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    'आज हम अपना आपा नहीं खोएंगे सिर्फ हंसेंगे', राजस्थान HC के किस फैसले को पलटते हुए बोला सुप्रीम कोर्ट?

    Updated: Thu, 14 Aug 2025 12:24 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें एक दंपति को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया गया था क्योंकि मामला दीवानी विवाद का था लेकिन उसे आपराधिक रंग दे दिया गया था। जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए टिप्पणी की।

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    सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत पर राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया (सोर्स- पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को रद कर दिया जिसमें एक दंपति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। यह मामला एक दीवानी विवाद माना गया था, लेकिन इसे आपराधिक रंग दे दिया गया था।

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    जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस आर महादेवन की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के रद करते हुए टिप्पणी की वे आज अपना आपा नहीं खोएंगे। और आज इस पर हंसेंगे।

    SC ने उठाए थे HC के फैसले पर जवाब

    बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार की उस टिप्पणी के लिए कड़ी आलोचना की थी जिसमें उन्होंने एक फैसले में सुझाव दिया था कि दीवानी मुकदमे में वैकल्पिक उपाय के तौर पर धन वसूली के लिए आपराधिक केस की अनुमति दी जा सकती है।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला की इसी पीठ ने जज प्रशांत कुमार की लिस्ट से आपराधिक मामलों को हटाने का आदेश दिया था, क्योंकि उन्होंने पाया था कि उन्होंने एक विशुद्ध रूप से सिविल विवाद में क्रिमिनल केस जारी रखने की इजाजत दी थी।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों ने लिखा CJI को पत्र

    सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद विवाद खड़ा हो गया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 जजों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को पत्र लिखकर कहा था कि हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ही हाई कोर्ट में जजों की सूची का स्वामी होता है और न्यायमूर्ति पारदीवाला का आदेश न्यायिक सीमा का अतिक्रमण है। इसके बाद सीजेआई गवई ने मामले को पुनर्विचार के लिए जस्टिस पारदीवाला की पीठ के पास वापस भेज दिया।

    जस्टिस पारदीवाला ने वापस लिया आदेश

    4 अगस्त को, जस्टिस पारदीवाला की पीठ ने उस निर्देश को वापस ले लिया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को अपने शेष कार्यकाल के दौरान किसी भी आपराधिक मामले की सुनवाई करने से रोक दिया गया था।

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