इजरायल-ईरान के बीच विवाद के मुद्दे अनसुलझे, इसलिए सीजफायर लंबा टिकने पर संदेह
Israel-Iran war में मंगलवार को ट्रंप ने सीजफायर की घोषणा की। हालांकि उनकी घोषणा के तुरंत बाद दोनों देशों ने एक दूसरे पर हमले करने के आरोप लगाए। यह सीज...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
प्राइम टीम, नई दिल्ली।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से मंगलवार को इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर (Israel-Iran ceasefire) की घोषणा मुश्किल से चंद मिनट ही टिक सकी। ट्रंप के इस ऐलान के थोड़े समय बाद ही इजरायल और ईरान ने एक-दूसरे पर सीजफायर का उल्लंघन करते हुए मिसाइलें दागने के आरोप लगाए। नाराज ट्रंप ने कहा कि दोनों देशों ने सीजफायर तोड़ा है।
ट्रंप खास तौर से इजरायल से ज्यादा खफा नजर आए। उन्होंने कहा, “इजरायल ने व्यापक हमले किए हैं। उन्होंने सिर्फ इसलिए ये हमले किए क्योंकि उन्हें लगा कि ईरान ने एक रॉकेट दागी है जो कहीं गिरी ही नहीं।” ट्रंप के अनुसार सीजफायर पर सहमति के तत्काल बाद इजरायल ने ये हमले किए हैं। उन्होंने कहा, “मैं इजरायल से खुश नहीं हूं। ईरान से भी नहीं।”
नाराजगी जताने के बाद ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर भी बात की। उसके बाद नेतन्याहू ने कहा कि वे आगे हमले नहीं करेंगे। ईरान ने कहा है कि उसकी तरफ से आखिरी हमला सीजफायर के कुछ मिनट पहले किया गया था।
वैसे, यह सीजफायर भारत के लिए बड़ी राहत की खबर है, क्योंकि इसका 100 अरब डॉलर से अधिक सालाना कारोबार मध्य-पूर्व के देशों के साथ होता है। ऊर्जा के मामले में भी भारत खाड़ी देशों पर काफी निर्भर है। सीजफायर से ऊर्जा की कीमतें स्थिर होंगी और महत्वपूर्ण शिपिंग मार्ग भी सुरक्षित रहेंगे। लेकिन युद्ध का फिर से भड़कना भारत के व्यापार और इसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए तो जोखिम भरा होगा ही, खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए भी नुकसानदायक होगा।
हालांकि यह संघर्ष विराम अस्थायी हो सकता है क्योंकि अमेरिका, इजरायल और ईरान के बीच विवाद के मुद्दे अनसुलझे हैं। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने अपने विश्लेषण में बताया है कि संघर्ष विराम का मुख्य उद्देश्य मध्य-पूर्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों को संभावित ईरानी मिसाइल के हमलों से बचाना है। एक बार अमेरिका ने अपने हथियारों को सुरक्षित कर लिया तो उसके बाद फिर लड़ाई शुरू हो सकती है। इसलिए भारत को हाई अलर्ट पर रहना चाहिए, क्योंकि नए सिरे से संघर्ष का जोखिम बना हुआ है और यह बिना किसी चेतावनी के शुरू हो सकता है।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, “भू-राजनीति और व्यापार में अमेरिका के अनिश्चित और एकतरफा कदम वैश्विक व्यवस्था को स्थायी नुकसान पहुंचा रहे हैं। भारत को अस्थिर विश्व व्यवस्था के बीच अपने सामरिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए लगातार सतर्क रहना चाहिए।”
भारत और अन्य प्रमुख ऊर्जा आयातक देशों की चिंता इस बात को लेकर है कि ईरान की संसद ने 22 जून को महत्वपूर्ण वैश्विक ऊर्जा कॉरिडोर, होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित किया है। वैश्विक ऑयल शिपमेंट का लगभग 20% और एलएनजी का लगभग 40% इस जलडमरूमध्य से गुजरता है। हालांकि ईरानी संसद में पारित यह प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं है और इस पर अंतिम निर्णय ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को लेना है।
