EXCLUSIVE: 2जी विवाद से दूरसंचार के स्वर्णिम काल पर लगा था ब्रेक
2जी घोटाले से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की छवि को भी काफी नुकसान पहुंचा था।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। सीबीआइ कोर्ट के फैसले के बाद फिलहाल यह माना चाहिए कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई घोटाला नहीं हुआ है। वैसे जब वर्ष 2008 में इस घोटाले की बात सामने आनी शुरु हुई थी उसके पहले तक दूरसंचार कंपनियों की ही नहीं बल्कि दूरसंचार क्षेत्र के सारे ग्राहकों की भी चांदी हुई जा रही थी। विडंबना यह है कि जिस काल को दूरसंचार क्षेत्र का सबसे बड़े घोटाले के तौर पर बताया गया है उसे मोबाइल कंपनियों के लिए स्वर्णिम काल के तौर पर जाना जाता है। इसी दौरान देश में दूरसंचार सेवा दरों में भारी कमी हुई थी। मोबाइल कंपनियों ने अपने नेटवर्कों में सबसे तेज गति से विस्तार किया था। देश में दुनिया की कई दिग्गज दूरसंचार कंपनियों ने निवेश करने की शुरुआत की थी। घरेलू स्तर पर भी कंपनियों का बड़े कंपनियों का व्यापक पुनर्गठन हुआ था।
2001 से 2008 तक खंगाला गया इतिहास
सुप्रीम कोर्ट ने जब ''2जी घोटाले की जांच शुरु की थी और तब वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2008 तक घरेलू दूरसंचार क्षेत्र की तमाम गतिविधियों को अब खंगाला गया था। लेकिन बहुत लोगों को यह मालूम नहीं होगा कि इस दौर में देश में दूरसंचार घनत्व दो फीसदी से बढ़ कर 26 फीसदी हो गया। इस दौर में सउदी अरब की एतीसालात, नार्वे की टेलीनोर, रूस की सिस्टेमा, मलयेशिया की स्वान जैसी कंपनियों ने भारतीय बाजार में प्रवेश किया। यही नहीं विश्व की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी वोडाफोन ने तब की घरेलू मोबाइल कंपनी हच का अधिग्रहण कर भारतीय बाजार में प्रवेश किया। इसी दौरान भारती समूह भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया की अग्रणी दूरसंचार कंपनियों में शामिल हुई। इसके मूल्यांकन में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संक्रमण काल में दूरसंचार क्षेत्र
बाद में जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तमाम दूरसंचार सर्किलों के लाइसेंस रद्द किये गये तो समूचे दूरसंचार क्षेत्र के लिए संक्रमण काल शुरु हो गया। एतीसालात, सिस्टेमा जैसी तमाम विदेशी कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ा। इन कंपनियों ने भारतीय साझेदार टेलीकाम कंपनियों को भारी भरकम राशि दे कर यहां कारोबार शुरु किया था। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की छवि को भी काफी नुकसान पहुंचा था। इन कंपनियों ने भारत पर आरोप लगाया गया कि वह उद्योग क्षेत्र में अपने किये वादे से मुकर जाता है। यही नहीं 2 जी कंपनियों को स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए सरकारी बैैंकों ने जो लोन दिया था उसमें से 16,000 करोड़ रुपये कभी वापस नहीं हो सके।
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