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    Israel-Iran War: हालत बिगड़े तो भारत की कौन सी इंडस्ट्री पर क्या होगा असर, जानिए डिटेल

    Israel-Iran war पर क्रिसिल ने नई रिपोर्ट जारी की है। इसमें उसने बताया है कि अभी तक तो भारतीय इंडस्ट्री पर इस युद्ध का कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन आने वाले समय में अगर हालात बिगड़े तो कई सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। यहां जानिए किस सेक्टर पर क्या असर होगा।

    By Jagran News Edited By: Sunil Kumar Singh Updated: Fri, 20 Jun 2025 06:45 PM (IST)
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    हालत बिगड़े तो भारत की कौन सी इंडस्ट्री पर क्या होगा असर, जानिए डिटेल

    Israel-Iran war: क्रिसिल रेटिंग्स ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि इजरायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष का अब तक भारतीय कॉरपोरेट्स के वैश्विक व्यापार पर कोई खास असर (Israel-Iran conflict impact) नहीं पड़ा है। हालांकि आने वाले समय में हालात बिगड़े और अनिश्चितता बढ़ी तो कुछ इंडस्ट्री सेक्टर इसकी चपेट (Indian industries affected) में आ सकते हैं। हालांकि यह प्रभाव विभिन्न सेक्टर पर अलग-अलग होगा। इस खबर में जानेंगे किस सेक्टर पर क्या प्रभाव होगा।

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    रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल और ईरान के साथ भारत का सीधा व्यापार अधिक नहीं है। ईरान को भारत का मुख्य निर्यात बासमती चावल है, जबकि इजरायल के साथ कई तरह की वस्तुओं का व्यापार होता है। इनमें इसमें उर्वरक, हीरे और बिजली के उपकरण आदि शामिल हैं।

    मध्य-पूर्व में अनिश्चितता बढ़ने से ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान आ सकता है। स्पेशलिटी केमिकल, पेंट, एविएशन और टायर क्षेत्र भी इसका प्रभाव महसूस कर सकते हैं। फर्टिलाइजर और हीरे जैसे सेक्टर भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। अनिश्चितता लंबे समय तक रही तो निर्यात-आयात के लिए हवाई तथा समुद्री मार्ग से माल ढुलाई की लागत और बीमा प्रीमियम में वृद्धि हो सकती है।

    किस सेक्टर पर क्या होगा प्रभाव

    तेलः कच्चे तेल की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न सेक्टर पर अलग-अलग होगा। तेल की ऊंची कीमतों से अपस्ट्रीम यानी उत्पादन करने वाली तेल कंपनियों को लाभ होगा क्योंकि इससे उन्हें अधिक राजस्व प्राप्त होगा जबकि उनकी लागत वही रहेगी। कच्चे तेल की रिफाइनिंग करने वाली डाउनस्ट्रीम कंपनियों की लागत बढ़ने से उनका ऑपरेटिंग मार्जिन कम हो सकता है, क्योंकि ईंधन की खुदरा कीमतें बढ़ाने की उनकी क्षमता सीमित है।

    बासमतीः वित्त वर्ष 2025 में भारत ने 14% बासमती चावल निर्यात ईरान और इजरायल को किया। लेकिन बासमती एक मुख्य खाद्यान्न है, इसलिए इसकी मांग पर प्रभाव सीमित रहेगा। मध्य-पूर्व के अन्य देशों, अमेरिका और यूरोप को निर्यात करने की भारत की क्षमता को देखते हुए भी इसमें जोखिम कम है। लेकिन संकट लंबे समय तक चला तो प्रभावित क्षेत्र के देशों से भुगतान में देरी हो सकती है।

