स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। शेयर बाजार, बीमा, म्यूचुअल फंड समेत वित्तीय सेवाओं से जुड़ी कंपनियों का लोगाें से सीधा जुड़ाव होता है। वहीं, आम बजट भी इन पर सीधा असर डालता है। ऐसे में बेहतर बिजनेस और अपने उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए वित्तीय सेवा कंपनियां बजट से बहुत अपेक्षाएं रखती हैं।

इस साल के बजट के लिए भी तमाम कंपनियों ने अपनी विशलिस्ट सरकार के सामने रख दी है। हालांकि, आगामी वित्त वर्ष में सरकार की आमदनी में अपेक्षाकृत कम ग्रोथ की आशंका के चलते बजट में ज्यादा रियायत की उम्मीद नहीं की जा रही है।

देश की प्रमुख वित्तीय सेवा कंपनी आनंद राठी समूह के संस्थापक आनंद राठी जागरण प्राइम से कहते हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था कठिन समय से गुजर रही है। वर्ष 2023 और 2024 में बहुत कम विकास हासिल करने की संभावना है। ऐसे में मैं बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षमता में निवेश को बढ़ावा चाहूंगा। विकास के उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए उद्योगों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को उचित ब्याज दर पर धन उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है। रियल एस्टेट उद्योग भी टर्नअराउंड मोड में है और सरकार रियल एस्टेट उद्योग को हर संभव सहायता प्रदान करना चाहेगी।

राठी कहते हैं, भारतीय पूंजी बाजार अच्छी तरह से विकसित हो चुके हैं। पिछले 18 महीनों के दौरान एफआईआई द्वारा भारी बिकवाली के बावजूद बाजार में तेजी बनी हुई है। मैं चाहूंगा कि पूंजी बाजार की यह तेजी बनी रहे ताकि उद्यमी पूंजी बाजार से अपनी वृद्धि के लिए आसानी से पूंजी जुटा सकें।

राठी ने कहा कम महंगाई दर के साथ उच्च विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं वित्त मंत्री से बजट में निम्नलिखित प्रावधान करने की अपेक्षा करता हूं। पहला, राजकोषीय घाटा अधिकतम 5.5% से 6% के बीच रखा जाना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण और कृषि बुनियादी ढांचे में बुनियादी ढांचे के लिए परिव्यय में वृद्धि होनी चाहिए। गरीब लोगों के लिए बीमा कवर की सीमा 20% बढ़ाएं, क्योंकि चिकित्सा लागत बढ़ रही है। कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दें।

जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के नवनिर्वाचित अध्यक्ष और बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ तपन सिंघल कहते हैं, भारत का वर्ष 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। इस सपने को साकार करने के लिए हमें कुछ गैप्स को भरना होगा जो हमारे विकास में बाधा बन सकते हैं। ये गैप हैं, कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा, प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान, कृषि को प्रभावित करने वाले जलवायु परिवर्तन और महामारी। हमारा विचार है कि इस बजट और आने वाले कुछ बजटों का लक्ष्य इन मुद्दों को हल करना होना चाहिए।

सिंघल ने कहा, भारत में 40 करोड़ से अधिक भारतीयों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है। इसमें मुख्य रूप से स्वरोजगार वाले और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले शामिल हैं। इस 'लापता (अबीमित) मध्य' को किफायती, व्यापक स्वास्थ्य बीमा की आवश्यकता है। इसलिए केंद्रीय बजट में सभी के लिए सरकारी निविदा दर पर स्वास्थ्य बीमा का प्रावधान शामिल होना चाहिए। अधिक नागरिकों को कवर करने के लिए कर्मचारी बीमा अनिवार्य किया जाना चाहिए।

भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को आगाह करते हुए सिंघल कहते हैं, प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रत्येक घटना के बाद सरकारों को राहत उपायों के लिए बड़ी रकम आवंटित करनी पड़ती है। इस मुद्दे को पैरामीट्रिक बीमा के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है। पैरामीट्रिक बीमा शुरू करने का प्रावधान आगामी बजट में शामिल किया जाए।

महामारी से बचाव का उपाय सुझाते हुए सिंघल कहते हैं, हाल ही में हमने अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव को देखा है। महामारी के पिछले तीन वर्षों के दौरान हमें लगभग 52.6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, जो हमारी जीडीपी का 12 फीसदी है। हमें अगली महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए। महामारी पूल की सफल शुरुआत के लिए केंद्र सरकार से समर्थन की आवश्यकता है।

देश की प्रमुख फिनटेक कंपनी बैंकबाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी बजट में स्वास्थ्य बीमा पर लगने वाले जीएसटी मे राहत की उम्मीद करते हैं। शेट्टी कहते हैं, देश में बीमा की पैठ कम है, लेकिन स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी की दर 18% है, जो अपेक्षाकृत अधिक है। सरकार इस जीएसटी दर पर पुनर्विचार कर सकती है और इसे अधिक किफायती बनाने के लिए कम कर सकती है।

मोतीलाल ओसवाल एएमसी के कार्यकारी निदेशक प्रतीक अग्रवाल के मुताबिक, आगामी बजट भारतीय विकास को प्रभावित करने वाली एक अपेक्षित वैश्विक मंदी की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत होने जा रहा है। घरेलू स्तर पर भी उपभोक्ता कंपनियां त्योहारी सीजन के बाद मंदी के संकेत दे रही हैं।

चुनावों से पहले यह आखिरी बजट है। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि राष्ट्र निर्माण पर ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा, भू-राजनीतिक अनिवार्यताओं को देखते हुए बड़े रक्षा आवंटन की अपेक्षा की जाती है। वित्त वर्ष 2023 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति दोनों में कमी को देखते हुए सरकार के लिए राजस्व की गति धीमी होने के आसार हैं, जिससे चीजें और अधिक कठिन हो जाएंगी। रेवेन्यू फोकस को देखते हुए कहीं भी कमी की उम्मीद न करें।

म्यूचुअल फंड कंपनियों के संगठन एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के सीईओ एनएस वेंकटेश बजट में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड की अपेक्षा करते हैं। वेंकटेश के मुताबिक, कई प्रावधान ऐसे हैं जो समान उत्पाद होने के बावजूद बीमा उत्पाद के प्रति अधिक फेवरेबल हैं। इन्हें बदलने की जरूरत है।

टीडीएस के प्रावधान का उदाहरण देते हुए वेंकटेश ने कहा कि बैंक एफडी में 40 हजार से अधिक ब्याज मिलने पर टीडीएस लगता है, जबकि म्यूचुअल फंड में 5000 रुपए से अधिक के डिविडेंड पर ही टीडीएस कटने लगता है। यह बहुत कम राशि है। हमारी मांग है कि 50 हजार रुपए से अधिक के डिविडेंड पर ही टीडीएस काटा जाए। इसी तरह, यूलिप की तुलना में म्यूचुअल फंड पर लगने वाला कैपिटल गेन टैक्स काफी अधिक है। यह यूलिप प्रोडक्ट को म्यूचुअल फंड पर एडवांटेज देता है। हमारी मांग है कि म्यूचुअल फंड से निकासी पर लगने वाले कैपिटल गेन टैक्स को यूलिप से निकासी पर लगने वाले कैपिटल गेन टैक्स के बराबर किया जाए।