देश में लगातार कम हो रही है हाथियों की संख्या, वजह जानकर चौंक जाएंगे आप!
कुछ लोग हाथी दांत के लिए हाथियों का अवैध शिकार कर रहे हैं। हाथी दांत की विदेशी बाजार में काफी मांग रहती है। इसका ही फायदा उठाने के लिए शिकारी इनका धड़ल्ले से शिकार कर रहे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत में तेजी से हाथियों की संख्या में गिरावट हो रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह इनका अवैध शिकार है। कुछ लोग इनका हाथी दांत के लिए अवैध शिकार कर रहे हैं। हाथी दांत की विदेशी बाजार में काफी मांग रहती है। इसका ही फायदा उठाने के लिए शिकारी इनका धड़ल्ले से शिकार कर रहे हैं। इनके दातों का इस्तेमाल साज-सजावट की चीजों को बनाने से लेकर शक्ति वर्धक दवाओं में भी धड़ल्ले से हो रहा है। ब्लैक मार्केट में हाथी दांत की कीमत $1500 (लगभग 1 लाख रुपये) से शुरू होती है। अब तक का सबसे लम्बा हाथी दांत 138 इंच का दर्ज हुआ है जिसका वज़न लगभग 142 किलोग्राम था। आपको बता दें कि हाथी की सामान्य आयु 70 तक वर्ष होती है और वे स्पर्श, दृष्टि, गंध और ध्वनि से संवाद करते हैं। हाथी बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा वे भावनात्मक रूप से भी काफी परिपूर्ण होते हैं। किसी करीबी की मृत्यु हो जाने पर उन्हें उदास या रोते हुए भी देखा गया है।
2017 में हुई थी गणना
आपको बता दें कि भारत में हाथियों की पिछली गणना वर्ष 2012 में संपन्न हुई थी, जिसमें हाथियों की संख्या 29,391 और 30,711 के मध्य आंकी गई थी। इनकी यह गिनती झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में की गई थी। जबकि साल 2007 में यह संख्या 27,657 से 27,682 तक थी। अगस्त 2017 में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई। इसमें हाथियों की सर्वाधिक संख्या कर्नाटक में दर्ज की गई है, जहां इनकी संख्या 6049 थी। इसके बाद असम 5719 हाथियों के बाद दूसरे और केरल जहां 3054 हाथी मिले तीसरे स्थान पर रहा।
झारखंड में कम हुए हाथी
झारखंड की ही यदि बात करें तो झारखण्ड में हाथी राजकीय पशु घोषित है। यहां पर भी हाल के कुछ समय में हाथियों की संख्या में कमी आई है। यहां पर पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी, वहां यह अब घटकर 555 रह गई है। यहां पर हाथियों की संख्या में हो रही कमी का एक कारण नक्सलियों नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को भी माना जा रहा है। वन विभाग के मुताबिक इन ऑपरेशन की वजह से हाथी यहां से पलायन कर पड़ोसी राज्यों में जा रहे हैं। हाथियों की कम होती संख्या को देखते हुए ही पिछले वर्ष 12 अगस्त, 2017 को विश्व हाथी दिवस के अवसर पर देश में इनके संरक्षण हेतु एक राष्ट्रव्यापी अभियान ‘गज यात्रा’ को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा लांच किया गया। इस अभियान में हाथियों की बहुलता वाले 12 राज्यों को शामिल किया गया था।
कैसे होती है इनकी गिनती
भारतीय हाथी की ही यदि बात करें तो यह मुख्यतः मध्य एवं दक्षिणी पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व भारत, पूर्वी एवं उत्तरी भारत तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। इन्हें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में तथा ‘पशु-पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय में शामिल किया गया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में हर पांच साल में हाथियों की गिनती होती है। इसके लिए चार अलग विधियों का इस्तेमाल पिछले वर्ष किया गया था। इसमें पहली विधि के अंतर्गत सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया गया है कि वो डिजिटल मैप तैयार करें, ताकि जंगलों और उनसे बाहर मौजूद हाथियों की संख्या को दर्ज करना आसान की जा सके। कुल मिलाकर सरकार की कोशिश है कि हाथियों की मौजूदगी को जियोग्राफिकल इंफोरमेशन सिस्टम पर भी लाया जा सके। इनकी गणनी की दूसरी विधि काफी पारंपरिक है। इसके तहत, दो या तीन लोगों की एक टीम बनाई जाती है और उन्हें पांच वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आवंटित कर दिया जाता है। ये टीमें हाथियों की उम्र और लिंग का रिकॉर्ड तैयार करती हैं और उनकी फोटो भी खींचती हैं।
एक विधि ये भी
तीसरी विधि में गणना करने वाले हाथी के लीद से इसकी गिनती करते हैं। आपको बता दें कि एक हाथी एक दिन में 15-16 बार लीद करता है। इसके ज़रिए अंदाजा लगाया जाता है कि हाथियों का मूवमेंट कितना है और उनकी सेहत कैसी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि हाथियों की उम्र का अंदाजा उनकी ऊंचाई से लगाया जाता है। अमूमन वयस्क नर हाथी की ऊंचाई आठ फीट तक और मादा हाथी की ऊंचाई सात फीट होती है। हाथियों की गणना करने के चौथे तरीके में दो या तीन लोगों की टीमें इस विधि में भी बनाई जाती हैं। यह टीम पानी के स्रोत के पास तैनात रहती हैं। यहां भी हाथियों के उम्र और लिंग का रिकॉर्ड तैयार किया जाता है।
हाथी गलियारा
यहां पर जानकारी के लिए यह भी बता दें कि आमतौर पर जन्म लेने वाले हाथियों में नर और मादा हाथियों की संख्या लगभग बराबर रहती है। लेकिन उम्र बढ़ने पर उनका अनुपात एक नर पर दो या तीन मादा का हो जाता है। माना जाता है कि नर हाथी कमज़ोर माने जाते हैं। आमतौर पर हाथियों के झुंड को प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करने के रूप में जाना जाता है। हाथियों को बचाने या इनकी संख्या को बढ़ाने के मकसद से ही हाथी गलियारे का निर्माण किया गया था। भारत में इस तरह के करीब 101 गलियारे हैं जिनमें से सबसे अधिक गलियारे पश्चिम बंगाल में स्थित हैं।
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