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    Netaji Jayanti: 'मेरी फौज में कोई हिंदू नहीं', मंदिर के पुजारी को नेताजी ने दिया था जवाब; क्या था एक रसोई और दो रोटी का नियम?

    प्रयागराज में महाकुंभ में श्रद्धालु आस्‍था की डुबकी लगा रहे हैं तो दिल्‍ली में गणतंत्र दिवस पर होने वाली परेड की तैयारियां जोरों पर हैं। गूगल सर्च पर भी हिंदू सनातन गणतंत्र दिवस और धर्म निरपेक्ष जैसे शब्‍द खूब सर्च हो रहे हैं। नेताजी की जयंती पर दैनिक जागरण ने उनके परपोते से बात की। पढ़िए नेताजी धर्म को लेकर क्‍या सोचते थे...

    By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 23 Jan 2025 12:46 PM (IST)
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    नेताजी सुभाष चंद्र बोस: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में धर्मनिरपेक्षता और एकता के प्रतीक।

    विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस हिंदू धर्म के परम अनुयायी होने के साथ ही वह सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान भी करते थे। नेताजी के परपोते चंद्र कुमार बोस ने उनसे जुड़ा एक संस्मरण साझा करते हुए कहा-'नेताजी सन् 1944 में जब अपनी आजाद हिंद फौज के साथ सिंगापुर में थे, तब वहां रहने वाले दक्षिण भारतीय मूल के हिंदू समुदाय चेत्तियार की ओर से उन्हें अपने मंदिर में आने के लिए आमंत्रित किया गया था।

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    मंदिर के प्रधान पुरोहित ने नेताजी से कहा था कि वे आजाद हिंद फौज में शामिल सिर्फ हिंदू समुदाय के अफसरों को साथ लेकर मंदिर में आएं। इसपर नेताजी ने उनसे कहा था, ''उनकी फौज में कोई हिंदू अफसर नहीं है। सारे भारतीय अफसर हैं। अगर आप मुझे अपने समस्त भारतीय अफसरों के साथ मंदिर में आने की अनुमति देंगे, तभी मैं आपका आमंत्रण स्वीकार करूंगा।''

    नेताजी का जवाब सुनकर प्रधान पुरोहित मुग्ध हो गए थे और उन्होंने सभी अफसरों को साथ लेकर मंदिर आने की अनुमति दी थी।

    इसके बाद नेताजी आजाद हिंद फौज में शामिल हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध व जैन समेत विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ मंदिर गए थे। उन सभी के माथे पर तिलक लगाकर स्वागत किया गया था। नेताजी ने वहां अपने अभिभाषण में सांप्रदायिक एकता का संदेश दिया था।

    'वे सिर्फ भारतीय हैं, किसी धर्म के नहीं'

    चंद्र कुमार बोस ने आगे बताया, 'मंदिर से बाहर निकलने पर नेताजी ने माथे पर लगा तिलक पोंछ लिया था। इसका कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि मंदिर के अंदर वे हिंदू थे। बाहर आने पर भारतीय हो गए हैं। आजादी की लड़ाई में वे सिर्फ एक भारतीय हैं, किसी धर्म के नहीं।

    परपोते ने बताया-'नेताजी मां काली के परम भक्त थे। वे रातभर दक्षिणेश्वर काली मंदिर में उपासना करते थे। रामकृष्ण परमहंस व स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। हालांकि, उनकी विचारधारा भिन्न थी। वे धर्म के पालन व इसके आचरण को व्यक्तिगत विषय मानते थे, इसलिए आजादी की लड़ाई व राजनीति के मैदान में कभी इसे लेकर नहीं आए। आजाद हिंद फौज में भी उन्होंने इसी अनुशासन को बरकरार रखा।

    आजाद हिंद फौज में थी सबके लिए एक रसोई

    नेताजी के परपोते ने बताया-''ब्रिटिश आर्मी में जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत सभी धर्मों से संबद्ध सैनिकों के लिए अलग-अलग रसोई हुआ करती थी। वहीं नेताजी ने आजाद हिंद फौज में सबके लिए एक ही रसोई रखी थी। वहीं सबके लिए खाना पकता था और सब साथ बैठकर खाते थे।

    नेताजी हमेशा कहा करते थे कि आजाद हिंद फौज के 60,000 सैनिक सिर्फ और सिर्फ भारतीय हैं। उन्होंने धर्म के आधार पर अपनी फौज गठन नहीं किया और न ही किसी समुदाय के लोगों को इसमें प्राथमिकता दी। आजादी की खातिर मर-मिटने को तैयार लोगों को ही उन्होंने अपनी फौज में शामिल किया।''

    परिवार के लिए क्‍यों बनाया था दो रोटी का नियम?

    परपोते ने नेताजी के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य उजागर करते हुए बताया कि खानपान हमेशा से बोस परिवार की कमजोरी रही है। हमारे परिवार के लोग ज्यादा खाकर तबीयत खराब कर लेते थे, इसलिए अभिभावक के तौर पर नेताजी ने नियम बनाया था कि रात के भोजन में सबको सब्जी अथवा मांस-मछली के साथ सिर्फ दो रोटी ही मिलेगी। नेताजी भारी व्यस्तता के कारण दोपहर का भोजन परिवार के साथ नहीं कर पाते थे, लेकिन रात का भोजन पूरा बोस परिवार साथ में करता था।

    संयुक्त परिवार के थे पक्षधर

    नेताजी संयुक्त परिवार के पुरजोर पक्षधर थे, क्योंकि वे एकता की ताकत समझते थे। उनका बचपन अपने सात भाइयों व छह बहनों के साथ कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित मकान में बीता, जो आज 'नेताजी भवन' के नाम से जाना जाता है। बाद में वे अपने बड़े भाई शरत चंद्र बोस के मकान में रहने आ गए। वहां भी पूरा परिवार साथ में रहता था।

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    कंप्लीट फैमिली मैन

    नेताजी के परपोते का कहना है कि नेताजी को गरमपंथी स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाना जाता है, लेकिन वे एक कंप्लीट फैमिली मैन भी थे और परिवार के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे। परिवार के छोटे सदस्यों से वे ज्यादा घुले-मिले हुए थे। भारी व्यस्तता के बावजूद वे समय निकालकर उनके साथ खेला करते थे। नेताजी देश के किसी भी कोने में क्यों न हों, परिवार के सदस्यों को वहां से नियमित रूप से पत्र लिखा करते थे।

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