब में ही नहीं हुआ। पंजाब समेत कई अन्य राज्यों ने भी बदलाव किया है। इनमें कांग्रेस व भाजपा शासित राज्य शामिल हैं।

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    पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्यों ने किया संशोधन

    जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद 1961 में लैंड सीलिंग एक्ट लागू किया गया था। इसके अनुसार एक व्यक्ति 16 एकड़ से ज्यादा सिंचित भूमि नहीं रख सकता था। असिंचित भूमि के मामले में यह रकबा 18 एकड़ तक बढ़ सकता था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने 2017 में सत्ता में आते ही लैंड सीङ्क्षलग एक्ट से 'पर्सन' की परिभाषा से कंपनी को निकाल दिया था।

    संशोधन से उद्योगपतियों के लिए ज्यादा जमीन खरीदने का रास्ता खुला

    लैंड सीलिंग एक्ट में पर्सन की परिभाषा में व्यक्ति और कंपनी एक ही श्रेणी में था। यानी दोनों के लिए एक ही कानून लागू था, लेकिन राज्य में उद्योगों को लाने की नीतियों के चलते लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव किया गया, जिससे उद्योगपतियों को फायदा हुआ।

    अब पंजाब में औद्योगिक घराने जितनी भी चाहे जमीन रख सकते हैं, जबकि एक व्यक्ति 16 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं रख सकता। पंजाब के अलावा हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि राज्यों ने भी लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन कर बड़ी कंपनियों को उद्योग लगाने के लिए जमीन लेने की राह खोल दी है।

    राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल ने भी इसी दौड़ में शामिल हैं। हालांकि, इन राज्यों में भूखंड काफी ज्यादा हैं और बहुत से इलाकों में सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है। पंजाब में 99 फीसद से ज्यादा रकबा ङ्क्षसचित है और भूखंड के मामले मेें भी राज्य काफी छोटा है। 65 फीसद से ज्यादा किसान सीमांत और छोटे हैं। साफ है कि सरकार के इस तरह के फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान उनका ही होगा। यूपीए सरकार की ओर से 2013 में लाया गया भूमि सुधार कानून काफी विवादों में रहा था। तब भी यह प्रविधान किया गया था कि खेती योग्य भूमि को गैर कृषि काम के लिए न लिया जाए।

    उद्योगों की जमीन पर रियल एस्टेट का कारोबार

    पंजाब समेत जितने भी राज्यों ने लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन किया है, उसका फायदा बड़े उद्योगपतियों को ही हुआ है, क्योंकि बड़े औद्योगिक घरानों को ही ज्यादा जमीन की जरूरत होती है। औद्योगिक घराने अकसर जिन प्रोजेक्टों के लिए जमीन लेते हैं, वहां प्रोजेक्ट नहीं लगाते और उन पर ही रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट बना लेते हैं।

    वहीं, छोटी और मध्यम दर्जे की इंडस्ट्री फोकल प्वाइंटस में ही अपने लिए जमीन तलाशती है, ताकि उन्हें हर तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर वहां उपलब्ध हो, उन्हें अपनी पूंजी न लगानी पड़े। पंजाब के साथ-साथ राजस्थान सरकार ने एनर्जी प्रोजेक्ट्स के लिए कानूनों में संशोधन किया। 2015 में कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने और 2014 में पश्चिम बंगाल सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर को प्रमोट करने के लिए इस तरह के संशोधन किए थे।

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