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    Amalaki Ekadashi 2025: आमलकी एकादशी पर इस विधि से करें लक्ष्मी चालीसा का पाठ, सभी पापों का होगा नाश

    फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi 2025) व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पापों का नाश होता है। साथ ही व्रत करने से जीवन में सभी सुख मिलते हैं। इस दिन पूजा के दौरान सच्चे मन से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना फलदायी साबित होता है।

    By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 03 Mar 2025 09:00 PM (IST)
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    Amalaki Ekadashi 2025: कैसे करें लक्ष्मी चालीसा का पाठ?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी व्रत को जीवन के पापों से छुटकारा पाने के लिए शुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार, 10 मार्च (Amalaki Ekadashi 2025 Date) को आमलकी एकादशी व्रत किया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। ऐसे में इस दिन लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। धार्मिक मान्यता है कि लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से आर्थिक तंगी दूर होती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। आइए जानते हैं कैसे करें लक्ष्मी चालीसा का पाठ।

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    इस विधि से करें तुलसी चालीसा का पाठ

    • आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
    • इसके बाद घी का दीपक जलाकर पूजा की शुरुआत करें।
    • मां लक्ष्मी को सोलह शृंगार अर्पित करें।
    • आरती करने के बाद सच्चे मन से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
    • आखिरी भोग लगाएं और लोगों में प्रसाद का वितरण करें।

    आमलकी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त

    पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 मार्च को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर होगी और अगले दिन यानी 10 मार्च को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर तिथि का समापन होगा। ऐसे में 10 मार्च को आमलकी एकादशी मनाई जाएगी।

    लक्ष्मी चालीसा

    ॥ सोरठा॥

    यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

    सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

    ॥ चौपाई ॥

    सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥

    तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

    जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

    तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

    जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

    विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

    केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

    कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

    ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

    क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

    चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

    जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

    स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

    तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

    अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

    तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

    मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

    तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

    और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

    ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

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    त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

    जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

    ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

    पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

    विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

    पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

    सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

    बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

    प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

    बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

    करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

    जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

    तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

    मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

    भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

    बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

    नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

    रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

    केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

    ॥ दोहा॥

    त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

    जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

    रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

    मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

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