नई दिल्‍ली, जेएनएन। दिल्ली के एक 78 वर्षीय व्यक्ति का सर गंगा राम अस्पताल में इलाज किया जो अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित था और उसे ‘स्यूडोमेम्ब्रानस कोलाइटिस (पी.एम.सी.)’ नाम की बीमारी भी थी। उपचार के 2 क्रमों के बाद भी बीमारी बार-बार हो जा रही थी। इसलिए उसे एफ.एम.टी. की सलाह की पेशकश की गई। इस मरीज को खूनी दस्त, निम्न रक्तचाप और उच्च हृदय गति के साथ गंभीर स्थिति में सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके मल परीक्षण से पता चला कि ‘सी. डिफिकल (एक खराब बैक्टीरिया)’ के कारण स्यूडोमेम्ब्रांसस कोलाइटिस (बड़ी आंत में अल्सर) की बीमारी की पुनरावृत्त है। इस बीमारी में जिससे रक्तस्राव के साथ लगातार दस्त, पैर में दर्द तथा बुखार होता है।

डॉ. पीयूष रंजन, वाइस चेयरमैन, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैनक्रिएटिको बिलियरी साइंसेज, सर गंगा राम अस्पताल के अनुसार, इस बीमारी के लिए एकमात्र विकल्प स्वस्थ व्यक्ति से मल लेकर और मरीज की बड़ी आंत में प्रत्यारोपण करना था। इस दुर्लभ प्रत्यारोपण से आंत में अच्छे बैक्टीरिया की वृद्धि होती है और सी. डिफिकल (एक खराब बैक्टीरिया) की संख्या कम की जा सकती है।

डॉ. पीयूष रंजन ने बताया कि हमने पहले भी गंभीर अल्कोहलिक हेपेटाइटिस के लिए एफ.एम.टी. के जरिए इलाज किया जो स्टेरॉयड से ठीक नहीं हो रहे थे। भारत में एफ.एम.टी. के साथ बार-बार होने वाले पी.एम.सी. से इलाज किए जाने वाले मरीज का यह दुर्लभ मामला है। एफ.एम.टी. करने के दो दिनों के बाद मरीज की स्थिति में सुधार दिखने लगा। मरीज को बाद में छुट्टी दे दी गई और दो महीने के बाद में वह बिलकुल ठीक है।

मानव आंत में अरबों बैक्टीरिया होते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आंत माइक्रोबायोम’ कहा जाता है। ये बैक्टीरिया मानव स्वास्थ्य को बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और कई बीमारियां हैं जो आंत बैक्टीरिया के असंतुलन से उत्पन्न होती हैं। अच्छे बैक्टीरिया और हानिकारक बैक्टीरिया के बीच असंतुलन की स्थिति को ‘डिस्बिओसिस’ कहा जाता है। आंतों के अंदर के ये जीवाणु (बैक्टीरिया) शरीर की इम्युनिटी यानि बीमारी तथा रोगो से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करते है। स्यूडोमेम्ब्रांसस कोलाइटिस में सी. डिफिकल नामक बैक्टीरिया के आंतो में बैठ जाने से होती है।

यह स्थिति आमतौर पर बुजुर्गों और लंबे समय तक एंटीबायोटिक थेरेपी, कीमोथेरेपी या इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं पर लोगों को प्रभावित करती है। इस बीमारी के लक्षण दस्त, मल में रक्त और पेट में दर्द होते है। यह स्थिति गंभीर हो सकती है और 30% मरीजों में बार-बार पुनरावृत्ति हो सकती है। इस स्थिति का प्रारंभिक उपचार एक एंटीबायोटिक है जिसे ‘ओरल वैनकोमाइसिन’ कहा जाता है। यह लगभग तीन चौथाई रोगियों में प्रभावी है।

दूसरे एपिसोड के बाद पुनरावृत्ति की स्थिति में फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट (एफ.एम.टी.) सबसे अच्छा उपचार विकल्प है। एफ.एम.टी. का अर्थ है मरीजों में उचित परीक्षण के बाद एक स्वस्थ व्यक्ति से मल के अर्क को स्थानांतरित करना। यह बड़ी आंत में या छोटी आंत में कोलोनोस्कोपी द्वारा किया जा सकता है। यह प्रक्रिया न केवल ओपीडी के आधार पर की जा सकती है, बल्कि यह बहुत ही लागत प्रभावी भी है।