'MSMED एक्ट में फैसिलिटेशन काउंसिल द्वारा पारित अवार्ड के खिलाफ याचिका सुनवाई योग्य नहीं', SC ने ऐसा क्यों कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एमएसएमइडी एक्ट के तहत फैसिलिटेशन काउंसिल द्वारा पारित अवार्ड के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी। यह आदेश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने गत छह नवंबर को दिया। एकल पीठ के इस फैसले को हाई कोर्ट की खंडपीठ ने पलट दिया। हाई कोर्ट की खंडपीठ के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश में कहा है कि एमएसएमइडी एक्ट (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनिमय 2006) के तहत फैसिलिटेशन काउंसिल द्वारा पारित अवार्ड के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि एक्ट के तहत अवार्ड के खिलाफ सही उपाय मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 34 के तहत प्रदान की गई राहत अपनाने के बजाए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना अस्वीकार्य होगा।
हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती
यह आदेश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने गत छह नवंबर को दिया। इस मामले में तेलंगाना हाई कोर्ट की एकल पीठ ने फैसिलिटेशन काउंसिल द्वारा पारित अवार्ड को इस आधार पर रद कर दिया कि दावा समय बाधित है। हालांकि एकल पीठ के इस फैसले को हाई कोर्ट की खंडपीठ ने पलट दिया। हाई कोर्ट की खंडपीठ के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एमएसएमइडी एक्ट की धारा 19 के मुताबिक कोई भी अदालत तब तक फैसिलिटेशन काउंसिल के अवार्ड को रद नहीं कर सकती, जब तक कि याचिकाकर्ता अवार्ड के मुताबिक 75 फीसद राशि नहीं जमा करा देता।
'फैसिलिटेशन काउंसिल का अवार्ड शासित होगा'
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एमएसएमइडी एक्ट की धारा 18(4) के मुताबिक, जहां फैसिलिटेशन काउंसिल विवाद को मध्यस्थता के जरिए निबटाना शुरू करती है, वहां उस विवाद में मध्यस्थता और सुलह अधिनिमय 1996 के प्रविधान लागू होंगे। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में इस तरह अधिनियम 1996 की धारा 34 के तहत प्रदान की गई राहत के हिसाब से फैसिलिटेशन काउंसिल का अवार्ड शासित होगा।
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'याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती'
सुप्रीम कोर्ट ने कानून की धारा 19 में अवार्ड के संदर्भ में 75 फीसद राशि जमा कराने की शर्त के औचित्य को समझाते हुए कहा कि इसे उन उद्यमों के लिए सुरक्षा उपाय के रूप में पेश किया गया है, जिनके लिए संसद द्वारा एमएसएमइडी एक्ट के रूप में विशेष प्रविधान किया गया है। कोर्ट ने कहा, चूंकि याचिकाकर्ता अधिनियम 1996 की धारा 34 के तहत डिक्री की राशि का 75 फीसद जमा करके अपनी राहत को आगे बढ़ाने में नाकाम रहा, ऐसे में याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती।
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कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत 75 फीसद राशि जमा कराने के दायित्व को संविधान के अनुच्छेद 226-227 के अधिकार क्षेत्र का सहारा लेकर समाप्त करने की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती। इसकी इजाजत नहीं है।
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