कोरोना वायरस से कैसे जीती जाए जंग, पीएम मोदी से सीखें इमरान खान, होगा बड़ा फायदा
भारत और पाकिस्तान में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन भारत में इनके बढ़ने रफ्तार पाकिस्तान से बेहद कम है। इसकी वजह है यहां की नीतियां और जनता का विश्वास।
नई दिल्ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस पूरी दुनिया में कहर बरपा रहा है। भारत और पाकिस्तान भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। लेकिन दोनों के आंकड़ों में दोगुने का अंतर है। पाकिस्तान में जहां इसके मरीजों की संख्यां 799 तक पहुंच चुकी है, वहीं भारत में 396 हैं। पाकिस्तान में सबसे अधिक मामले सिंध से सामने आए हैं जहां इसके मरीजों की संख्या 352 है। इसके बाद पंजाब में 225, बलूचिस्तान में 108, गुलाम कश्मीर में 72, खैबर पख्तूंख्वां में 31 और इस्लामाबाद में 11 मामले सामने आए हैं। यहां पर सिर्फ कोरोना से पीडि़त मरीजों की संख्यां में ही अंतर नहीं है बल्कि दोनों देशों के प्रमुखों द्वारा इस वायरस से लड़ने के लिए किए गए इंतजाम और उनकी सोच में भी जमीन आसमान का अंतर है। ये अंतर सिर्फ कहने भर का ही नहीं है बल्कि व्यवहारिक तौर पर भी यह साफ दिखाई देता है।
सार्क देशों में न फैले कोरोना इसलिए की पहल
इसका अंदाजा आप ऐसे भी लगा सकते हैं पीएम मोदी ने इस वायरस के बढ़ते कदमों की आहट को भांप कर न सिर्फ भारत के लोगों को बचाने की कवायद शुरू की बल्कि उन्होंने अपने इस दायरे में सार्क देशों के सभी सदस्य देशों को भी शामिल किया। इसकी पहल करते हुए पीएम मोदी ने सभी सदस्य देशों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बात की और इस वायरस से लड़ने की अपनी रणनीति भी बताई। इससे भी आगे जाकर उन्होंन बिना भेदभाव के इस महामारी से लड़ने के लिए फंड बनाया और इसमें अपना योगदान भी सबसे पहले दिया।
सार्क देशों में कहीं भी जाने को तैयार भारत के डॉक्टर
पीएम मोदी ने यहां तक का एलान किया कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हमारे पास जितनी भी जानकारी होगी हम उसको साझा करेंगे और भारत के डॉक्टर कहीं भी कभी भी जो बुलाएगा वहां पर जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की सोच को देखें तो इस अहम वीडियो कांफ्रेंसिंग में प्रधानमंत्री इमरान खान ने हिस्सा लेना भी जरूरी नहीं समझा। उनकी जगह इस कांफ्रेंस में पाकिस्तान के दर्जा प्राप्त स्वास्थ्य राज्य मंत्री और पीएम के स्वास्थ्य मामलों के सलाहकार जफर मिर्जा ने हिस्सा लिया। ये सिर्फ एक वाकया नहीं है जिससे पाकिस्तान की सोच उजागर होती है।
कितनी अलग है दोनों की सोच
दोनों नेताओं की सोच और जनता का उनपर विश्वास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रविवार को ही पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया है कि सरकार इस महामारी को समय रहते रोकपाने में नाकाम रही है और अब भी कोई जरूरी उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वो इसमें दखल दे और देश समेत सभी प्रांतों की सरकारों को तुरंत जरूरी उपाय करने का आदेश दे। वहीं दूसरी तरफ भारत का रुख करें तो यहां पर प्रधानमंत्री ने बिना नेशनल लॉकडाउन की घोषणा किए वो काम करवा लिया जो किसी भी सरकार के लिए मुश्किल हो सकता था।
जनता कर्फ्यू की सफलता
