मतांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला; राज्यों को नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग पर सुनवाई करते हुए राज्यों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने राज्यों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है जिसके बाद याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह का समय दिया जाएगा। यह आदेश प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और विनोद चंद्रन की पीठ ने दिया।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग पर राज्यों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने मामले को छह सप्ताह बाद सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया है इस बीच राज्यों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करना है और दो सप्ताह का समय याचिकाकर्ताओं को प्रति उत्तर के लिए दिया गया है।
ये आदेश प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और विनोद चंद्रन की पीठ ने विभिन्न राज्यों में लागू किये गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को दिये। जमीयत उलेमा हिन्द, गैर सरकारी संगठन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस सहित कई लोगों ने याचिकाएं दाखिल कर विभिन्न राज्यों के धर्मान्तरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी है।
अश्वनी उपाध्याय ने भी याचिका दाखिल की
इन याचिकाओं के अलावा वकील अश्वनी उपाध्याय ने भी याचिका दाखिल कर रखी है जिसमें धोखे से धर्म परिवर्तन कराने पर रोक लगाने की मांग की गई है। मामले पर सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि कई राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं जिसमें सख्त प्राविधान किये गए हैं। उसमें मतांतरण पर न्यूनतम सजा 20 वर्ष कैद है और जो बढ़ कर पूरी जिंदगी की कैद हो सकती है। जमानत मिलना भी एक तरह से असंभव है।
सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अंतरधर्मीय विवाह करने वालों के लिए बड़ी प्रताड़ना है। वहां तो तीसरे पक्ष को भी शिकायत करने की इजाजत है। सिंह ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानून पर अंतरिम रोक लगाने की अर्जी दाखिल की है। साथ ही याचिका में संशोधन की भी अर्जी दी है। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह मध्य प्रदेश के कानून के खिलाफ दाखिल पेश हो रहीं थीं।
अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध
वकील वंदा ग्रोवर ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन दूसरी तरफ राज्यों की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल केएन नटराज ने अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश या अन्य राज्यों के हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को यहां स्थानांतरित करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
लेकिन जब कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने रोक अर्जियों का जवाब दाखिल किया है तो नटराज ने कहा कि कानून लागू होने के तीन साल बाद रोक मांगी जा रही है। वह जवाब दाखिल करेंगे। कोर्ट ने समय देते हुए सुनवाई छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक सहित कई राज्यों द्वारा लागू किये गए धर्मान्तरण विरोधी कानूनों की वैधानिकता को चुनौती दी गई है।
सुनवाई के दौरान अश्वनी उपाध्याय ने अपनी याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी याचिका इन याचिकाओं से अलग है उसमें उन्होंने धोखे से धर्मपरिवर्तन कराने पर रोक लगाने की मांग की है। हालांकि पीठ ने सवाल किया कि ये कैसे पता लगाया जाएगा कि धोखे से धर्मपरिर्वतन कराया गया है कि नहीं। बाद में कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका को भिन्न मानते हुए इस मामले से अलग करने का आदेश दिया।
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