दिग्विजय ने दिखाया जो आईना, देशभर में कांग्रेस की वही हकीकत; देश की सबसे पुरानी पार्टी का पूरा विश्लेषण
दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस कार्यसमिति में संगठन की कमजोरी का मुद्दा उठाया, जिसे नेतृत्व ने अनदेखा किया। उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल और पंजाब जैसे राज्य ...और पढ़ें

पार्टी के रणनीतिकारों ने फेरी हुई है नजर (फोटो: पीटीआई)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कार्यसमिति की बैठक में संगठन की कमजोरी का मुद्दा खुलकर उठाया। हाईकमान सहित अन्य वरिष्ठ कांग्रेसियों ने इसे अपने-अपने दृष्टिकोण से देखा-समझा। कुछ क्रिया-प्रतिक्रया हुई और बात खत्म। मगर, कांग्रेस नेतृत्व यह देखने के लिए कतई तैयार नहीं हुआ कि दिग्विजय ने जो आईना दिखाने का प्रयास किया है, वही देशभर में कांग्रेस की वास्तविक तस्वीर है।
चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाने वाले राहुल गांधी सहित पार्टी के रणनीतिकार इस राजनीतिक-रणनीतिक विफलता से पूरी तरह नजरें फेरे हुए हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में उनके प्रदेश अध्यक्ष बिना सेना के सेनापति के रूप में खड़े हुए हैं। संगठन की निष्क्रियता का यह हाल तब है, जबकि कांग्रेस ने वर्ष 2025 को संगठन सृजन वर्ष का नाम दिया था।
यूपी में नहीं कार्यकारिणी
सबसे पहले उस उत्तर प्रदेश की बात करते हैं, जहां वर्ष 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा और सपा अपनी तैयारियों में जुटी हैं, लेकिन कांग्रेस की संगठनात्मक तैयारी कितनी है, यह समझने की जरूरत है। कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर बसपा से आए दलित नेता बृजलाल खाबरी को अध्यक्ष बनाया, लेकिन लगभग एक वर्ष तक प्रदेश कार्यकारिणी नहीं बन सकी।
वह खाली हाथ विदा हुए और वर्ष 2023 में पूर्व विधायक अजय राय को राज्य संगठन की कमान सौंप दी गई। बताया जाता है कि सबसे पहले उनकी सहमति या विमर्श के बिना पदाधिकारी बना दिए गए। लोकसभा चुनाव उसी टीम के साथ हुए और दिसंबर 2024 में राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे ने प्रदेश की सभी इकाइयां भंग कर दीं। तब से लेकर यूपी में प्रदेश अध्यक्ष अकेले खड़े हैं, उन्हें टीम तक नहीं दी गई।
बिहार में भी कमजोर संगठन
अब यदि कोई तर्क दे कि 2027 के चुनाव से पहले संगठन तैयार हो जाएगा, तो उस बिहार पर दृष्टि डाल लें, जहां चुनाव हो चुका है। कांग्रेस यहां भी वोट चोरी का आरोप लगा रही है, लेकिन संगठन की वास्तविकता यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन पहले मार्च में राजेश राम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। जिस समय राजेश राम ने संगठन की बागडोर संभाली, तब चुनाव सिर पर था और पार्टी के पास न तो प्रदेश कार्यकारिणी थी, न ही जिलों में मजबूत नेतृत्व का ढांचा।
चुनाव में पार्टी छह सीटों पर सिमट गई। राजेश राम को नियुक्त हुए नौ माह से अधिक समय हो चुका, लेकिन प्रदेश की टीम अब तक नहीं बन सकी है। इससे पहले डॉ. अखिलेश प्रसाद ¨सह और उनसे पहले डॉ. मदन मोहन झा लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में भी कांग्रेस संगठन को स्थायी ढांचा नहीं मिल सका। वैसे 2015 के बाद से बिहार कांग्रेस बिना विधिवत प्रदेश कार्यकारिणी के ही चल रही है।
हिमाचल और पंजाब का भी यही हाल
कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश में पार्टी हाईकमान ने छह नवंबर, 2024 को प्रदेश कांग्रेस कमेटी, जिला व ब्लाक कार्यकारिणियों को भंग किया था, लेकिन अभी तक इनका गठन नहीं हो पाया है। कार्यकारिणी गठित करने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए थे, जो अपनी रिपोर्ट लगभग छह महीने पहले दे चुके हैं। उसके बाद दिल्ली में कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं।
बताया जाता है कि कार्यकारिणी गठित करने की प्रक्रिया अंतिम दौर में थी, उससे पहले हाईकमान ने हिमाचल में भी संगठन सृजन अभियान शुरू कर दिया। इस बीच नए प्रदेश अध्यक्ष विनय कुमार की नियुक्ति हो गई है। संगठन कब तैयार होगा, यह कुछ तय नहीं। इसी तरह पंजाब में कांग्रेस के प्रदेश प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने अप्रैल 2022 में कार्यभार संभाला। उस समय उनके साथ आठ पदाधिकारी बनाए गए थे, जिसमें एक कार्यकारी प्रधान, एक महासचिव, एक खजांची और पांच उप प्रधान।
तब से हुए तमाम बदलाव और उथलपुथल के बाद वर्तमान स्थिति यह है कि कुल नौ में से प्रदेश कांग्रेस में प्रधान समेत पांच सदस्य ही काम कर रहे हैं। वहीं, जिस मध्य प्रदेश में कांग्रेस को तुलनात्मक रूप से मजबूत माना जाता है, वहां जीतू पटवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के करीब 10 महीने बाद अक्टूबर 2024 में प्रदेश कमेटी गठित हो सकी।

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