क्या सियासी दलों पर भी लागू होगा POSH एक्ट? याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया यह जवाब
राजनीतिक दलों में भी कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून लागू करने की मांग उठी है। सोमवार को याचिका पर देश की शीर्ष अदालत ने सुनवाई की। याचिका में मांग की गई कि अदालत सियासी दलों को अपने यहां आंतरिक शिकायत समितियां गठित करने का आदेश दे। सुप्रीम कोर्ट ने याची को पहले चुनाव आयोग जाने को कहा है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीतिक दलों में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोक कानून लागू करने और आंतरिक शिकायत समितियां गठित करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोई आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पहले चुनाव आयोग के समक्ष मांग रखने को कहा है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर चुनाव आयोग कोई कार्रवाई नहीं करता तो वह फिर कोर्ट आ सकता है। ये आदेश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने योगमाया एमजी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए।
सोमवार को जब मामला सुनवाई पर आया तो याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि राजनैतिक दलों में भी कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न कानून लागू होना चाहिए और कोर्ट राजनैतिक दलों में भी आंतरिक शिकायत समितियां गठित करने का आदेश दें, जहां यौन उत्पीड़न की शिकायत की जा सके।
तो क्या कानून लागू होना कठिन
पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि केरल हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि राजनैतिक दलों में नियोक्ता और कर्मचारी संबंध नहीं होता जिससे राजनैतिक दलों पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोक कानून लागू होना कठिन हो जाता है। हालांकि यह कानून अन्य परिस्थितियों में भी लागू हो सकता है। वकील ने कहा कि कानून की धारा छह गठित स्थानीय समितियों में संविदा कर्मचारी या अनआर्गनाइज्ड सेक्टर के लोगों के शिकायत करने की बात करती हैं।
छह सियासी दलों को बनाया प्रतिवादी
याचिका में मान्यता प्राप्त छह राजनैतिक दलों को प्रतिवादी बनाया गया था। वकील ने कहा कि चुनाव आयोग ही राजनैतिक दलों का पंजीकरण करता है। जिस पर कोर्ट ने कहा कि सक्षम अथॉरिटी यहां चुनाव आयोग है तो फिर याचिकाकर्ता को पहले चुनाव आयोग के समक्ष जाना चाहिए और अगर चुनाव आयोग कार्रवाई नहीं करता तो वह फिर से कोर्ट आ सकता है। वकील ने कोर्ट के सुझाव से सहमति जताई।
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