सत्यपाल मलिक को जम्मू कश्मीर का गवर्नर बनाने के पीछे क्या है केंद्र सरकार की मंशा
लगभग साढ़े तीन दशक बाद जम्मू कश्मीर गवर्नर पद को लेकर बड़ा बदलाव किया गया है। यह बदलाव वहां पर एक राजनीतिज्ञ के रूप में सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाकर किया गया है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। लगभग साढ़े तीन दशक बाद जम्मू कश्मीर गवर्नर पद को लेकर बड़ा बदलाव किया गया है। यह बदलाव वहां पर एक राजनीतिज्ञ के रूप में सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाकर किया गया है। 1984 के बाद से ही यहां प्रशासनिक सेवा के अधिकारी या फिर पूर्व सैन्य अधिकारी को यह पद दिया जाता रहा है। लेकिन इस बार यह पद किसी राजनीतिज्ञ को देकर केंद्र बेहद साफ संकेत दिए हैं। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि काफी समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि राज्य में राज्यपाल के रूप में किसी राजनीतिक व्यक्ति को बिठाया जाए जो यहां की समस्या के समाधान में अग्रणी भूमिका अदा कर सके। लिहाजा नए राज्यपाल के रूप में मलिक की भूमिका और चुनौती दोनों ही काफी बड़ी होने वाली हैं।
मिशन 2019 और जम्मू कश्मीर
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस नियुक्ति के जरिये सरकार ने मिशन 2019 को भी जरूर ध्यान में रखा है। इस बाबत दैनिक जागरण से बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार का कहना था कि सत्यपाल मलिक को राजनीति का लंबा अनुभव है। यही वजह है कि राज्य में राजनीतिक पहल करने के लिए सरकार की तरफ से उन्हें राज्यपाल बनाने का निर्णय लिया गया है। उनके लिए यह राह कुछ आसान इसलिए भी हो सकती है क्योंकि उन्होंने बारी-बारी से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और फिर भाजपा में वक्त बिताया है। लिहाजा सभी नेताओं और पार्टियों की कार्यशैली से भी वह अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसके बावजूद जम्मू कश्मीर में राज्यपाल की भूमिका अन्य राज्यों की तुलना में काफी अहम और चुनौतीपूर्ण जरूर है।
मोदी सरकार से समाधान की उम्मीद
शिवाजी का कहना है कि शुरुआत से ही जम्मू कश्मीर के लोगों को मोदी सरकार से वहां की समस्या के समाधान को लेकर काफी उम्मीदें रही हैं। हालांकि जिस वक्त केंद्र में सरकार बनी थी उस वक्त राज्य की जनता हुर्रियत कांफ्रेंस से मुंह मोड़ चुकी थी, लिहाजा राहें अभी के मुकाबले काफी आसान थीं। जहां तक मौजूदा समय में मलिक की चुनौतियों का सवाल है तो उन्हें इसके लिए चौतरफा काम करना होगा। इसमें समस्या के समाधान के लिए वार्ता की जमीन तैयार करनी होगी। इसके लिए नौकरशाहों से लेकर राजनीतिज्ञों तक के बीच वार्ता का एक पुल तैयार करना होगा। हालांकि पीछे कुछ कमियों के चलते आज फिर हुर्रियत कांफ्रेंस केंद्र में आ गई है।
दिखानी होगी राजनीतिक क्षमता
उनका मानना है कि कश्मीर समस्या के समाधान को लेकर भारत पर पूरे विश्व की निगाह है। लिहाजा यहां पर इसके हल के लिए राजनीतिक क्षमता के साथ-साथ रिस्क लेने की ताकत भी होनी जरूरी है। इसके लिए न तो वार्ता रुकनी चाहिए और न ही कानून व्यवस्था में ही कोई ढिलाई होनी चाहिए। इसके अलावा वहां की सिविल सोसायटी को साथ लेकर भी चलना राज्यपाल की ही जिम्मेदारी है। यदि मलिक यह सब कर पाए तो वार्ता और समस्या के समाधान की तरफ हम जरूर आगे बढ़ पाएंगे। इस बीच शिवाजी का यह भी कहना था कि हुर्रियत समेत कई जमात वहां पर ऐसी हैं जो किसी भी सूरत में समस्या का हल नहीं चाहती हैं। क्योंकि समस्या का हल होने से उनकी रोजी-रोटी बंद हो सकती है। लिहाजा ऐसे लोगों की पहचान कर उनकी हकीकत को सामने लाना भी बेहद जरूरी होगा। राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर शिवाजी सरकार की कही बातें इस लिहाज से काफी मायने रखती है कि जब भी समाधान हुआ है वह वार्ता से ही हुआ है, फिर चाहे नगालैंड की बात हो या फिर मिजोरम की बात हो, लिहाजा वार्ता का दौर कभी बंद नहीं होना चाहिए।
केंद्र का साफ संकेत
केंद्र सरकार ने भी मलिक जम्मू कश्मीर में राज्यपाल नियुक्त कर राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया तेज करने का संकेत दिया है। लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम नरेंद्र मोदी ने जल्द ही जम्मू-कश्मीर में पंचायतों और स्थानीय निकायों का चुनाव कराने की घोषणा की थी। इससे निचले स्तर पर आम जनता को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने का मौका मिलेगा। केंद्र की ओर से नियुक्त वार्ताकार पूर्व आइबी प्रमुख दिनेश्वर शर्मा पहले से राज्य में सभी वर्गो से संपर्क कर बातचीत का सिलसिला शुरू कर चुके हैं। उम्मीद की जा रही है कि सत्यपाल मलिक आतंकवाद और अलगाववाद से त्रस्त आम लोगों की आवाज को तवज्जो देंगे।
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