उन्होंने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लोगों का सहयोग मांगा था और कहा था कि रविवार को खुद लोग अपने और दूसरों को बचाने के लिए सड़कों पर न आएं। इसको उन्होंने जनता कर्फ्यू का नाम दिया था। इसका अर्थ था जनता द्वारा जनता के लिए लगाया गया कर्फ्यू। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कहा था कि देश की जनता शाम पांच बजे उन लोगों को ताली या थाली बजाकर धन्यवाद अदा करे जो इस मुश्किल घड़ी में लोगों की मदद कर रहे हैं। इनमें पत्रकार, डॉक्टर, होम डिलीवरी वाले, पुलिसकर्मी समेत कुछ दूसरी सेवा से जुड़े लोग शामिल थे।
जब तालियों और घंटियों की आवाज से गूंज उठा आसमान
इसको एक पीएम पर उसकी जनता का विश्वास ही कहा जाएगा कि पांच बजने से पहले ही आसमान तालियों और थाली बजाने की आवाज से गूंज गया था। पूरे दिन सड़कों पर कोई नहीं दिखाई दिया न इंसान न कोई वाहन। सुनाई दी तो सिर्फ पक्षियों की आवाजें जो कंकरीट के जंगलों में अब गायब हो चुकी है। पांच बजे जब आसमान में जब तालियों, घंटियों की आवाज सुनाई देने लगी तो हजारों पक्षी इधर से उधर मंडराते दिखाई दिए। ये सबकुछ उस विश्वास की बदौलत था जो पीएम मोदी ने जनता के बीच पैदा किया है। इस दिन की सबसे खास बात यह रही कि लोगों ने उनकी बात मानकर अपने को घर में बंद कर लिया था। आपको बता दें कि नेशनल लॉकडाउन न पीएम मोदी ने किया न इमरान खान ने किया, लेकिन पीएम मोदी की एक अपील पर लोगों ने खुद लॉकडाउन कर उनके विश्वास को और अधिक बढ़ा दिया।
भारत से काफी कुछ सीख सकता है पाकिस्ताएन
पाकिस्तान को भारत से काफी कुछ सीखने को मिल सकता है यदि वो चाहे तो। आपको बता दें कि पाकिस्तान की तरफ से सार्क देशों की वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान शामिल हुए जफर मिर्जा ने इस मंच पर भी कश्मीर राग अलापना बंद नहीं किया। उनके अलावा पाकिस्तान के अन्य मंत्री ने भी जोर देकर कहा कि कश्मीर में लॉकडाउन खत्म किया जाना चाहिए। हालांकि वो ये बयान देते हुए दो बातों को भूल गए। पहला ये कि वहां पर अब कोई लॉकडाउन नहीं है। दूसरा ये कि कोरोना वायरस से बचाने के लिए वहां पर जो जरूरी उपाय किए गए हैं उनमें लोगों को घर से न निकलने की अपील शामिल है। वहां पर जो उपाय किए गए हैं वो वही हैं जो इससे पहले चीन कर चुका है और विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरी दुनिया से कह चुका है।
गुलाम कश्मीर में बढ़ रहे हैं कोरोना के मरीज
अमेरिका, इटली, स्पेन समेत दुनिया के सैकड़ों देश इसी तरह से खुद को बचाने की कवायद कर रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान के पीएम इस लॉकडाउन को मना कर हैं। ऐसा शायद इसलिए कहा गया है क्योंकि वहां पर यदि ऐसा किया गया तो वहां लोग भूखे मरने लगेंगे। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान के खराब फैसलों की वजह से ही गुलाम कश्मीर में लगातार कोरोना वायरस के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।
इमरान खान का दुखड़ा
आपको बता दें कि पिछले सप्ता ह पाकिस्तान के राष्ट्रपति चीन की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे। वहां पर उन्होंने चीन की कोरोना से सफलतापूर्वक लड़ने के लिए जमकर वाहवाही भी की, लेकिन जब वो वहां से वापस आए तो उनके पास कुछ वादों के अलावा और कुछ नहीं था। उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन पाकिस्तान की इस वायरस से लड़ने में मदद करेगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भले ही खराब आर्थिक हालातों का हवाला देते हुए इस वायरस से लड़ने में असमर्थ बता रहे हैं लेकिन सच्चााई ये भी है कि उन्होंने फरवरी में इस वायरस से बचाव को बड़ी खेप चीन भेजी थी। कहना गलत नहीं होगा कि जब अपनों को बचाने की बारी आई तो उन्होंने मुश्किल हालातों और गरीबी का दुखड़ा रो दिया।
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