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    कुत्तों की चुनौती: ज्यादा पैसा, कर्मचारी और अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का सुझाव; निकाय अफसरों के सामने उठा मुद्दा

    By Jagran NewsEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Fri, 06 Oct 2023 09:12 PM (IST)

    एनसीआर समेत तमाम शहरों में कुत्तों की बढ़ती समस्या और रिहाइशी इलाकों में उनके कारण उभरे खतरे से निपटने के लिए शहरी कार्य मंत्रालय ने नए सिरे से प्रयास शुरू किए हैं। देश के सभी शहरी स्थानीय निकायों को भविष्य की चुनौतियों के लिहाज से तैयार करने के लिए इस बड़ी शहरी समस्या को भी एक अहम पहलू माना गया है।

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    निकायों के अफसरों की वर्कशाप में रिहाइशी इलाकों में कुत्तों के खतरे पर चर्चा। (फाइल फोटो)

    मनीष तिवारी, नई दिल्ली। एनसीआर समेत तमाम शहरों में कुत्तों की बढ़ती समस्या और रिहाइशी इलाकों में उनके कारण उभरे खतरे से निपटने के लिए शहरी कार्य मंत्रालय ने नए सिरे से प्रयास शुरू किए हैं। देश के सभी शहरी स्थानीय निकायों को भविष्य की चुनौतियों के लिहाज से तैयार करने के लिए इस बड़ी शहरी समस्या को भी एक अहम पहलू माना गया है।

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    नगर आयुक्तों की बैठक में उठा मुद्दा

    इसी सिलसिले में विगत दिवस देश भर से आए नगर आयुक्तों और टाउन प्लानरों की एक बैठक में रिहायशी इलाकों में इंसानों और कुत्तों की उपस्थिति के बीच संघर्ष पर एक प्रजेंटेशन के जरिये यह सुझाव दिया गया कि स्थानीय निकायों को इससे निपटने के अपने प्रयासों में आम लोगों को शामिल करना होगा।

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    साथ ही नियमों के पालन पर पूरा जोर दिया जाना चाहिए। अगर जरूरी हो तो नियम-कायदों में इस लिहाज से परिवर्तन हो कि कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाने जैसे उपाय आसानी से हो सकें। यमुना नगर के अतिरिक्त नगर आयुक्त धीरज कुमार और उनकी टीम ने एक केस स्टडी के आधार पर सुझाव दिया कि पशु प्रेमियों को इस समस्या से निपटने के उपायों में शामिल करना होगा।

    बेसहारा कुत्तों को अपनाने के लिए प्लान बनाने पर जोर

    उन्हें इसके लिए सहूलियत प्रदान करनी होगी कि वे बेसहारा कुत्तों को अपनाने के लिए आगे आएं। हर कुत्ते का रजिस्ट्रेशन हो, उसे आरएफआईडी टैग प्रदान किया जाए और यदि उसे छोड़ दिया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को दंडित किया जाए। इस टीम में आठ नगर आयुक्त और टाउन प्लानर शामिल थे।

    टीम ने इस चुनौती से निपटने के लिए जो तात्कालिक उपाय बताए हैं, उनमें सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए जागरूकता अभियान चलाना, सोसाइटी के स्तर पर वैक्सीनेशन अभियान और समस्या के समाधान में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। शहरों को आवारा कुत्तों से निजात दिलाने के लिए दीर्घकालिक उपायों में निकायों को ज्यादा धन का आवंटन और नगर निगमों तथा निकायों के अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या और उनकी दक्षता बढ़ाना शामिल है।

    पशुओं के अधिकारों की रक्षा जरूरी

    धीरज कुमार ने दैनिक जागरण को बताया कि हमने इस समस्या की प्रमुख चुनौतियों के रूप में कुत्तों के संदर्भ में पूरी जानकारी (खासकर उनकी संख्या) के अभाव, फंड की कमी और लोगों में जागरूकता की कमी को रेखांकित किया है। इसके साथ ही विशेषज्ञों और तकनीकी जानकारी वाले लोग भी चाहिए। पशुओं के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए, लेकिन हमें संतुलित तरीके से एक लक्ष्मण रेखा भी खींचने की जरूरत है। हाल में तमाम रिहाइशी इलाकों में बच्चों और बुजुर्गों के कई मामले सामने आए हैं जो कुत्तों के हमलों के शिकार हुए।

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    धीरज कुमार के अनुसार इस चुनौती से निपटने के लिए आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं। केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर समितियां हैं। बढ़ते शहरीकरण के साथ यह गंभीर सामाजिक चुनौती है। शहरी कार्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसे प्रजेंटेशन स्थानीय निकायों की क्षमता बढ़ाने और उन्हें आज की जरूरत के अनुसार तैयार करने के लिए हैं। राज्यों को अपनी योजना के अनुसार इस पर काम करना होगा।