चाइना प्लस वनः बेहतर टैलेंट के कारण चीन से भी अच्छा प्रदर्शन कर सकता है भारत

विशेषज्ञों का कहना है कि हाल में कुछ कंपनियों ने भारत में निवेश किया है लेकिन चीन से जितनी कंपनियां बाहर निकल रही हैं उनकी तुलना में भारत आने वाली कंप...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
प्राइम टीम, नई दिल्ली। वर्ल्ड बैंक प्रेसिडेंट अजय बंगा का एक बयान इन दिनों चर्चा में है। उन्होंने कहा, “ऐसे समय जब दुनिया भर की कंपनियां चाइना प्लस वन नीति के तहत अपने सप्लाई चेन को डाइवर्सिफाई करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग की वैकल्पिक जगह तलाश रही हैं, भारत के पास इस अवसर को भुनाने के लिए तीन से पांच साल का वक्त है। यह अवसर 10 साल के लिए नहीं रहेगा।” दरअसल, वैश्विक कंपनियां निवेश के लिए चीन के विकल्प के तौर पर आकर्षक जगह की तलाश में हैं। जागरण प्राइम ने इस बारे में विशेषज्ञों से बात की। उनका कहना है कि हाल में कुछ कंपनियों ने भारत में निवेश किया है, लेकिन चीन से निकलने वाली कंपनियों की तुलना में यह बहुत कम है। हमें बेहतर बिजनेस वातावरण बनाने के साथ नियम-कानूनों में स्थिरता लानी होगी, क्वालिटी पर फोकस करना होगा तथा पूंजी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने जैसे कदम उठाने होंगे।
बंगा की बात से सहमति जताते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, “यह सही है कि भारत के लिए अवसर अगले 3 साल के लिए ही है, क्योंकि दूसरे देश भी प्रतिस्पर्धा में हैं। हमें बेहतर बिजनेस वातावरण बनाना होगा।” पीरामल एंटरप्राइजेज के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी के मुताबिक, “भारत 1990 के दशक में निर्यात आधारित ग्रोथ मॉडल को अपनाने में चीन से पीछे रह गया। मौजूदा चाइना प्लस वन नीति हमारे लिए दूसरा मौका लेकर आई है। एक संतुलित और निर्यातोन्मुखी विकास की रणनीति अपनाना सही नजरिया हो सकता है। इस रणनीति से हम भारत की युवा आबादी का भी लाभ उठा सकते हैं।”
भारत के अब तक के कदम और उनके फायदे
हाल के वर्षों में भारत ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं। सड़क और बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है। नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए टैक्स की दर घटाकर 17% (सरचार्ज-सेस समेत) की गई है। वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में 2014 में भारत 142वें स्थान पर था, 2019 में 190 देशों में भारत 63वें स्थान पर आ गया। लोगों को स्किल्ड बनाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। करीब कानूनी 3500 प्रावधानों को डिक्रिमिनलाइज किया जा चुका है। मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) जैसे अभियानों से मैन्युफैक्चरिंग में तेजी आई है। भारत ने 13 देशों/क्षेत्रों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) अथवा क्षेत्रीय व्यापार समझौते (आरटीए) किए हैं। कनाडा, इंग्लैंड और यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए की बात चल रही है। अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस तथा संयुक्त अरब अमीरात समेत कई देशों की कंपनियों ने भारत में अपना निवेश बढ़ाने की घोषणा की है।
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