लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए फैलाए जा रहे भारत विरोधी बयान: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
Vice President Jagdeep Dhankhar भारत पर ब्रिटेन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हालिया टिप्पणी से राजनीति गरमाई हुई है। इसी कड़ी में अब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इनक्यूबेटर और वितरकों पर अपनी चिंता जाहिर की।
नई दिल्ली, एजेंसी। भारत पर ब्रिटेन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हालिया टिप्पणी से राजनीति गरमाई हुई है। इसी कड़ी में अब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने 'इनक्यूबेटर और वितरकों' पर अपनी चिंता जाहिर की। उनका मानना है कि देश के कार्यात्मक लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों को कमजोर करने के लिए भारत विरोधी बयान फैलाए जा रहे हैं।
क्या बोले जगदीप धनखड़?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इनक्यूबेटर और वितरकों पर चिंता जाहिर करते हुए रविवार को कहा कि भारत पहले की तुलना में वृद्धि पर है। राष्ट्र की वैश्विक प्रासंगिकता और मान्यता एक ऐसे स्तर पर है जो पहले कभी नहीं थी।
हम सभी को भारत विरोधी ताकतों के इनक्यूबेटरों और वितरकों के उद्भव के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है, जो हमारे विकास पथ को कम करने और हमारे कार्यात्मक लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों को कलंकित करने के लिए ‘नुकसानदेह आख्यान’ चला रहे हैं। यह जरूरी है कि हम सभी अपने राष्ट्र और राष्ट्रवाद में भरोसा करें और इस तरह के दुस्साहस से ठीक से निपटें।'
भारत सबसे जीवंत लोकतंत्र
उपराष्ट्रपति ने 'गवर्नरपेट टू गवर्नर हाउस: ए हिक्स ओडिसी' नामक पुस्तक का विमोचन करने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए यह बात कहीं। इस दौरान पूर्ववर्ती नायडू भी मौजूद रहे और दोनों ने तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल पी एस राममोहन राव के संस्मरण के विमोचन के दौरान आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया।
धनखड़ ने कहा कि 'लोकतंत्र का सार' यह है कि 'सभी समान रूप से कानून के प्रति जवाबदेह हैं। यह सुझाव देते हुए कि भारत सबसे जीवंत लोकतंत्र है, उन्होंने कहा 'कानून के समक्ष समानता एक ऐसी चीज है जिस पर हम बातचीत नहीं कर सकते'।
उपराष्ट्रपति ने संसद सुचारू रूप से चलाने का किया आह्वान
हाल के गतिरोध के बीच संसद के सुचारू कामकाज की मांग करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में, शासन की गतिशीलता हमेशा चुनौतीपूर्ण होती है, जिसके लिए संवैधानिक संस्थाओं के सामंजस्यपूर्ण कामकाज की आवश्यकता होती है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में हमेशा मुद्दे रहेंगे और हमारे पास कभी ऐसा दिन नहीं होगा जब हम कह सकें कि कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि हम एक गतिशील समाज में हैं जहां ऐसा होना तय है।
जो लोग कार्यपालिका, विधायिका या न्यायपालिका का नेतृत्व कर रहे हैं, वे आत्मसंतुष्ट नहीं हो सकते, वे टकराव में कार्य नहीं कर सकते। उन्हें सहयोग से कार्य करना होगा और एक साथ संकल्प लेना होगा। उन्होंने दोहराया कि 'यह हमारे संविधान की प्रधानता है जो लोकतांत्रिक शासन की स्थिरता, सद्भाव और उत्पादकता को निर्धारित करती है। उन्होंने कहा, संसद, लोगों के जनादेश को दर्शाती है।'