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    'फोन पर जातिसूचक गाली देने पर एससी-एसटी अधिनियम लागू नहीं', कलकत्ता हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी 

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 08:11 PM (IST)

    कलकत्ता हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि यदि जाति के आधार पर गाली फोन पर दी जाती है और सार्वजनिक रूप से नहीं, तो एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधान ...और पढ़ें

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    कलकत्ता हाई कोर्ट की टिप्पणी। (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि यदि फोन पर जाति के आधार पर गाली दी जाती है और सार्वजनिक रूप से नहीं, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट) के प्रविधान पहली नजर में लागू नहीं होंगे। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की अनुमति दे दी।

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    न्यायमूर्ति जय सेनगुप्ता ने याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर संबंधित क्षेत्राधिकार न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने आदेश दिया और कहा कि इस अवधि के दौरान उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। इससे याचिकाकर्ता को अंतरिम सुरक्षा मिल गई है।

    क्या है मामला?

    मालूम हो कि फोन पर जाति के आधार पर गाली देने के मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्राथमिकी में फोन पर गाली देने की बात कही गई है, जिससे सार्वजनिक रूप से किसी स्थान वाला प्रविधान लागू नहीं होता इसलिए एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला नहीं बनता।

    राज्य सरकार के वकील ने केस डायरी व गवाहों के बयानों का दिया हवाला

    राज्य सरकार के वकील ने तर्क का विरोध करते हुए केस डायरी और गवाहों के बयानों का हवाला दिया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति सेनगुप्ता ने कहा कि इस आरोप को यदि सही मान भी लिया जाए तो भी यह स्पष्ट है कि गाली केवल फोन पर दी गई, सार्वजनिक रूप से नहीं और उस समय तीसरा व्यक्ति भी सार्वजनिक रूप से मौजूद नहीं था। फोन पर निजी बातचीत को सार्वजनिक अपमान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

    ऐसे हालात में एससी/एसटी अधिनियम के प्रविधान लागू नहीं होते, हालांकि विशेष अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं है। कानून के जानकारों के अनुसार यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले (हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य) के अनुरूप है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध होने के लिए अपमान का किसी भी सार्वजनिक स्थान पर होना अनिवार्य है।

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