Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता निपटाने का मंच नहीं अदालत', अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

    Updated: Mon, 18 Aug 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि राजनीतिक झगड़ों को निपटाने के लिए कोर्ट को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएं कमजोर वर्गों के लिए हैं निजी हितों के लिए नहीं।

    Hero Image
    अवमानना याचिकाओं की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली अवमानना याचिकाओं की सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं को निपटाने के लिए अदालत को मंच नहीं बनाया जा सकता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अदालत ने साफ कर दिया कि इस तरह की याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि यदि आपको किसी विशेष नियुक्ति से समस्या है, तो आप केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के पास जाएं। यदि आपको राजनीतिक स्कोर तय करने हैं, तो आप मतदाताओं के बीच जाएं।

    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की पीठ ने अखिल भारतीय आदिम जनजाति विकास समिति झारखंड और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी की अवमानना याचिकाओं को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएं समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए होती हैं, व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों के लिए नहीं।

    क्या था मामला?

    याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि राज्य सरकार ने डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति करते समय सुप्रीम कोर्ट के 2006 के प्रकाश सिंह मामले और यूपीएससी दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि नियुक्ति बिना यूपीएससी की अनुशंसित सूची के हुई। डीजीपी गुप्ता 30 अप्रैल को सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच चुके थे और उनके विस्तार की मांग करना नियमों के खिलाफ है। केंद्र उनके सेवा विस्तार को पहले ही खारिज कर चुका है।

    अवमानना याचिका क्यों दायर की?

    याचिकाकर्ताओं ने 2006 के उस ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए यूपीएससी तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की सूची भेजे और नियुक्त अधिकारी का कार्यकाल कम से कम दो साल का हो। आरोप लगाया गया कि झारखंड सरकार ने इन दिशा-निर्देशों की अनदेखी की और गुप्ता को फरवरी 2025 में डीजीपी बना दिया।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

    यह भी पढ़ें- यूपी में 105 प्राथमिक स्कूलों के विलय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार, आप सांसद संजय स‍िंह ने दाखि‍ल की थी याच‍िका