हार के बाद कांग्रेस हर बार फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाती है, मगर रिपोर्ट कभी बाहर नहीं आती, पार्टी के सामने क्या है आखिर चुनौती?
हर चुनाव में हार के बाद कांग्रेस वजह की समीक्षा करती है। इसके लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया जाता है। मगर अभी तक पार्टी पिछले चुनावों में मिली हार की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर पाई है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक समिति का गठन किया गया है। मगर रिपोर्ट का कुछ भी पता नहीं है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव की हार के लिए ईवीएम की बैटरी से लेकर वोटर लिस्ट में कथित हेर-फेर के साथ चुनाव से जुड़ी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठाने को लेकर कांग्रेस इन दिनों काफी सक्रिय नजर आ रही है। मगर अपनी संगठनात्मक कमजोरी का आकलन करने की तत्परता फिलहाल कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव के संदर्भों से आगे बढ़ती दिखाई नहीं दे रही है।
सामने नहीं आती फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट
हरियाणा चुनाव के नतीजे आए हुए दो महीने से ज्यादा हो चुके हैं। मगर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी अभी हार की पड़ताल में ही जुटी है। दरअसल, चुनाव में खराब प्रदर्शन की समीक्षा तो कांग्रेस में चुनाव दर चुनाव होती है मगर इनसे जुड़ी रिपोर्टें रहस्य के पर्दे से बाहर नहीं आतीं। ऐसे में हरियाणा की चुनावी हार के लिए पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी से जुड़ी हकीकतें खुलकर कितनी सामने आएंगी यह सवाल कायम है।
(राहुल गांधी। फोटो- एएनआई)
महाराष्ट्र की हार ने बढ़ाई बेचैनी
महाराष्ट्र में अप्रत्याशित हार से बढ़ी बेचैनी में जांच समिति बनाकर संगठनात्मक कमजोरियों की पड़ताल कर आमूल-चूल बदलाव करने की घोषणा में पार्टी ने जरूर देरी नहीं कि मगर हकीकत यह भी है कि नतीजे आए दो हफ्ते से अधिक हो चुके हैं और अभी समिति के गठन का ही इतंजार है।
क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद नहीं
चुनावी पराजयों की समीक्षा के पुराने प्रसंगों को देखते हुए पार्टी के सियासी गलियारों में ऐसी जांच समितियों के बाद कुछ क्रांतिकारी बदलाव होंगे इसकी उम्मीद नहीं लगाई जा रही। वैसे बीते सालों के चुनावों को छोड़ भी दिया जाए तो पिछले एक साल के दौरान कुछ राज्यों में हुई पराजयों की पड़ताल से पार्टी ने सबक लिया इसका कोई संकेत नहीं है।
कांग्रेस के सामने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का उदाहरण
पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में उम्मीद के विपरीत हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह हार हुई। पार्टी ने इन पराजयों की समीक्षा भी कि मगर 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सफाया हो गया जिससे साफ है कि संगठनात्मक और रणनीतिक कमजोरियों की दुरूस्त समीक्षा नहीं की गई या फिर इसे छिपा लिया गया।
(राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा। फोटो- एएनआई)
इन दोनों राज्यों के संगठनात्मक ढांचे में ऐसा कोई क्रांतिकारी बदलाव भी नहीं हुआ है जिससे संदेश जाए कि चाहे समीक्षा रिपोर्ट रहस्य के पर्दे में रहे मगर कमजोरियों को दुरूस्त करने की पहल हो रही है।
बिहार में राजद की छाया से बाहर नहीं निकल पा रही कांग्रेस
बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में 70 सीट पर चुनाव लड़ने के बाद 17 सीटें ही जीत पाने के कमजोर प्रदर्शन की समीक्षा हुई पर लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से साफ है कि शायद ही इससे कोई सबक लिया गया। बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा इस बारे में कहते हैं कि जमीनी पड़ताल में कई बार साफ हो चुका है कि पार्टी को राजद की छाया से बाहर लाने की जरूरत है।
प्रदेश के अधिकांश नेता-कार्यकर्ता मानते हैं कि भाजपा-नीतीश के गठबंधन के बाद पार्टी के लिए अलग विकल्प बनने का सुनहरा अवसर है। झा कहते हैं कि जनता कांग्रेस की ओर देख भी रही है मगर राज्यसभा-लोकसभा में अपनी सीट का जुगाड़ करने वाले चंद लोग जमीनी हकीकत की सच्चाई से नेतृत्व को दूर रखते हैं।
पार्टी के नेताओं के लिए भी रहस्य बनी रिपोर्ट
कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा के चुनाव की पड़ताल के साथ-साथ उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल, केरल से लेकर दिल्ली की हार की समीक्षा के लिए समितियां बनाई मगर इनकी रिपोर्ट का क्या हुआ यह तो पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए भी रहस्य ही रहा है। हरियाणा के लिए छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल की अगुवाई में तीन सदस्यीय समिति हार की समीक्षा रिपोर्ट के रहस्यमयी दौर का अंत करेगी या अभी प्रस्तावित महाराष्ट्र की कमिटी इसका श्रेय लेगी इसका पार्टी के गलियारों में इंतजार है।
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