NPCI: धोखाधड़ी से बचने के लिए इन सिद्धांतों का करें पालन, यहां दर्ज कराएं शिकायत
नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने डिजिटल भुगतान में सुरक्षा बढ़ाने के लिए स्टॉप थिंक एक्ट सिद्धांत अपनाने का आग्रह किया है। UPI के बढ़ते उपयोग के साथ NPCI ने डिवाइस बाइंडिंग जैसी सुरक्षा तकनीकों को लागू किया है। उपभोक्ताओं को सतर्क रहने और धोखाधड़ी से बचने के लिए कहा गया है। धोखाधड़ी होने पर तुरंत हेल्पलाइन नंबर 1930 पर रिपोर्ट करने की सलाह दी गई है।

जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। देश में डिजिटल भुगतान क्रांति को गति देने और नवाचार को बढ़ावा देने वाले संगठन नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने डिजिटल भुगतान में उपभोक्ता सुरक्षा को बढ़ाने के अपने संकल्प को दोहराते हुए ‘स्टॉप, थिंक, एक्ट’ के सिद्धांत को अपनाने की अपील की है।
जैसे-जैसे डिजिटल लेन-देन बढ़ रहे हैं, एनपीसीआई ने उपभोक्ताओं से सतर्क रहने और धोखाधड़ी से बचाव के लिए सर्वोत्तम उपाय अपनाने का आग्रह किया है। ऐसा करके सुरक्षित लेन-देन कर सकेंगे।
UPI का बढ़ता उपयोग और डिजिटल सुरक्षा की आवश्यकता
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) भारत में डिजिटल लेन-देन का प्रमुख साधन बन गया है, जिसने 2024 में कुल भुगतान वॉल्यूम का 83 प्रतिशत हिस्सा अपने नाम किया। जून 2025 में यूपीआई ने 18.40 बिलियन लेन-देन पूरे किए, जो वॉल्यूम में साल-दर-साल 32 प्रतिशत और लेन-देन मूल्य में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
पिछले पांच वर्षों में यूपीआई का उपयोग 74 प्रतिशत सीएजीआर की दर से बढ़ा है, जिससे यह वॉल्यूम के लिहाज से सबसे बड़ा रिटेल भुगतान तंत्र बन गया है। शुरूआत से अब तक यूपीआई ने 46 करोड़ से अधिक यूनिक यूजर्स को जोड़ा है और विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल लेन-देन को सक्षम बनाया है।
NPCI की बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रणाली
यूपीआई न केवल अपनी सुविधा के लिए बल्कि अपनी मजबूत सुरक्षा प्रणाली के लिए भी जाना जाता है, जो प्रत्येक लेन-देन की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। एनपीसीआई ने डिवाइस बाइंडिंग जैसी उन्नत सुरक्षा तकनीकों को लागू किया है।
यह फीचर उपयोगकर्ता के खाते को एक विशेष मोबाइल डिवाइस से जोड़ता है, जिससे पंजीकृत डिवाइस के बिना कोई तीसरा पक्ष खाते तक पहुंच नहीं सकता। इसके अलावा, यूपीआई में दो-स्तरीय प्रमाणीकरण शामिल है, जिसमें लेन-देन से पहले उपयोगकर्ता को अपने मोबाइल नंबर और यूपीआई पिन के माध्यम से अपनी पहचान सत्यापित करनी होती है।
एनपीसीआई के चीफ रिस्क ऑफिसर विश्वनाथ कृष्णमूर्ति ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि सोशल इंजीनियरिंग वह तरीका है जब धोखेबाज लालच, डर और अज्ञान जैसी मानवीय प्रवृत्तियों का फायदा उठाकर उपयोगकर्ताओं को भ्रमित करते हैं।
वे उपयोगकर्ताओं को ऐसे लेन-देन अधिकृत करने के लिए उकसाते हैं, जो देखने में वैध लगते हैं लेकिन धोखाधड़ी के लिए बनाए गए होते हैं। इसलिए डिजिटल भुगतान का सुरक्षित उपयोग करना और ऑनलाइन ठगी से बचना बेहद जरूरी है।
संभावित घोटालों की शुरुआती पहचान आपको और आपके प्रियजनों को सुरक्षित रख सकती है और सभी के लिए एक सुरक्षित, कम-नकदी वाली अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करती है।
उपभोक्ताओं को परामर्श: सुरक्षित कैसे रहें?
हालांकि यूपीआई मजबूत सुरक्षा सुविधाओं से लैस है, लेकिन धोखेबाज अभी भी सोशल इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं। उपभोक्ताओं को सतर्क रहना होगा।
एनपीसीआई सभी यूपीआई उपयोगकर्ताओं को ‘स्टॉप, थिंक, एक्ट’ सिद्धांत अपनाने की सलाह देता है-
स्टॉप – किसी भी अनजान कॉल, मैसेज या ई-मेल का तुरंत जवाब देने से पहले रुकें, खासकर जब वे व्यक्तिगत या बैंकिंग जानकारी मांगते हों।
थिंक– किसी भी अनुरोध की पुष्टि आधिकारिक स्रोतों जैसे कंपनी की वेबसाइट या ग्राहक सेवा हेल्पलाइन से करें।
एक्ट– समझदारी से काम लें, संदिग्ध अनुरोधों से बचें और धोखाधड़ी की कोशिशों की तुरंत संबंधित अधिकारियों को सूचना दें।
धोखाधड़ी की रिपोर्ट कैसे करें?
विश्वनाथ कृष्णमूर्ति ने कहा ने कहा कि यदि किसी उपयोगकर्ता को धोखाधड़ी का संदेह हो तो उसे तुरंत रिपोर्ट करना चाहिए। संदिग्ध मामलों की रिपोर्ट राष्ट्रीय साइबर क्राइम हेल्पलाइन (1930) या नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) पर की जा सकती है।
उपयोगकर्ता को अपने बैंक को भी मामले की सूचना देनी चाहिए। इसके साथ ही संदेशों को सुरक्षित रखें, स्क्रीनशॉट लें और बातचीत का रिकॉर्ड रखें ताकि अधिकारी कार्रवाई कर सकें।
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