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    'राज्यों के पास रेवड़ियां बांटने का पैसा है, मगर जजों के लिए नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुनाई खरी-खरी

    Updated: Tue, 07 Jan 2025 10:50 PM (IST)

    सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को जिला अदालतों के जजों के वेतन और पेंशन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की। बुधवार को भी शीर्ष अदालत मामले की सुनवाई करेगा। अदालत ने मंगलवार को टिप्पणी की कि राज्यों के पास ऐसे लोगों को मुफ्त में देने के लिए पर्याप्त धन है जो काम नहीं करते हैं मगर जिला जजों को वेतन और पेंशन देने पर वित्तीय संकट की बात कहते हैं।

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    सुप्रीम कोर्ट ने जजों को वेतन और पेंशन से जुड़ी याचिका पर की सुनवाई।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेवड़ियां बांटे जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राज्यों के पास मुफ्त रेवड़ियां बांटने के लिए तो पैसे हैं लेकिन जजों को भुगतान करने के लिए नहीं हैं। कोर्ट ने इस संबंध में महाराष्ट्र की लाडकी बहना और दिल्ली में राजनैतिक दलों द्वारा नकद राशि बांटने की गई घोषणाओं का भी जिक्र किया।

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    जो काम नहीं करते, उनको देने को पर्याप्त पैसा है

    कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास उन्हें देने के लिए पर्याप्त पैसा है जो कोई काम नहीं करते और जब जिला अदालत के जजों को वेतन और पेंशन देने की बात होती है तो वित्तीय कमी की बात करते हैं। ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्याययूर्ति अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने जिला अदालतों के जजों को पेंशन व सेवानिवृति लाभ दिए जाने से संबंधित ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं।

    पहले भी चिंता जता चुकी शीर्ष अदालत

    एसोसिएशन ने 2015 में याचिका दाखिल की थी जिसमें जिला अदालतों को पेंशन और सेवानिवृत लाभ से लंबित सेकेंड नेशनल ज्यूडिशयल कमीशन की सिफारिशें लागू करने का मुद्दा शामिल है। पूर्व सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने जिला अदालतों के जजों की कम पेंशन को लेकर चिंता जताई थी। इस मामले में वरिष्ठ वकील के. परमेश्वर न्यायमित्र हैं।

    सरकार पर पेंशन की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही

    मंगलवार को सुनवाई के दौरान परमेश्वर ने जजों को ठीकठाक भुगतान करने की बात करते हुए कहा कि अगर हम ज्यादा विविधतापूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं, अगर हम चाहते हैं कि नए टैलेंट आएं तो हमें अपने जजों का ध्यान रखना होगा। उन्हें बेहतर भुगतान करना होगा। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से सरकार पर पेंशन की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है और पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय चिंताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

    पीठ ने सरकार और दलों को सुनाई खरी-खरी

    इस पर पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस गवई ने रेवड़ियां बांटने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को बांटने के लिए पर्याप्त पैसा है जो कुछ काम नहीं करते। जब हम वित्तीय चिंताओं की बात करें तो हमें यह भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा जब चुनाव आते हैं तब आप लाडकी बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं जिसमें आप एक तय राशि देते हैं।

    दिल्ली में भी कुछ एक दलों ने घोषणा की है। कुछ एक ने कहा है कि अगर वे सत्ता में आए तो 2,500 रुपये देंगे। अटार्नी जनरल ने कोर्ट की टिप्पणी पर कहा कि मुफ्त उपहारों की संस्कृति को पथ भ्रमित होना माना जा सकता है।

    आज भी होगी सुनवाई

    जस्टिस गवई ने कहा वित्तीय बोझ की व्यावहारिक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कोर्ट से सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर कोई अधिसूचना जारी कर सकती है लेकिन पीठ ने सुनवाई स्थगित करने से मना कर दिया और कहा कि यह मामला वर्षों से लंबित है। कोर्ट ने कहा कि अगर सुनवाई पूरी होने के बाद कोई अधिसूचना जारी होती है तो वह कोर्ट को सूचित कर सकते हैं। मामले में बुधवार को भी सुनवाई होगी।

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