Hola Mohalla History: जानिए होला मोहल्ला का 324 साल पुराना इतिहास, सिख समुदाय क्यों मनाता है इसे?
Patna News पटना साहिब में सिखों ने शनिवार को होला-मोहल्ला पर्व मनाया। पंच-प्यारों की अगुवाई में नगर-कीर्तन निकाला गया जिसमें सिख जत्थे ने शौर्य और वीरता का प्रदर्शन किया। दरबार साहिब में अरदास और शस्त्र दर्शन के बाद तख्त परिसर में परिक्रमा की गई और फूलों की वर्षा के बीच नगर-कीर्तन निकला। होला मोहल्ला वर्ष 1701 से मनाया जा रहा है।

जागरण संवाददाता,पटना सिटी। Patna News: सिखों के दूसरे तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब में सिखों ने शौर्य व वीरता का प्रदर्शन करते हुए शनिवार को उमंग और उत्साह के साथ होला-मोहल्ला पर्व मनाया। सिखों ने परंपरागत ढंग से पंच-प्यारों की अगुवाई में दिन में लगभग 10:30 बजे तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब से नगर-कीर्तन निकाला।
इससे पहले दरबार साहिब में जत्थेदार ज्ञानी बलदेव सिंह द्वारा अरदास व शस्त्र दर्शन कराने के बाद तख्त परिसर में परिक्रमा के दौरान फूलों की वर्षा के बीच नगर-कीर्तन निकला। होला-मोहल्ला में कनाडा, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, यूपी, मुंबई व अन्य स्थानों से आए सिख जत्था भी शामिल हुए।
होला-मोहल्ला का इतिहास (Hola Mohalla History)
तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सरदार जगजोत सिंह सोही ने बताया कि वर्ष 1701 को आनंदपुर साहेब में दशमेश गुरु गोविंद सिंह ने आदेश दिया था कि अब से सिख होली नहीं होला मनाएंगे। दशमेश गुरु ने रंग-अबीर की जगह इसे वीर सैनिकों का त्योहार बना दिया।
वहीं, थॉम्पसन (2000) के अनुसार, गुरु गोविंद सिंह ने 1701 के वसंत में होला मोहल्ला की स्थापना की। इसी तरह, कोल (1994) ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह ने अपने अनुयायियों को होली के दिन आनंदपुर में आने के लिए बुलाया था।
जब उन्होंने 1680 में होली खेलने की जगह एक नई रैली शुरू की थी, जहां उनके अनुयायी युद्धाभ्यास और युद्ध की ट्रेनिंग का अभ्यास कर सकते थे। यह तीन दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है। महिलाएं और पुरुष गुरुद्वारा से किर्तन निकालते हैं।
कंगन घाट व बाललीला गुरुद्वारा में कीर्तन से संगत हुई निहाल
पंच-प्यारे की अगुवाई और बैंड-बाजे के साथ तलवार, भाला व ढाल लिए सिख संगत श्री गोविंद सिंह घाट गई। उसके बाद झाऊगंज गली मार्ग होते अशोक राजपथ से चौक होते मंगल तालाब भ्रमण करते नगर-कीर्तन बाल लीला गुरुद्वारा मैनी संगत पहुंची। बाललीला गुरुद्वारा में कीर्तन से संगत निहाल हुई।
कथावाचक ने होला-मोहल्ला की महत्ता पर प्रकाश डाला। बाल-लीला गुरुद्वारा में विशेष लंगर में संगत ने पंगत में बैठ प्रसाद छके। बाद में नगर-कीर्तन दोपहर दो बजे तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब पहुंचेगा। नगर कीर्तन में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे।
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