भूल गए राहुल कैसे बना था ISIS, हम याद दिला देते हैं आतंकी संगठन का इतिहास
जर्मनी में राहुल गांधी ने जिस तरह से आईएसआईएस को बेरोजगारी से जोड़ा उस पर सियासत का बाजार बेहद गर्म है। गर्म इसलिए क्योंकि जो तर्क राहुल गांधी ने आईएसआईएस के गठन को लेकर दिया वह कईयों के गले नहीं उतर पा रहा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जर्मनी में राहुल गांधी ने जिस तरह से आईएसआईएस को बेरोजगारी से जोड़ा उस पर सियासत का बाजार बेहद गर्म है। गर्म इसलिए क्योंकि जो तर्क राहुल गांधी ने आईएसआईएस के गठन को लेकर दिया वह कईयों के गले नहीं उतर पा रहा है। आईएसआईएस को लेकर बयान देते समय वह इस बात को भी भूल गए कि आईएसआईएस में कई ऐसे लोग शामिल हुए जो पहले अच्छी नौकरियों में थे। कई बेहद हाईक्वालीफाई भी इसके सदस्य बन गए और गलत राह पर चल निकले। लिहाजा राहुल गांधी के बयान पर सियासी बाजार तो गर्म होना ही था। हालांकि यह पहला मौका नहीं है कि जब राहुल गांधी ने इस तरह की गलतबयानी विदेश में भाषण के दौरान की है। उनकी इस तरह गलतबयानी की एक लंबी फैहरिस्त है, लेकिन सबसे पहले हमें यह जानलेना जरूरी है कि आखिर आईएसआईएस को लेकर उन्होंने क्या कहा।
राहुल गांधी ने आखिर क्या कहा
दरअसल, बर्लिन में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान उन्होंने मॉब लिंचिंग की घटनाओं की बेरोजगारी से जोड़ दिया। बेरोजगारी के लिए उन्होंने आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का उदाहरण तक दे डाला। उन्होंने कहा कि सीरिया और इराक ने अमेरिका के दबाव में एक समुदाय को नौकरी नहीं दी। जिसकी वजह से उन्होंने आईएसआईएस नाम का संगठन बना लिया। उन्होंने कहा कि यदि विकास की प्रक्रिया से लोगों को बाहर रखा गया, तो इसी तरह के हालात देश में पैदा हो सकते हैं। लोगों को बाहर रखना 21वीं सदी में बेहद खतरनाक है। अगर 21वीं सदी में आप लोगों को नजरिया नहीं देते हैं तो कोई और देगा।
जानिये कैसे बना आईएसआईएस
अपने भाषण को देते समय राहुल गांधी से जो चूक हुई उसकी भरपाई कैसे पार्टी करेगी ये तो वक्त ही बताएगा बहरहाल हम आपको बता देते हैं कि आखिर खूंखार आतंकी संगठन कब कहा और कैसे बना। दरअसल, आईएसआईएस के बनने की कहानी काफी पुरानी है। एक लंबी लड़ाई के बाद अमेरिका इराक को सद्दाम हुसैन के चंगुल से आजाद करा चुका था। अमेरिकी सेना के इराक छोड़ते ही बहुत से छोटे-मोटे गुट अपनी ताकत की लड़ाई शुरू करने लगे। उन्हीं में से एक गुट का नेता अबू बकर अल बगदादी था। अल-कायदा इराक 2006 से ही इराक में अपनी जमीन तैयार करने में लगा था। लेकिन उस वक्त उसके पास पैसे और लड़ाके दोनों ही नहीं थे। वर्ष 2011 में जब अमेरिकी सेना इराक से लौटी तब इराक सत्ताविहीन था। संसाधनों की कमी के चलते तब बगदादी ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा था। हालांकि इराक पर कब्जे के लिए तब तक उसने अल-कायदा इराक का नाम बदल कर नया नाम आईएसआई यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक रख लिया था।
बगदादी का सीरिया का सफर
अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए बगदादी ने सद्दाम हुसैन की सेना के कमांडर और सिपाहियों को अपने साथ मिलाया। उसने अपन शुरुआती हमलों में पुलिस, सेना के दफ्तर, चेकप्वाइंट्स और रिक्रूटिंग स्टेशंस को निशाना बनाना शुरू किया। लेकिन तब तक इसके सदस्य हजारों में पहुंच चुके थे, बावजूद इसके बगदादी को इराक में वो कामयाबी नहीं मिल रही थी। लिहाजा यहां से बगदादी ने सीरिया का रुख करने का फैसला किया। सीरिया अभी की तरह की उस वक्त भी गृहयुद्ध की आग में जल रहा था।
सीरिया में पहले नहीं मिली कामयाबी
सीरिया में भी बगदादी को शुरुआती कुछ वर्षों में कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली। एक बार फिर उसने अपने संगठन का नाम बदला और इस बार आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) कर दिया था। जून 2013 को फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने पहली बार सामने आकर दुनिया से अपील की थी कि अगर उन्हें हथियार नहीं मिले तो वो बागियों से अपनी जंग एक महीने के अंदर हार जाएंगे। यह आर्मी सीरिया में राष्ट्रपति के खिलाफ जंग लड़ रही थी। इस अपील के बाद अमेरिका, इजराइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथियार, पैसे, और ट्रेनिंग की मदद देनी शुरू कर दी। लेकिन साल भर के अंदर ही यह सारे हथियार और लड़ाके आईएसआईएस के हवाले हो गए।
अमेरिका बनी वजह
कहीं न कहीं अमेरिका भी यह समझने में नाकाम रहा था कि आखिर वो एक आतंकी संगठन को ट्रेनिंग दे रहा है या किसी ओर को। खुद एडवर्ड स्नोडेन ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था कि अमेरिका, ब्रिटेन और इजराइल ने मिलकर बगदादी के संगठन आईसिस को मजबूत किया। स्नोडने की मानें तो बगदादी को सभी तरह के हथियार चलाने की ट्रेनिंग इजरायल से ही मिली थी। इसके बाद बगदादी ने मिडिल ईस्ट में कई हमलों को अंजाम दिया। धीरे-धीरे उसका यह आतंक पैर फैलाने लगा था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि सीरिया, लीबिया और इराक तीनों ही तेल के लिहाज से काफी अमीर हैं। इस तेल के खेल में आईएस को रोजाना 26 करोड़ 50 लाख रुपये की कमाई होती थी।
एक साल में ISIS का इन इलाकों में कब्जा
आईएसआईएस अब तक सीरिया और इराक के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा चुका था। इनमें इन दोनों देशों के कई बड़े शहर भी शामिल थे। इराक में तो आईएसआईएस अब लगातार बगदाद की तरफ बढ़ता जा रहा था। जून 2014 से इस आतंकी संगठन के हमले और बढ़ गए। कई जगहों पर आईएसआईएस ने अपनी सरकार भी चलाई। इस आतंकी संठन ने सीरिया के रक्का, पामयेरा, दियर इजौर, हसाक्का, एलेप्पो, हॉम्स और यारमुक इलाके के कई शहरों पर कब्जा जमाया। इसके अलावा इराक के मसलन रमादी, अनबार, तिकरित, मोसुल और फालुजा पर भी अपना झंडा लहरा दिया था। मौजूदा समय की यदि बात करें तो आईएसआईएस की जमीन काफी कम हो चुकी है। यहां तक की उसका सबसे खूंखार सरगना बगदादी भी अमेरिकी हमले में मारा जा चुका है। लेकिन यह संगठन अपने दूसरे लीडर को चुन चुका है और दूसरे देशों में अपनी जड़ें फैलाने में लगा हुआ है।
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