आरोपित भाषा नहीं समझ पा रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि चार्जशीट अवैध है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत की भाषा में ही चार्जशीट दाखिल करना जरूरी नहीं है। आरोपित अगर चार्जशीट की भाषा नहीं समझता तो उससे चार्जशीट अवैध नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को जांच एजेंसियों या पुलिस जांच के रिकार्ड की भाषा तय करने की शक्ति नहीं है। आरोपित इस आधार पर जमानत नहीं मांग सकता है कि उसे चार्जशीट की भाषा का ज्ञान नहीं है।

नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत की भाषा में ही चार्जशीट दाखिल करना जरूरी नहीं है। आरोपित अगर चार्जशीट की भाषा नहीं समझता तो उससे चार्जशीट अवैध नहीं होती। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत ऐसा कोई विशिष्ट प्रविधान नहीं है जिसके तहत जांच एजेंसी के लिए अदालत की भाषा में चार्जशीट दाखिल करना आवश्यक हो।
राज्यों को नहीं है जांच एजेंसियों के रिकार्ड की भाषा तय करने की शक्ति
अदालतों की भाषा से संबंधित सीआरपीसी की धारा 272 के अनुसार, राज्य सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि हाई कोर्ट के अलावा राज्य के प्रत्येक अदालत की भाषा क्या होगी, लेकिन राज्यों को जांच एजेंसियों या पुलिस जांच के रिकार्ड की भाषा तय करने की शक्ति नहीं है। आरोपित इस आधार पर जमानत नहीं मांग सकता है कि उसे चार्जशीट की भाषा का ज्ञान नहीं है।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआइ की अपील स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया।
हिंदी में देने के लिए कहा गया था चार्जशीट की प्रति
इस फैसले में जांच एजेंसी को व्यापम घोटाले के दो आरोपितों को चार्जशीट की प्रति हिंदी में देने के लिए कहा गया था। पीठ ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया और आरोपितों नरोत्तम धाकड़ और सुनील सिंह को हिंदी में आरोपपत्र की प्रति देने से इनकार करने संबंधी निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। धाकड़ और सुनील ने दावा किया था कि वे सीबीआइ द्वारा अंग्रेजी में दाखिल चार्जशीट को नहीं समझ पा रहे हैं।
पीठ ने क्या कहा?
निचली अदालत ने कहा था कि दोनों शिक्षित हैं, उन्हें अंग्रेजी का ज्ञान है और उन्होंने अदालती दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी उसी भाषा में किए हैं। पीठ ने कहा
यदि अदालत की भाषा में रिपोर्ट नहीं है तो भी कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी। कार्यवाही तब तक प्रभावित नहीं होगी जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि चूक के परिणामस्वरूप न्याय प्रदान नहीं किया जा सका है। इस मुद्दे पर निर्णय करते समय कि क्या न्याय प्रदान करने में विफलता रही है, अदालत को इस बात पर विचार करना होगा कि क्या आपत्ति जल्द से जल्द उपलब्ध अवसर पर दर्ज कराई गई थी।
पीठ ने कहा
राज्य को यह तय करने की शक्ति नहीं है कि जांच एजेंसियों या पुलिस द्वारा जांच के रिकार्ड को बनाए रखने के प्रयोजनों के लिए किस भाषा का उपयोग किया जाएगा।
2013 में सामने आया था व्यापम घोटाला
व्यापम या मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा बोर्ड घोटाला 2013 में सामने आया था, जिसमें अभ्यर्थियों ने अधिकारियों को रिश्वत दी थी और अपनी उत्तर पुस्तिकाएं अन्य लोगों से लिखवा ली थीं। 1995 में शुरू हुए घोटाले की जांच 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय एजेंसी ने अपने हाथ में ली थी। इस गिरोह में कुछ नेता, वरिष्ठ अधिकारी और व्यवसायी शामिल थे।
चार्जशीट की अनुवादित प्रति दी जा सकती है लेकिन..
पीठ ने शुक्रवार को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि अपनी पैरवी खुद करने वाला आरोपित अगर उपलब्ध कराए गई चार्जशीट और अन्य दस्तावेज की भाषा नहीं समझता है तो उसे अदालत के सामने जल्द से जल्द आपत्ति दर्ज करानी चाहिए। उसे अनुवादित दस्तावेज उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपित का प्रतिनिधित्व एक ऐसे वकील द्वारा किया जाता है जो अंतिम रिपोर्ट या आरोप पत्र की भाषा को पूरी तरह से समझता है, तो है तो वह अपने मुवक्किल को इसे समझा सकता है। उस स्थिति में आरोपित को अनुवादित दस्तावेज उपलब्ध कराने की जरूरत नहीं है।
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