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राज्य सरकार को SC-ST में आरक्षण के भीतर कोटा देने का अधिकार? सुप्रीम कोर्ट में बहस पूरी फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस कानूनी सवाल पर अपना आदेश सुरक्षित रखा कि क्या राज्य सरकार को आरक्षण के लिहाज से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में जातियों के उप वर्गीकरण का अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं जिसमें ईवी चिन्नैया फैसले की समीक्षा की मांग की गई।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaPublished: Thu, 08 Feb 2024 05:51 PM (IST)Updated: Thu, 08 Feb 2024 08:20 PM (IST)
SC-ST में आरक्षण के भीतर कोटा देने का मामला (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी को कोटे में कोटा पर सभी पक्षों की बहस सुनकर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला देगा कि क्या राज्य सरकार को आरक्षण के लिहाज से एससी-एसटी में उप वर्गीकरण करने का अधिकार है।

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प्रधान न्याायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले में जो भी फैसला सुनाएगी वह आने वाले समय में आरक्षण की दिशा और दशा तय करने वाला होगा। सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इसी मुद्दे पर 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच न्यायाधीशों के फैसले पर भी पुनर्विचार करेगी।

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सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं लंबित

चिन्नैया के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसीस एसटी आरक्षण में राज्य सरकार को उपवर्गीकरण करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 याचिकाएं लंबित हैं जिनमें एससी-एसटी आरक्षण में उप वर्गीकरण का मुद्दा उठाया गया है। मुख्य मामला पंजाब का है। जिसमें पंजाब सरकार 2006 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 लायी थी। इस कानून में पंजाब में एससी वर्ग को मिलने वाले कुल आरक्षण में से 50 फीसद सीटें और पहली प्राथमिकता वाल्मीकि और मजहबियों (मजहबी सिख) के लिए तय कर दी गईं थीं।

ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामला

हाई कोर्ट ने 2010 में पंजाब के इस कानून को असंवैधानिक ठहरा दिया था जिसके खिलाफ पंजाब सरकार की सुप्रीम कोर्ट में अपील है। सात न्यायाधीश इस मामले को इसलिए सुन रहे हैं, क्योंकि 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में दिए फैसले में कहा था कि राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण का अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की एक अन्य पीठ ने माना था कि चैन्नया के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है इसलिए आरक्षण के लिहाज से एससी-एसटी वर्ग में उप वर्गीकरण के इस मामले पर सात न्यायाधीशों की पीठ विचार कर रही है।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, विक्रमनाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने तीन दिन तक सभी पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। बहस के दौरान पंजाब सरकार की ओर से अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग में ज्यादा पिछड़े ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए एससी वर्ग के उप वर्गीकरण को सही ठहराया गया।केंद्र ने भी इस लिहाज से उपवर्गीकरण को सही कहा, लेकिन दूसरी ओर कई पक्षों ने एससी-एसटी वर्ग के उपवर्गीकरण का विरोध किया और चिन्नैया मामले में दी गई व्यवस्था का समर्थन किया।

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गुरुवार को जब एक पक्षकार की ओर से राज्य द्वारा उपवर्गीकरण किये जाने के विरोध में दलीलें दी जा रहीं थी तब पीठ की अगुवाई कर रहे चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मान लीजिए कि इस मामले में उन्होंने (राज्य सरकार ने) सिर्फ वाल्मीकियों को चुना और मजहबी सिखों को छोड़ दिया, तो क्या मजहबी यह तर्क नहीं दे सकते थे कि हम भी वाल्मीकियों की तरह पिछड़े हैं, आपने हमें क्यों छोड़ दिया।

चीफ जस्टिस ने क्या कुछ कहा

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सिर्फ वाल्मीकियों का उदाहरण दे रहे हैं स्थिति इससे उलट भी हो सकती है। कहने का मतलब यह है कि जिन लोगों को बाहर रखा गया है वे हमेशा अपने वर्गीकरण को अनुच्छेद 14 में समानता के आधार पर चुनौती दे सकते हैं, लेकिन राज्य जवाब में कह कर सकता है कि हम पिछड़ेपन के विस्तार को देखकर जाति का वर्गीकरण कर सकते हैं।

जैसा कि जस्टिस गवई ने कहा, चीफ जस्टिस ने कहा सबसे पिछड़ों को लाभ देना चाहते हैं, लेकिन सबसे पिछड़ों को लाभ देकर आप यह नहीं कर सकते कि जो सबसे पिछड़े हैं उनमें से कुछ को ही लाभ दिया जाए और अन्य को छोड़ दिया जाए। अन्यथा यह तुष्टीकरण की एक खतरनाक प्रवृत्ति बन जाती है। ऐसे तो कुछ राज्य कुछ जातियों को चुनेंगे, अन्य दूसरी जाति को चुनेंगे। आइडिया यह है कि आरक्षण में राजनीति न होने दी जाए। चीफ जस्टिस ने कहा,

इसलिए भले ही हम आपकी व्यापक दलील को स्वीकार न करें, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि आप लोग जो दलीलें दे रहे हैं उसमें कुछ तथ्य हैं और हमें एक मानदंड निर्धारित करके इसे तैयार करना होगा।


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