अंतरिक्ष में बजा भारत का डंका, पानी के बाद अब चंद्रयान ने की चांद पर बर्फ होने की पुष्टि
भारत द्वारा करीब दस वर्ष पूर्व छोड़े गए चंद्रयान ने चांद को लेकर जो जानकारी दी है उससे अंतरिक्ष में भारत की साख और मजबूत हुई है। चंद्रयान ने चांद पर बर्फ होने की पुष्टि की है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत द्वारा करीब दस वर्ष पूर्व छोड़े गए चंद्रयान ने चांद को लेकर जो जानकारी दी है उससे अंतरिक्ष में भारत की साख और मजबूत हुई है। चंद्रयान ने चांद पर बर्फ होने की पुष्टि की है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसकी डार्क साइट या यूं कहें कि चांद के पोलर रीजन की तरफ चंद्रयान ने बर्फ होने की पुष्टि की है। आपको बता दें कि इससे पहले चंद्रयान ने ही चांद पर पानी होने की भी जानकारी दी थी। यान से मिली जानकारी के मुताबिक चांद की सतह पर कुछ मिलीमीटर और पानी भी मौजूद हो सकता है। यान से मिली यह जानकारी भविष्य में चांद पर भेजे जाने वाले मिशन में अहम भूमिका निभा सकती है।
दक्षिण और उत्तर ध्रुव पर बर्फ
कहा ये भी जा रहा है कि चांद के दक्षिण पोल पर मौजूद गड्ढ़ों में भी बर्फ जमा है। इसके अलावा इसके उत्तर पोल पर काफी चौड़ी बर्फ है। वैज्ञानिक नासा के मून मिनरलॉजी मैपर इंस्ट्रूमेंट (M3) के जरिये चंद्रयान से मिली जानकारी के पुख्ता होने की जांच कर रहे हैं। आपको बता दें कि 2008 में छोड़े गए चंद्रयान-1 की तरफ से ही चांद पर बर्फ होने की पुख्ता जानकारी दी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चांद का कुछ हिस्सा ऐसा है जहां पर सूर्य की रोशनी या तो आती ही नहीं है या फिर यह न के बराबर है। यही वजह है कि यहां का तापमान शायद ही -156 डिग्री सेल्सियस पहुंचता हो।
चंद्रमा में सतह के नीचे था पानी
चांद पर बर्फ होने की जानकारी देने से पहले वैज्ञानिकों ने चंद्रयान से मिली जानकारी के तहत घोषणा की थी कि चंद्रयान 1 ने चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी के प्रमाण खोज निकाले हैं। चंद्रयान 1 के साथ भेजे गए नासा के उपकरण ‘मून मिनरलोजी मैपर (एम.3)’ ने रेफलेक्टेड लाइट की वेवलेंथ का पता लगाया जो उपरी मिट्टी की पतली परत पर मौजूद सामग्री में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के बीच रासायनिक संबंध का संकेत देता है। इसी विवरण का विश्लेषण कर एम-3 ने चंद्रमा पर पानी के अस्तित्व की पुष्टि की थी। इस खोज ने चार दशक से चले आ रहे इन कयासों पर विराम लगा दिया था कि चंद्रमा पर पानी है या नहीं। वैज्ञानिकों ने पहले दावा किया था कि चंद्रमा पर लगभग 40 साल पहले पानी का अस्तित्व था।
चांद की चट्टानों के नमूनों
दरअसल, यह दावा उन्होंने अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा स्मृति के रूप में धरती पर लाए गए चांद की चट्टानों के नमूनों के अध्ययन के बाद किया था लेकिन उन्हें अपनी इस खोज पर संदेह भी था क्योंकि जिन बक्सों में चंद्र चट्टानों के अंश लाए गए उनमें रिसाव हो गया था। इस कारण ये नमूने वातावरण की वायु के संपर्क में आकर प्रदूषित हो गए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि नाभिकीय विखंडन के परिणामस्वरूप चंद्रमा पर चट्टानों और मिट्टी में मौजूद ऑक्सीजन की प्रोटोन्स के रूप में सूर्य द्वारा उत्सर्जित हाइड्रोजन के साथ हुई अंत:क्रिया से पानी बना होगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि एम-3 उपकरण ने पानी के तत्वों की पहचान के लिए इस बात का विश्लेषण किया कि चंद्रमा की सतह पर सूर्य का प्रकाश किस तरह परावर्तित होता है जिसमें वैज्ञानिकों ने पानी जैसे रासायनिक संबंधों वाले तत्वों को पाया।
क्या है एम-3 इंस्ट्रूमेंट
एम-3 उपकरण नासा मून मिनेरोलाजी मैपर है जिसे भारत के पहले चंद्र अभियान पर लगाया गया था। इसके अलावा चन्द्रयान में हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजर और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का मून इंपेक्ट प्रोब भी लगाया गया था। यह चांद पर पड़ने वाली रेफलेक्टेड लाइट की वेवलेंथ का भी पता लगाता है।
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