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Rafale Deal: जानें, क्यों गलत हैं राहुल गांधी और सौदे से HAL के बाहर होने की क्या है असली वजह

जानिए राफेल डील से HAL कैसे बाहर हुई और इसमें सरकार की क्या भूमिका थी? डील के इन गोपनीय तथ्यों से आपको जानने में मदद मिलेगी कि राहुल के आरोपों में कितनी सच्चाई है?

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 03 Jan 2019 12:12 PM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 10:10 AM (IST)
Rafale Deal: जानें, क्यों गलत हैं राहुल गांधी और सौदे से HAL के बाहर होने की क्या है असली वजह
Rafale Deal: जानें, क्यों गलत हैं राहुल गांधी और सौदे से HAL के बाहर होने की क्या है असली वजह

नई दिल्ली [जागरण विशेष]। राफेल, ये लड़ाकू विमान दुश्मन पर कितना कारगर होगा, ये तो वक्त बताएगा, लेकिन भारतीय राजनीति में इसके नाम से ही युद्ध छिड़ा हुआ है। सरकार हो या विपक्ष दोनों एक-दूसरे पर हमला करने के लिए अभी से राफेल का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। आलम ये है कि विपक्ष राफेल डील पर सरकार को सड़क से संसद तक घेरने का प्रयास कर रहा। नतीजतन न तो संसद चल रही है और न ही आम लोगों के हित के लिए लटके हुए बिल पास हो पा रहे हैं। ऐसे में आपके लिए भी ये जानना बेहद जरूरी है कि राफेल डील के विवाद की जड़ क्या है? इस पूरी डील से सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल्स लिमिटेड (HAL) क्यों बाहर हुई और उसे बाहर करने या अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड (RDL) को सौदा दिलाने में सरकार की कितनी भूमिका है?

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सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने क्या कहा?
केंद्र सरकार ने राफेल विवाद में सुप्रीम कोर्ट को सौदे से संबंधित जानकारियां दी थीं। इसमें विमान की कीमत (सीलबंद लिफाफे में) से लेकर HAL के डील से बाहर होने की वजह विस्तार से बताई गई है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान राफेल के लिए हुई डील में 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया का ही पालन करते हुए और बेहतर शर्तों पर बातचीत की गई थी। सौदे से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति ने भी मंजूरी दी थी।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के आरोपों का भी जवाब दिया है। इसमें कहा गया है कि सरकार ने आरडीएल को डील में शामिल करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया। ऐसा संभव भी नहीं है, क्योंकि रक्षा ऑफसेट दिशानिर्देशों के अनुसार दसॉ एविएशन, ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने के लिए अपने भारतीय ऑफसेट सहयोगी का चयन करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।

तो इसलिए बाहर हुई थी एचएएल
सितंबर-2018 में मीडिया को जानकारी देते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने विस्तार से बताया था कि क्यों सरकारी कंपनी एचएएल इस डील से बाहर हुई थी। उन्होंने इसके लिए एचएएल की खराब हालत को जिम्मेदार बताया था। साथ ही उन्होंने बताया था कि राफेल विमानों का भारत में उत्पादन करना काफी महंगा साबित हो रहा था। दरअसल एचएएल के पास इतनी क्षमता ही नहीं थी कि वह फ्रांस की कंपनी दॉसो एविएशन संग भारत में इस लड़ाकू विमान का निर्माण कर सके।

एचएएल के साथ कई दौर की वार्ता और बहुत से अनसुलझे मुद्दों की वजह से दॉसो एविएशन कंपनी ने ही उसके साथ डील को निरस्त करने का निर्णय लिया था। डील की शर्तों के मुताबिक दॉसो एविएशन, अपनी भारतीय सहयोगी कंपनी चुनने के लिए स्वतंत्र है। इसी के तहत उसने एचएएल को बाहर करने का निर्णय लिया था।

एचएएल के बाहर होने की ये है दूसरी अहम वजह
एचएएल के डील से बाहर होने की दूसरी अहम वजह ये है कि भारतीय वायुसेना को इन लड़ाकू विमानों के लिए गारंटी चाहिए थी। गारंटी समय सीमा में विमान आपूर्ति और उसकी तकनीक की। एचएएल, इस तरह की गारंटी देने को तैयार नहीं थी। यहां आपके लिए ये भी जानना जरूरी है कि एचएएल का रक्षा उपकरणों की सप्लाई में देरी का इतिहास रहा है।

कैसे बढ़ गई राफेल की कीमत
राफेल डील को लेकर राहुल गांधी लगातार सरकार पर हमला बोल रहे हैं। बुधवार को भी संसद में उन्होंने सरकार पर जमकर हमला बोला और भारी हंगामे के बाद सदन को स्थगित करना पड़ा था। संसद में काफी समय से ऐसी स्थिति बनी हुई है। राहुल गांधी का आरोप है कि एनडीए सरकार हर विमान को 1670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार 126 लड़ाकू विमानों खरीदने पर बातचीत कर रही थी और उसकी कीमत 526 करोड़ रुपये तय की गई थी।

रक्षामंत्री निर्मला सीतारण ने सितंबर 2018 में इस सवाल का भी जवाब दिया था। उन्होंने बताया था कि राफेल विमान को नई हथियार प्रणाली और दूसरे एड-ऑन फीचर के साथ और आधुनिक किया गया है। ये फीचर व हथियार पहले की डील में शामिल नहीं थे। रक्षा मंत्री ने कहा था कि 526 करोड़ की कीमत वाला विमान सिर्फ उड़ने और उतरने की क्षमता रखता था। इसमें लगाए जाने वाले साजों सामान के चलते कीमत में यह बढ़ोत्तरी हुई है। बावजूद विमान नौ फीसद सस्ता पड़ रहा है।

यूपीए में ही बाहर हो गई थी HAL
राफेल डील रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पहले भी कह चुकी हैं कि HAL, UPA के कार्यकाल में ही राफेल डील से बाहर हो गई थी। UPA सरकार के दौरान ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और दॉसो एविएशन कंपनी, उत्पादन की शर्तों पर राजी नहीं हुए थे। इसीलिए HAL और राफेल एक साथ नहीं जा सकते थे।

राफेल डील पर विपक्ष का आरोप
राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस का आरोप है कि एनडीए सरकार हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है। वहीं यूपीए सरकार 526 करोड़ रुपये प्रति विमान की कीमत पर 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी। राहुल गांधी ने ये भी आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की एक कंपनी का चयन करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन को मजबूर किया था, ताकि उसे लाभ पहुंचाया जा सके। कांग्रेस राफेल डील से एचएएल के बाहर होने पर लगातार सवाल उठा रही है। इसके अनुसार दॉसो एविएशन को 18 राफेल विमान पूरी तरह तैयार हालत में उपलब्ध कराने थे और 108 विमान का उत्पादन एचएएल के सहयोग से भारत में करना था।

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