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    पॉक्सो कानून को कड़ाई से लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, अदालत ने केंद्र सहित अन्य को जारी किया नोटिस

    By Jagran NewsEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Sun, 27 Aug 2023 12:58 AM (IST)

    Supreme Court बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए लाए गए पॉक्सो कानून को कड़ाई से लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार का मन बनाते हुए केंद्र सरकार राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग व अन्य को नोटिस जारी किया है। गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है।

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    पॉक्सो कानून को कड़ाई से लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए लाए गए पॉक्सो कानून को कड़ाई से लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार का मन बनाते हुए केंद्र सरकार, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग व अन्य को नोटिस जारी किया है।

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    गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है, जिसमें पॉक्सो कानून में सहमति की उम्र घटाने को लेकर चल रही चर्चा का विरोध किया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पक्षों को भेजा नोटिस

    शुक्रवार 25 अगस्त को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वकील की दलीलें सुनने के बाद याचिका में प्रतिपक्षी बनाई गई केंद्र सरकार, तमिलनाडु सरकार और राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को नोटिस जारी किया।

    याचिका में क्या दी गई दलील?

    याचिका में पीड़िता के 16 से 18 वर्ष के बीच की होने पर प्रेम के मामलों और संबंध बनाने की सहमति होने को लेकर विभिन्न हाई कोर्ट के फैसलों में की गई टिप्पणियों व तमिलनाडु पुलिस द्वारा ऐसे मामलों में गिरफ्तारी में जल्दबाजी न करने के जारी किये गए सर्कुलर का विरोध किया गया है।

    याचिका में सुप्रीम कोर्ट से तमिलनाडु के डीजीपी ऑफिस से 3 दिसंबर 2022 को जारी किये गए सर्कुलर को रद करने की मांग की गई है। इस सर्कुलर में कहा गया है कि आपसी सहमति और प्रेम के मामलों में गिरफ्तारी में पुलिस जल्दबाजी न करे। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट पॉक्सो कानून को कड़ाई से लागू करने के बारे में दिशा निर्देश जारी करे।

    आरोपी को जमानत देने पर उठे सवाल

    याचिका में विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा पीड़िता के 16 से 18 वर्ष के बीच होने पर संबंध बनाने में उसकी सहमति आदि को लेकर की गई टिप्पणियों और आरोपियों को जमानत दिये जाने के मामलों का जिक्र किया गया है। कहा गया है कि बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो कानून लाया गया था। इस तरह के आदेशों और धारणा से उसका उद्देश्य कमजोर होता है।

    याचिका में कहा गया है कि कुछ गैर सरकारी संगठनों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा 60 से 70 प्रतिशत मुकदमों में सहमति से संबंध होने को लेकर किये गए दावे तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं। उन लोगों ने तथ्यों की गलत व्याख्या की है। बचपन बचाओ आंदोलन का कहना है कि पॉक्सो के तहत मामलों में 16 से 18 आयु वर्ग के बीच के किशोरों के मामलों की संख्या महज 30 फीसद है।

    विभिन्न पहलुओं पर दिलाया गया ध्यान

    याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय बाल आयोग को निर्देश दे कि वह पॉक्सो कानून में सहमति से बने संबंधों जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र है और जिनमें उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच की है, सर्वे और विश्लेषण करें और भी कई निर्देश याचिका में मांगे गए हैं।

    बचपन बचाओ आंदोलन के पूर्व राष्ट्रीय सचिव भुवन ऋभु ने मामले में कोर्ट से नोटिस होने पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इससे उन मामलों में दिशानिर्देश तय करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, जिनमें यौन शोषण की शिकार बच्ची धमकी और दबाव में आकर अपने बयान से मुकर जाती है और फिर इसे सहमति से बने संबंध का मामला मान लिया जाता है।