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    क्या है होला मोहल्ला? होली के बाद सिख ऐसे मनाते हैं यह त्योहार; पढ़ें इतिहास और महत्व?

    Updated: Sat, 15 Mar 2025 03:39 PM (IST)

    होला मोहल्ला सिखों का एक अनूठा त्योहार है जो तीन दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व रंगों के साथ-साथ करतबों कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से भरा होता है। आनंदपुर साहिब में मनाया जाने वाला यह उत्सव गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित किया गया था और इसका गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। आइए इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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    पंजाब में होला मोहल्ला का मनाया जाता है जश्न (जागरण- ग्राफिक्स)

    डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। देशभर में होली का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। वहीं, पंजाब में भी होली का जश्न जमकर दिखा। लेकिन होली के साथ ही सूबे में 'होला मोहल्ला' का उत्सव भी शुरू हो गया है। इस पर्व का जुड़ाव न केवल उमंग और उत्सव से बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक से भी है। यह होला मोहल्ला (What is Hola Mohalla) क्या होता है और इसका क्या महत्व है। आइए, इसके बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं।

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    होला मोहल्ला का त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 14 मार्च से 16 मार्च तक मनाया जा रहा है। इस अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। 

    कैसे मनाया जाता है त्योहार?

    होला मोहल्ला के दिनों में सिख समुदाय के लोग रंगों के साथ करतब और अन्य कलाओं के साथ उत्सव मनाते हैं।  इन दिनों लोग तलवारबाजी, घुड़सवारी और अन्य मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं। इसके साथ ही सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम करते हैं। वहीं, गुरुद्वारों में सुबह की प्रार्थना के साथ कीर्तन और फिर भव्य प्रभात फेरी का आयोजन किया जाता है। सिखों की ओर से मार्शल आर्ट गतका का प्रदर्शन किया जाता है। आनंदपुर साहिब में इस दौरान विशाल मेला भी लगता है।

    यह भी पढ़ें- होली के अनोखे ढंग: कहीं लट्ठमार, तो कहीं जुलूस, देशभर में विविधता से भरा है रंगों का यह त्योहार

    क्या है होला मोहल्ला का इतिहास?

    दरअसल, आज से करीब 300 साल पहले सन् 1701 में आनंदपुर साहिब में सिखों के दशवें गुरु गोविंद सिंह ने आदेश दिया था कि अब सिख होली का पर्व नहीं मनाएंगे। इस तरह गुरु गोविंद सिंह ने पर्व को रंग अबीर की जगह इसे वीर सैन्यकर्मियों का त्योहार बना दिया।

    वहीं, एक अन्य जानकारी के अनुसार थॉप्मसन (2000) के अनुसार, गुरु गोविंद सिंह ने 1701 के वसंत में होला मोहल्ला की स्थापना की। वहीं कोल (1994) की माने तो गुरु गोविंद सिंह ने अपने अनुयायियों को होली खेलने के लिए आनंदपुर साहिब बुलाया था। इस मौके पर होली के साथ-साथ अनुयायियों को युद्धाभ्यास भी कराना था। इस दिन सभी लोग गुरुद्वारे में कीर्तन भी करते हैं।

    इस त्योहार का उद्देश्य एकता, बंधुत्व, वीरता और पारस्परिक प्रेम को फैलाना है। इसलिए सिख समुदाय के लिए यह त्योहार धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है और दुनियाभर में सिख समुदाय द्वारा इस त्योहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

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