'मुझे सरकारी बंगले में रहने का अधिकार...' पूर्व विधायक की याचिका पर SC ने कहा- 'कोई कब्जा नहीं रख सकता'
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें सरकारी बंगले में अधिक समय तक रहने के लिए किराये की मांग को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि सरकारी आवास पर हमेशा के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने भी पूर्व विधायक की याचिका खारिज कर दी थी जिसमें ..

नई दिल्ली, प्रेट्र। सरकारी बंगले में निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने के लिए दंड स्वरूप 20.98 लाख रुपये से अधिक के किराये की मांग के विरुद्ध बिहार के पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी सरकारी आवास पर हमेशा के लिए कब्जा नहीं रख सकता।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ पटना हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध अवनीश कुमार की अपील पर सुनवाई कर रही थी।
हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने 3 अप्रैल को एकल पीठ के उस आदेश के विरुद्ध अंतर-न्यायालयीय अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें पटना के टेलर रोड स्थित एक सरकारी बंगले पर कथित अनधिकृत कब्जे के लिए राज्य सरकार द्वारा दंड स्वरूप 20.98 लाख रुपये से अधिक के किराये की मांग को बरकरार रखा था।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा, 'सरकारी आवास पर हमेशा के लिए कब्जा नहीं रखना चाहिए। हालांकि, पीठ ने पूर्व विधायक को कानून के अनुसार, कदम उठाने की स्वतंत्रता दी। बाद में याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया गया।
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह ने पहे भी इसी तरह की एक याचिका दायर की थी। फिर मामले को दोबारा दायर करने की स्वतंत्रता की मांग किए बिना-शर्त वापस ले ली थी।
ढाका निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे अवनीश कुमार सिंह को विधायक रहते हुए पटना के टेलर रोड स्थित सरकारी क्वार्टर-3 आवंटित किया गया था। 14 मार्च, 2014 को विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद सिंह 12 मई, 2016 तक इस बंगले में रहे। इस अवधि के दौरान यह क्वार्टर एक कैबिनेट मंत्री के लिए निर्धारित था।
पूर्व विधायक बोले- 'मुझे बंगले में रहने का अधिकार'
पूर्व विधायक ने कहा कि उनके इस्तीफे और उसके बाद 2014 के संसदीय चुनावों में हार के बाद उन्हें राज्य विधानमंडल अनुसंधान एवं प्रशिक्षण ब्यूरो में नामित किया गया था और 2008 की एक अधिसूचना के तहत उन्हें एक मौजूदा विधायक के समान भत्ते और विशेषाधिकार प्राप्त थे। हाई कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि इससे उन्हें उसी बंगले में बने रखने का अधिकार मिल जाता है।
इसके साथ ही उन्होंने भवन निर्माण विभाग के 24 अगस्त, 2016 के पत्र को चुनौती दी, जिसमें अधिक समय तक रहने के लिए दंड स्वरूप 20,98,757 रुपये किराया मांगा गया था।
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हाई कोर्ट ने कहा- मनमानी का कोई प्रावधान नहीं
हाई कोर्ट ने साल 2008 की अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा कि इसमें अनुसंधान एवं प्रशिक्षण ब्यूरो के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान किए हैं, लेकिन इसमें उन्हें विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान आवंटित मंत्री आवासों में बने रहने का अधिकार नहीं दिया गया है।
इसमें कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि कोई पूर्व विधायक अपनी इच्छा से उस सरकारी आवास/क्वार्टर को अपने पास बनाए रखेगा, जिसमें वह पहले विधायक के रूप में रहता था।
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