होर्मुज जलडमरूमध्य का बंद होना भारत के लिए बड़ी चिंता की बात हो सकती है। इसका लगभग दो-तिहाई कच्चा तेल और आधा एलएनजी आयात इसी मार्ग से होता है। जलडमरूमध्य के बंद होने से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारत का आयात बिल तेजी बढ़ेगा, महंगाई में इजाफा होगा। शिपिंग बीमा प्रीमियम और माल ढुलाई लागत में उछाल आ सकती है। राजकोषीय स्थिति पर भी दबाव पड़ सकता है।
वैश्विक प्रभाव सिर्फ तेल तक सीमित नहीं रहेगा। इससे एशिया और यूरोप के बीच व्यापार भी व्यापक रूप से प्रभावित होगा। खाड़ी के मार्ग से हर साल लगभग 1.2 लाख करोड़ डॉलर का समुद्री व्यापार होता है। ऊर्जा, केमिकल, उर्वरक, मेटल और खाद्य उत्पादों के लिए ग्लोबल सप्लाई चेन पर निर्भर भारतीय उद्योगों को गंभीर कमी और अधिक लागत का सामना करना पड़ सकता है। कतर का एलएनजी निर्यात बाधित होने पर यूरोप में गैस की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी।
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पास के लाल सागर में भी स्थिति बिगड़ रही है। वहां 14-15 जून को हूती विद्रोहियों पर इजरायली हवाई हमलों के बाद तनाव बढ़ा है, जो भारत के पश्चिम की ओर निर्यात के लिए जोखिम भरा है। यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और अमेरिका के पूर्वी तट पर भारत का लगभग 30% निर्यात बाब अल-मंडेब (Bab al-Mandeb) जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है, जहां खतरा बढ़ गया है। इस जोखिम को देखते हुए यदि जहाजों को उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) की तरफ से ले जाना पड़ा, तो डिलीवरी का समय दो सप्ताह तक बढ़ जाएगा। इससे इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा, रसायन के निर्यातकों की लागत बढ़ जाएगी। साथ ही महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात भी महंगा हो जाएगा।
होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz Strait) के बंद होने की स्थिति में सैन्य संघर्ष बढ़ने का खतरा भी है। अमेरिकी नौसेना का पांचवां बेड़ा बहरीन में है। इस जलडमरूमध्य से आवागमन जारी रखने के लिए वह हस्तक्षेप कर सकता है। इंग्लैंड और फ्रांस भी अपने तेल और गैस हितों की रक्षा के लिए नौसेना तैनात कर सकते हैं।
चीन और भारत खाड़ी से ऊर्जा के दो सबसे बड़े आयातक हैं। इनके लिए सप्लाई का जोखिम बढ़ जाएगा। इसलिए ये देश कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से तनाव कम करने की कोशिश कर सकते हैं। ऊर्जा की कीमतें बढ़ने की उम्मीद में रूस, ईरान के कदम का समर्थन कर सकता है। हालांकि इससे खाड़ी के दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों में तनाव पैदा होने का जोखिम है।
जलडमरूमध्य के लंबे समय तक बंद रहने की स्थिति में खाड़ी क्षेत्र में व्यापक सैन्य संघर्ष शुरू होने का जोखिम है। इसका सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से भारत जैसे ऊर्जा पर निर्भर देशों के लिए गंभीर भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव होगा।
GTRI के अजय श्रीवास्तव के अनुसार, “बीजिंग और मॉस्को ने अब तक वॉशिंगटन के साथ सीधे सैन्य टकराव से परहेज किया है। लेकिन ईरान को उनके कूटनीतिक समर्थन ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। अमेरिका और इजरायल के खिलाफ ईरान को चीन और रूस का समर्थन मिल रहा है। वर्तमान स्थिति दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के इतने करीब ले आई है जितना हाल के दशकों में कभी नहीं हुआ।”
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