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    'सिर्फ 32 प्रतिशत पैसा खुद जुटा पा रहे शहरी स्थानीय निकाय', CAG की ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा; वजह भी आई सामने

    Updated: Tue, 03 Jun 2025 02:22 AM (IST)

    कैग की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार देश में शहरी स्थानीय निकाय अपनी जरूरतों का केवल 32% धन जुटा पाते हैं जिससे वे राज्य और केंद्र सरकार पर निर्भर हैं। संपत्ति कर वसूली में भी वे पिछड़े हैं केवल 56% कर ही जुटा पाते हैं। स्टाफ की कमी भी एक बड़ी समस्या है निकाय औसतन 32% स्टाफ की कमी के साथ काम कर रहे हैं।

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    सिर्फ 32 प्रतिशत पैसा खुद जुटा पा रहे शहरी स्थानीय निकाय। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में शहरी स्थानीय निकाय औसत रूप से अपनी जरूरतों का केवल 32 प्रतिशत धन अपने संसाधनों से जुटा पाते हैं और इसीलिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर उनकी निर्भरता बनी हुई है। यह निष्कर्ष नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की एक ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया है।

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    शहरी शासन के ढांचे में सुधार के लिए किए गए 74वें संविधान संशोधन के इस साल जून में 32 साल पूरे होने के अवसर पर नीति संगठन जनाग्रह की ओर से आयोजित एक सम्मेलन में इस ऑडिट रिपोर्ट के मुख्य अंश सार्वजनिक किए गए। रिपोर्ट के अनुसार शहरी निकाय अपने राजस्व के सबसे बड़े स्त्रोत संपत्ति कर की वसूली में भी पिछड़े हुए हैं। वे मुश्किल से 56 प्रतिशत संपत्ति कर जुटा पाते हैं और इसीलिए उनकी आय बढ़ने का नाम नहीं ले रही है।

    'शहरों में होने चाहिए स्पष्ट नजर आने वाले सुधार'

    सम्मेलन में देश के नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक के. संजय मूर्ति ने 74वें संविधान संशोधन ने शहरी शासन के ढांचे को सशक्त बनाने का अवसर दिया था, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। शहरों में स्पष्ट नजर आने वाले सुधार होने चाहिए। उन्होंने खासकर टियर 2 और टियर 3 शहरों में विशेष रूप से ध्यान देने की वकालत की।

    कैग की ऑडिट रिपोर्ट में क्या कहा गया?

    कैग की ऑडिट रिपोर्ट ने शहरी स्थानीय निकायों में स्टाफ की कमी का तथ्य भी सामने रखा है। इसके अनुसार शहरी स्थानीय निकाय औसत रूप से 32 प्रतिशत स्टाफ की कमी के साथ काम कर रहे हैं। इस ऑडिट रिपोर्ट में 74वें संविधान संशोधन की जमीनी हकीकत भी बताई गई है। कागजी रूप से तो ज्यादातर राज्यों ने इसे अपना लिया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से सच्चाई यह है कि केवल दो-चार काम ही ऐसे हैं जिन पर शहरी स्थानीय निकाय अपने हिसाब से निर्णय ले सकते हैं।

    'शहरों में वार्ड का परिसीमन का भी अधिकार नहीं'

    स्थिति यह है कि राज्यों ने अपने निर्वाचन आयोग को यह अधिकार भी नहीं दिया है कि वे शहरों में वार्ड का परिसीमन कर सकें। लगभग 25 करोड़ में से केवल छह करोड़ शहरी आबादी ही ऐसी है जो अपने मेयरों का सीधे चुनाव करती है। राज्यों में जिला विकास योजनाएं ही नहीं हैं।

    सम्मेलन में जनाग्रह के सीईओ श्रीकांत विश्वनाथन ने कहा कि भारत को शहरों को शासन और अर्थव्यवस्था की अलग ईकाई के रूप में देखना होगा। 74वें संविधान संशोधन को 32 वर्ष हो गए, लेकिन हमारे नगर निगम आज भी सक्षम शहरी स्थानीय शासन के रूप में काम नहीं कर रहे हैं।

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