    हीराः भारत में हीरा पॉलिश करने वालों के लिए इजरायल मुख्य रूप से एक ट्रेडिंग हब है। पिछले वित्त वर्ष भारत के कुल हीरा निर्यात का लगभग 4% इजरायल को हुआ था। इसके अतिरिक्त करीब 2% कच्चे हीरे का आयात इजरायल से होता है। पॉलिश करने वालों के पास बेल्जियम और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे वैकल्पिक व्यापारिक केंद्र भी हैं। उनके अंतिम खरीदार अमेरिका और यूरोप में हैं, जो इस सेक्टर पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद करेंगे।

    फर्टिलाइजरः इजरायल म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP) का प्रमुख उत्पादक है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने लगभग 7% एमओपी का आयात इजरायल से किया था। हालांकि भारत की उर्वरक खपत में MoP की हिस्सेदारी 10% से भी कम है। भारत के पास अन्य देशों से MoP खरीदेने का भी विकल्प है। इसलिए इसमें भी भारत के लिए जोखिम कम है।

    केमिकलः स्पेशलिटी केमिकल कंपनियों की परिचालन लागत का लगभग 30% कच्चे तेल से जुड़ा होता है। इनके लिए भी इनपुट लागत में वृद्धि को ग्राहकों पर थोपने की क्षमता सीमित होगी। पिछले दो वित्त वर्ष से यह सेक्टर चीन से लगातार डंपिंग झेल रहा है। मांग में कमी की भी समस्या है। इस सेक्टर ने हाल ही सामान्य स्थिति में लौटना शुरू किया है।

    पेंटः पेंट सेक्टर के मार्जिन पर कुछ दबाव देखने को मिल सकता है, क्योंकि इसकी उत्पादन लागत का लगभग 30% कच्चे तेल से जुड़ा होता है। प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियां इनपुट लागत में वृद्धि के हिसाब से प्रोडक्ट के दाम नहीं बढ़ा सकती हैं। इससे कुछ हद तक उनकी लाभप्रदता प्रभावित होगी।

    एविएशनः एयरलाइंस के ऑपरेटिंग खर्च में 35 से 40 प्रतिशत हिस्सा ईंधन का होता है। ईंधन महंगा होने पर यह खर्च भी बढ़ेगा। इसके अलावा, एयरस्पेस बंद होने या डायवर्सन के कारण यात्रा समय में वृद्धि के कारण भी एयरलाइंस की ईंधन लागत में वृद्धि होगी। हालांकि अच्छी मांग बनी रहने से इनके मार्जिन में ज्यादा गिरावट की संभावना नहीं है।

    टायरः टायर क्षेत्र की परिचालन लागत का लगभग आधा हिस्सा कच्चे तेल से जुड़ा है। इस सेक्टर का 60-65% बिजनेस रिप्लेसमेंट मार्केट से और बाकी कार निर्माताओं की तरफ से आता है। टायर कंपनियां रिप्लेसमेंट मार्केट में तो आसानी से दाम बढ़ा सकती हैं, लेकिन कार कंपनियों को लागत में वृद्धि पास करने में समय लगता है। इस दौरान उनका मार्जिन प्रभावित होने की आशंका रहेगी।

    पैकेजिंगः पैकेजिंग और सिंथेटिक टेक्सटाइल फर्मों की उत्पादन लागत का 70-80% हिस्सा कच्चे तेल से जुड़ा होता है। डिमांड-सप्लाई की बेहतर स्थिति को देखते हुए इनके लिए भी लागत को ग्राहकों तक पास करना अपेक्षाकृत आसान होगा, हालांकि इसमें थोड़ा समय लग सकता है।

    कुल मिलाकर देखें तो बैलेंस शीट मजबूत होने के कारण अधिकांश भारतीय कंपनियों पर तात्कालिक प्रभाव सीमित रहने की उम्मीद है। लेकिन युद्ध के हालात लंबे समय तक बने रहे तो तेल की कीमतों में वृद्धि और सप्लाई चेन में बाधा के कारण प्रभाव बढ़ सकता है। इससे महंगाई भी बढ़ेगी।