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    Praveen Kumar के गोल्‍ड मेडल जीतने का संकल्‍प हुआ पूरा, छोटे पैर के कारण जिंदगी में काफी कुछ झेला पर काम आया ये मंत्र

    Updated: Sat, 07 Sep 2024 08:09 AM (IST)

    भारत के प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद टी64 में गोल्‍ड मेडल जीता। प्रवीण ने डेढ़ महीने पहले संकल्‍प लिया था कि पेरिस में गोल्‍ड जीतकर ही लौटेंगे। वह इसे संकल्‍प को पूरा करने में कामयाब रहे। प्रवीण को अपने छोटे पैर के कारण काफी कुछ झेलना पड़ा। मगर उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और लगातार मेहनत करके अपना लक्ष्‍य हासिल किया।

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    प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद टी64 में गोल्‍ड जीता

    अर्पित त्रिपाठी, जागरण ग्रेटर नोएडा। पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद टी64 में एशियाई रिकॉर्ड तोड़कर स्वर्ण पदक विजेता भारत के प्रवीण कुमार ने यह साबित कर दिया कि यदि मेहनत सच्चे मन से की हो तो लक्ष्य को जरूर हासिल हो सकता है। उन्होंने डेढ़ महीने पहले संकल्प लिया था कि वह पेरिस में स्वर्ण पदक जीतकर ही लौटेंगे। आज वह संकल्प पूरा हो गया है।

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    प्रवीण का पैरा एथलीट बनने का सफर चुनौतियों से भरा था। छोटे पैर के साथ जन्मे प्रवीण शुरू में अपने साथियों की तुलना में हीनता की भावना से जूझते रहे। प्रवीण ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बताया, देश के लिए पदक स्वर्ण पदक जीतने की जो खुशी है उसे जाहिर करने के लिए उनके पास शब्द नहीं है।

    सबसे पहले माता-पिता से की बात

    पदक जीतने के बाद सबसे पहले उन्होंने ग्रेटर नोएडा स्थित अपने गांव गोविंदगढ़ में पिता अमरपाल सिंह और माता निर्दोष देवी से बात की। दोनों की खुशी अकल्पनीय थी। टोक्यो पैरालंपिक से पहले करीब डेढ़ महीने तक प्रवीण कोरोना से संक्रमित रहने के कारण बिस्तर पर थे। कोरोना से ठीक होने के बाद उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की और पैरालंपिक में रजत पदक जीता।

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    कोच ने नहीं मानी हार

    पैरालंपिक खेलों से ठीक तीन महीने पहले प्रवीण विश्व चैंपियनशिप के दौरान 'ग्रोइन' की चोट से जूझ रहे थे, जिसके कारण वह तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन पेरिस का टिकट कटाने में सफल रहे। कोच डॉ. सत्यपाल सिंह ने चोट की समस्या का पता लगाने के लिए तुरंत एमआरआई कराने को कहा था। कोच के प्रयासों और हार नहीं मानने के जज्बे की बदौलत प्रवीण 15 दिनों के अंदर पैरालंपिक के लिए तैयारी करने लगे।

    स्‍कूल से इस तरह मिला समर्थन

    प्रवीण ने बताया कि कोच ने कभी भी हार न मानने की सीख दी, जिसका नतीजा है कि हर बार बेहतरीन प्रदर्शन किया। क्या फर्क पड़ता है यदि कूद लेगा तो..प्रवीण के पिता अमरपाल ने बताया प्रवीण का बायां पैर दायें से करीब तीन इंच छोटा है। कूल्हे से पैर की हड्डी पूरी तरह से जुड़ी नहीं है। जिस स्कूल में वह पढ़ते थे वहां 11वीं में खेलकूद प्रतियोगिता में उसने भी ऊंची कूद में शामिल होने के लिए शिक्षक से कहा तो उन्होंने मना कर दिया।

    यह बात प्रवीण ने अपने पिता को बताई। इस पर पिता ने शिक्षक से कहा कि सभी बच्चे हिस्सा ले रहे हैं, क्या फर्क पड़ता है, प्रवीण भी कूद लेगा। प्रतियोगिता में प्रवीण पहले स्थान पर रहे। इसके बाद स्कूल ने उनकी पूरी मदद की। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती और पैरालंपिक में स्वर्ण अपने नाम किया।

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